अपनों से अपनी बात- -

February 1968

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सन् 2000 के लगभग जो विषम समय आ रहा है। उसके सम्बन्ध में भारतीय धर्म ग्रन्थों में पूर्व चेतावनियाँ विद्यमान हैं। अध्यात्म-तत्व वेत्ताओं ने इस संदर्भ में मनुष्य जाति को कितनी ही आगाही की है। ईसाई और मुसलिम धर्मों में भी इसी तरह की सम्भावनाएं व्यक्त की गई हैं। मुसलमान तो चौदहवीं सदी में (वर्तमान शताब्दी) में कयामत (प्रलय) की सम्भावना मानते हैं। ईसाई धर्म ग्रन्थों में भी ऐसे ही उल्लेख हैं। बाइबिल की एक भविष्यवाणी इस तरह है-

“दूसरे फरिश्ते ने अपना ‘ट्रम्पेट’ बिगुल बजाया और उससे बड़ा भारी जलता हुआ पहाड़ समुद्र में गिरा। जिसके कारण समुद्र का एक तिहाई हिस्सा खून-ही-खून से भर गया। समुद्र के एक तिहाई प्राणी मर गये और एक तिहाई जहाज डूब गये।” -रिवेलेशन, अध्याय 8,

इस संदर्भ में तृतीय महायुद्ध और उसमें प्रयुक्त होने वाले अणुबमों और उद्जन बमों की चर्चा बहुत दिन से हो रही है। तृतीय युद्ध की सम्भावना का अनुमान वर्तमान अन्तर्राष्ट्रीय तनाव और उसकी बढ़ती हुई पेचीदगियों को देख कर, हर कोई अनुमान लगा सकता है। ऐसे घातक अस्त्रों द्वारा लड़े जाने वाले युद्ध का क्या परिणाम होगा, इसकी कल्पना जापान पर हुए महायुद्ध में गिरे दो अणुबमों के दुष्परिणाम को देखकर सहज ही की जा सकती है। उस स्थिति में पूर्ण प्रलय नहीं तो खण्ड प्रलय की स्थिति तो आ ही सकती है।

इस आशंका में एक नया अध्याय और जुड़ा है। अन्तरिक्ष विद्या के जो वैज्ञानिक आकाश में भ्रमण करते ग्रह नक्षत्रों एवं उल्काओं का, उनकी गति विधियों का अन्वेषण करते रहते हैं, उन्होंने एक ऐसे विशालकाय उल्कापिण्ड नवजात नक्षत्र ‘इकारस’ का पता लगाया है जो आकाश गंगा से टूट कर किसी अनिश्चित दिशा में, अनिश्चित मार्ग से बढ़ता हुआ चला जा रहा है। निर्धारित और निश्चित कक्षा अपनी वह अभी बना नहीं सका है, इसलिए वह किधर जा भटके और किस ग्रह नक्षत्र से जा टकराए कुछ कहा नहीं जा सकता। सर्वेक्षण से पता चला है कि यह नक्षत्र पृथ्वी की ओर लपकता चला आ रहा है। जून में वह पृथ्वी के अति निकट होकर गुजरेगा। तब इस बात की भी आशंका रहेगी कि वह पृथ्वी के किसी भाग से आ टकराये और यहाँ खण्ड या पूर्ण प्रलय की स्थिति उत्पन्न कर दे।

इस सम्बन्ध में 10 दिसम्बर 67 के ‘साप्ताहिक हिन्दुस्तान’ (दिल्ली) अंक में पृष्ठ 20, 21 पर ‘मनु सावधान’ शीर्षक से एक लेख छपा है। उसके कुछ अंश नीचे उद्घृत किये जाते हैं। जिससे पाठकों की उस उल्का पिण्ड के बारे में अधिक जानकारी मिल सके।

“डा. स्टुअर्ट टामस बटलर ने अपने एक प्रकाशित लेख में यह कहा था कि एक नव तारक के पृथ्वी ग्रह के अधिक निकट आ जाने से प्रलय की आशंका है। उन्होंने अन्तरिक्ष विषयक विस्तृत अध्ययन और खोज के आधार पर यह बताया है कि पृथ्वी को सबसे अधिक खतरा नवजात एक छोटे नक्षत्र ‘इकारस’ से है। पृथ्वी से उसकी दूरी लगभग 42 लाख मील है। लेकिन सन् 48 और 57 के मध्य उसकी कक्षा 4 लाख मील खिसक आई है। सन् 1968 में जून के किसी दिन वह नक्षत्र पृथ्वी के बिल्कुल निकट से गुजरेगा। किसी भी क्षण वह नक्षत्र अपनी धुरी से जरा भी पृथ्वी की ओर झुक गया तो एक हजार उद्जन बमों के बराबर विस्फोट से समस्त पृथ्वी विनाश के गर्त में समा जायेगी।”

“इकारस में जिस विस्फोट की आशंका है उसका अन्तरिक्ष पर दबाव पड़ने से, और विस्फोटों से भयंकर भूकम्प आयेंगे। जिससे मीलों क्षेत्र में बड़ी दरारें पड़ जायेंगी। तथा विशाल चट्टानें वायुमंडल में उड़ कर, अत्यन्त प्रलयकारी दृश्य उपस्थित करेंगी। ‘इकारस’ के पृथ्वी से टकराने के फलस्वरूप सारी पृथ्वी ध्रुव क्षेत्र में परिणत होकर बर्फ की मोटी पर्त से ढक जाने की आशंका है। यदि यह पृथ्वी के अनबसे क्षेत्र से टकरा गया तो भी उसका भयंकर परिणाम अवश्यम्भावी है। यदि कहीं यह न्यूयार्क या शिकागो जैसे घने बसे क्षेत्र से जा टकराया तो करोड़ों व्यक्ति तुरन्त समाप्त हो जायेंगे। उससे भी गम्भीर परिणाम ‘इकारस’ के जल में गिरने से होंगे। प्रचण्ड ऊर्जा से बड़े क्षेत्र में समुद्र उबलने लगेगा, समुद्र के तल और भीतरी चट्टानों, खोलों में ज्वालामुखीय विस्फोट सारी पृथ्वी को हिला देंगे। उनसे उत्पन्न लावे की जहरीली गैस से पृथ्वी का एक बड़ा भाग नष्ट हो जायेगा। लावे से जल भाप में बदल जायेगा और गर्म जल की धारायें बहने लगेंगी।’’

डा. एन. वर्क की गणना के अनुसार एक बार में समुद्र का चार हजार मील लंबा समुद्री जल भाप में परिवर्तित हो जायेगा। अन्य विनाशकारी प्रभावों के अतिरिक्त भीषण बाढ़ भी आयेगी। वर्ष भर जाड़े की ऋतु बनी रहेगी, तथा समुद्र की विकराल लहरें बड़े-बड़े शहरों को बहा ले जायेंगी। यदि ‘इकारस’ एटलाँटिक महासागर में गिर पड़े तो सारे अमेरिका तथा योरोप का अधिकाँश भाग जलमग्न हो जायेगा। सबसे भयंकर स्थिति तब होगी जब ‘इकारस’ ध्रुव क्षेत्र से जा टकरायेगा। उससे उत्पन्न भीषण ऊर्जा से ध्रुव क्षेत्र का हिम पिघल जायेगा। पिघले जल से समुद्र में पानी की सतह हजारों फुट ऊँची होने पर सारी पृथ्वी जल मग्न हो जायेगी।”

“वैज्ञानिकों के अनुसार केवल 25 हाइड्रोजन बमों के ध्रुव क्षेत्र में विस्फोट होने से सारी पृथ्वी पानी में डूब सकती है। ‘इकारस’ की संहारक शक्ति एक हजार हाइड्रोजन बमों के तुल्य आँकी जा रहा है। ‘इकारस’ धीरे-धीरे पृथ्वी की ओर बढ़ रहा है। कई वैज्ञानिकों का कहना है कि वह अपनी वर्तमान स्थिति से विचलित होगा और उस स्थिति की सम्भावना 1968 के जून में आँकी जा रही है। यदि स्वयं उसकी स्थिति में परिवर्तन न भी हुआ तो भी सौरमंडल के अन्य तारों की स्थिति परिवर्तन से उसके साथ टकराव होगा। वैज्ञानिक इस बात पर विचार कर रहे हैं कि कोई भी भीषण घटना घटित होने से पूर्व क्या पृथ्वी को विनाश से बचाया जा सकता है?”

मनुष्य जाति को जिन विभीषिकाओं का सामना करना पड़ सकता है, उनमें से एक विभीषिका की ओर उपरोक्त वैज्ञानिक की खोज संभावना तथा आशंका का भी इशारा करती है। अनेक अन्य कारण तो पहले से ही विद्यमान हैं। मनुष्य की कुमार्गगामिता उसे तत्काल लाभदायक दीखती है पर वह यह नहीं सोचता कि अन्ततः इन दुष्प्रवृत्तियों से अन्तरिक्ष विकृत होता है और वह दैवी प्रकोप के रूप में व्यक्ति और समष्टि के लिए कितने भयंकर संकट लेकर उपस्थित होता है। यदि इस तथ्य को समझा जा सके तो हमारी दुष्प्रवृत्तियों पर अंकुश लगे और महाकाल का विनाश-शस्त्र उठने से पूर्व ही रुक जाय।

पिछले दिनों मानवीय दुष्प्रवृत्तियों ने अन्तरिक्ष को, सूक्ष्म जगत को जितना कलुषित एवं विकृत किया है, उसका संशोधन करके इन दैवी विपत्तियों से मानव समाज को बचाया जा सकता है। यह बचाव आध्यात्मिक आधार पर ही सम्भव है। तपस्वी इसके लिए तप कर रहे हैं- करने जा रहे हैं। तप के बल से भारी से भारी विपत्ति टल सकती है। इन विभीषिकाओं एवं सम्भावनाओं को भी टाला जाना सम्भव है। जन साधारण को भी इस दिशा में कुछ करना चाहिए। हमारा दस अश्वमेध आयोजन, जिसमें प्रतिदिन 24 लक्ष गायत्री अनुष्ठान और हर वर्ष सहस्र कुण्डी के गायत्री यज्ञ दस वर्ष तक करना सम्मिलित है, लोक-मंगल की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण सुरक्षा का प्रयत्न है। विश्व-मंगल में अभिरुचि रखने वाले धर्म प्रेमी इन आयोजनों को सफल बनायें यह उचित है और आवश्यक भी।


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