प्रभात की प्रार्थना

February 1968

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आओ जीवन ज्योति जगायें, गई अंधेरी रात रे। नये जन्म सा, नई शक्ति ले आया नया प्रभात रे॥

कल भी था जीवन पर उसमें हुये अनेकों पाप रे, आलस, द्वेष, अविद्या, तृष्णा, लोभ, मोह, संताप रे, छापे रहे पवित्र आत्मा पर बनकर अभिशाप रे, विगत हुई अज्ञान निशा तो, जागी पुनः प्रकाश दिशा रे, उस प्रताड़ना मय जीवन से मुक्त बने यह गात रे। नये जन्म सा, नई शक्ति ले आया नया प्रभात रे॥

जो इस सारे जग को देता पावन पुण्य प्रकाश रे, जीवों को चेतनता देता, फलों को मृदुहास रे, यह धरती, अंबर तारागण ही जिसका इतिहास रे, जो स्वामी, सृष्टा सब विभु का, ध्यान करें पहले उस प्रभु का, हरियाली भर देती जिनकी करुणा की बरसात रे। नये जन्म सा, नई शक्ति ले आया नया प्रभात रे॥

व्यसन-वासना के धोखे में कल तक शक्ति गंवाई रे, पाई थाह न लौकिक सुख की अंधी दौड़ लगाई रे, ऐसी चली स्वार्थ की आंधी, प्रभु की याद न आई रे। लेकिन उसने साथ न छोड़ा, रुख विष से अमृत को मोड़ा, अब तो यह नश्वर शरीर ही बनें पुण्य जलजात रे। नये जन्म सा, नई शक्ति ले आया नया प्रभात रे॥

आज करें वह कर्म कि जिससे शुभ सजे संसार रे। आया बनें पवित्र, करें इस जग का भी उपकार रे, शिव-संकल्प करें आओ मिल धरती का उद्धार रे। विकसें सुप्त शक्तियां मन की, ऐसी रहे व्यवस्था दिन की, सौम्य, सुरुच, कोमल रसाल के जैसे नूतन पात रे। नये जन्म सा, नई शक्ति ले आया नया प्रभात रे॥

*समाप्त*


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