असत्य का सम्मान

May 1969

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सत्य ओर असत्य नाम के दो भाई थे। सत्य स्वच्छ और सुन्दर,असत्य मलिन और देखने से ही अप्रिय लग रहा था। जहाँ जाता असत्य ठुकराया जाता ओर दुत्कारा ही जाता,इसलिये उसने बदला लेने का निश्चय कर लिया।

एक बार दोनों तीर्थ -यात्रा पर निकले वहाँ भी यही स्थिति रही। सत्य का तो सम्मान होता क्योंकि वह सुन्दर लगता था और असत्य का अनादर क्योंकि न उसके वस्त्र साफ थे, न आकृति।

घूमते -घूमते बद्रीनाथ पहुँचे। स्नान के लिये दोनों एक सरोवर में उतरे। सत्य देह मन-लगाकर स्नान करने में लगा रहा,उसने यह भी न देखा कि इस बीज असत्य चुपचाप उसके कपड़े पहनकर चला गया। बाहर निकलने पर सत्य को विवश होकर असत्य के कपड़े पहनने पड़े। तब से दानों बराबर चल रहे है और हर व्यक्ति के पास आते हैं पर असत्य की पूजा होती है, क्योंकि उसने सत्य के कपड़े पहन लिये थे। सत्य अब दर-दर मारा फिर रहा है।


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