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September 1966

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जीवन और मृत्यु-

यह जीवन समुद्र यात्रा की भाँति है जिसमें हम सभी एक ही संकुचित नौका में परस्पर मिलते हैं। मृत्यु, तट पर पहुँचने के समान है जहाँ हम सभी अपने-अपने लोक को चले जाते हैं।

मृत्यु जो कि शाश्वत सत्य है, क्रान्ति है और जन्म तथा जीवन धीरे-धीरे और स्थिर रूप से होने वाला विकास है। मनुष्य की उन्नति के लिए स्वयं जीवन जितना आवश्यक है, उतनी ही आवश्यक क्रान्ति है।

—रवीन्द्र


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