जिसकी चीज उसी ने ले ली-
रबी मेइर प्रख्यात पारसी धर्मगुरु हुये हैं। एक दिन जब वे पाठशाला में बच्चों को पढ़ा रहे थे तो उनके दोनों पुत्रों की मृत्यु हो गई। उनकी पत्नी ने मृत पुत्रों के शरीर चादर से ढक शयनागार में लिटा दिये। रबी मेइर शाम को घर लौटे। पत्नी ने एक गिलास शर्बत लाकर दिया। उसे पीते हुये रबी ने पूछा- “प्रिये! आज दोनों बच्चे दिखाई नहीं देते?”
धर्मपत्नी ने सन्तोष की मुद्रा में उत्तर दिया- ‘‘यहीं कहीं होंगे, लीजिये भोजन कर लीजिये।” यह कह कर उसने भोजन का थाल सामने रख दिया।
रबी मेइर भोजन करने लगे तो पत्नी ने धीरे से पूछा- “कल पड़ोसिन के गहने माँगे थे, आज वह माँगने आई थी कहिये तो उन्हें वापस कर दूँ।”
“यह भी कोई पूछने की बात है” रबी ने तुरन्त उत्तर दिया- “जिसकी वस्तु है वह लेना चाहता है तो देने वाले को दुःख और संकोच क्यों हो!”
रबी भोजन समाप्त कर उठ खड़े हुये। पत्नी बोली- आप ठीक ही कहते हैं। फिर वह उन्हें अपने साथ शयनागार में ले गई और चादर उठा कर दोनों मृत बच्चों के शव दिखा दिये।
रबी मेइर फूट-फूट कर रोने लगे। धर्मपत्नी ने कहा- “स्वामी! धन, सम्पत्ति, पुत्र, संबंधी सब परमात्मा की देन होते हैं, वही इन्हें लेने लगे तो हमें दुःख क्यों करना चाहिये?” रबी मेइर पत्नी के वचनों से बहुत शाश्वत हुये और परमात्मा को धन्यवाद दिया।