विवेक ही बड़ा है

February 1968

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एक बार हनुमानजी की भेंट अर्जुन से हुई। हनुमान राम के भक्त थे, अर्जुन श्रीकृष्ण के। दोनों में बहस छिड़ गई। हनुमानजी कहने लगे राम बली हैं, अर्जुन कहते श्रीकृष्ण बली हैं।

बहस का अन्त न होते देख परीक्षा करने का निश्चय हुआ और शर्त तय हुई कि जो हारे वह आत्महत्या करले।

अर्जुन ने श्रीकृष्ण का ध्यान किया और तुरन्त समुद्र में एक विशाल पुल बाँध दिया और हनुमान जी बोले- अब यदि तुम्हारे राम बली हैं तो इस पुल को तोड़ दो। यदि न तोड़ सके तो राम का पराक्रम घटिया माना जायेगा।

हनुमानजी जोश में भर गये। उन्होंने शरीर का शतयोजन विस्तार किया और पुल पर कूद पड़े। भक्तों के इस झगड़े का पता भगवान् को हुआ तो वे बहुत चिन्तित हुये। यदि हनुमान की रक्षा करते हैं तो अर्जुन का अन्त होता है। अर्जुन जीतते हैं तो हनुमान की मृत्यु निश्चित है। सोच विचार कर उन्होंने स्वयं ही अपना शरीर पुल के नीचे लगा दिया। हनुमानजी ने जैसे ही अपना कदम बढ़ाया कि उनके भार से भगवान् का शरीर फट गया और खून बहने लगा। हनुमानजी ने राम को पहचाना, वे कूदकर उनके पास पहुँचे और दुःख करने लगे। अर्जुन ने कृष्णरूपी भगवान् को पहचाना वे भी दौड़ कर विलाप करने लगे। भगवान ने समझाया- “अच्छा होता आप लोग विवेक से काम लेते। मैं एक हूँ, मेरे ही अनेक रूप संसार में फैले हैं। इसलिये किसी से झगड़ा नहीं करना चाहिये। कोई विवाद आए तो उसे विवेक से हल कर लेना चाहिये।”


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