पेड़ की ऊँची डाली पर लटके नारियल ने नीचे नदी में पड़े पत्थर को देखकर घृणा पूर्वक कहा—”घिस-घिसकर मर जाओगे लेकिन नदी के पैर नहीं छोड़ेंगे, अपमान की भी कोई हद होती है। मुझे देखो स्वाभिमानपूर्वक कैसी उन्नत स्थिति में मौज कर रहा हूँ। पत्थर ने चुपचाप नारियल की बात सुन ली, कोई उत्तर न दिया। कुछ समय बाद पूजा की थाली में रक्खे उसी नारियल ने देखा कि नदी का वही पत्थर शालिग्राम के रूप में पूजा-पाठ पर प्रतिष्ठित है जिसकी पूजा के लिए उसे नैवेद्य के रूप में लाया गया है, नारियल मन-ही-मन क्रोधित हो उठा। पत्थर ने नारियल का भाव समझा और कहा—नारिकेलि! देखा घिस-घिसकर परिमार्जित होने का परिणाम क्या होता है? और अभिमान के मद में मतवाले रहने वालों की गति क्या क्या हुआ करती है?