हरि इच्छा- बलवान

March 1969

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लन्दन के म्यूजियम में एक ऐसे कीड़े का शव सुरक्षित है, जिसने सैंकड़ों यात्रियों से भरी एक एक्सप्रेस ट्रेन की एक भयंकर दुर्घटना से रक्षा की। यद्यपि यह घटना एक संयोग मात्र सी लगेगी पर विचार की गहराई में उतर कर देखें तो उसमें परमात्मा की करुणा ही सन्निहित जान पड़ेगी।

हुआ यह कि एक एक्सप्रेस गाड़ी सैंकड़ों यात्रियों को लेकर तेजी से जा रही थी। इस गाड़ी में महारानी विक्टोरिया भी यात्रा कर रही थीं। घना कोहरा छाया हुआ था। 500 गज दूर की वस्तु भी दिखाई नहीं देती थी।

तभी ड्राइवर को कोई भीमकाय पशु जैसी कोई वस्तु सामने खड़ी दिखाई दी। ऐसा जान पड़ा कि यदि ब्रेक न लगाया जायेगा तो दुर्घटना हुए बिना न रहेगी।

सारी शक्ति लगातार ड्राइवर ने ब्रेक लगाया। गाड़ी रुकने लगी, अब तक वह दैत्याकार वस्तु साफ चमक रही थी। गाड़ी रुक गई तो ड्राइवर उतर कर नीचे आया पर ऊपर से दिखाई देने वाली वह आकृति दूर तक ढूँढ़ने पर भी न मिली, हाँ यह पता अवश्य चल गया कि थोड़ी दूर पर नदी का पुल है, वह टूटा हुआ है।

यह खबर महारानी विक्टोरिया को दी गई। उन्होंने आज्ञा दी, उस भयंकर दुर्घटना रोकने वाले वीर व्यक्ति की अविलम्ब खोज की जाये पर उसका कहीं कोई पता न चला।

अब ड्राइवर फिर से रेलगाड़ी पर चढ़ा तब पता चला कि वह तो एक छोटा सा कीड़ा था, जो सर्चलाइट में फँस गया था। बिजली कि किरणें और शीशे के संयोग से उसी की छाया पहाड़ जैसी भारी दिखाई दे रही थी। महारानी के आदेश से इस कीड़े को अजायबघर में प्रतिष्ठित किया गया।


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