सुखद भविष्य की आशा रखिये।

December 1966

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“किसी घटना के प्रति मनुष्य का जैसा दृष्टिकोण होता है वैसा ही उसका भविष्य बनता है” इस एक वाक्य में दार्शनिक मारकस ओरिलियस ने मानव जीवन के उत्कर्ष या अपकर्ष का रहस्य खींच दिया है। यदि हमारा दृष्टिकोण आशावादी है तो यह विश्वास किया जाता है कि हमारी सृजनात्मक शक्तियाँ अभी जीवित और जागृत हैं, वे अन्ततः हमारा कल्याण ही करेंगी, ऊँचे ही उठायेंगी। सुखद कल्पनाओं में प्रेरक मनोबल होता है जो कठिन परिस्थितियों में भी निर्माण की एक दिशा ला देता है और मनुष्य को भय, आशंकाओं से बचाकर उन्नति की ओर अग्रसर किये रहता है।

कदाचित मस्तिष्क में निराशा आ गई तो भविष्य चौपट हुआ जानिये। अब क्या होगा बीमारी नहीं छूट सकती? इस तरह का विचार, दुर्बलता से लड़ने की जो थोड़ी शक्ति रही होगी, उसे भी नष्ट कर देगा तब आपका स्वास्थ्य भी शायद ही अच्छा हो पाये। पुत्री के विवाह के लिये धन मिलना कठिन है इस निराशा में पड़े रहेंगे तो एक पैसा भी इकट्ठा न कर सकेंगे जबकि चाहते तो कोई गरीब घर का ही अच्छा लड़का ढूँढ़ लेते, नौकरी में कुछ पैसे बचा लेते, कुछ मित्र या सम्बन्धी से लेकर अपना काम निकाल लेते। दिवालिया हो जाने, कर्ज बढ़ जाने, नौकरी न मिलने, आग लग जाने, चोरी हो जाने, फसल खराब हो जाने की सैकड़ों घटनायें आये दिन घटती ही रहा करती हैं इनसे निरुत्साहित हो गये तो आगे का काम चलना बन्द हुआ। इस निराशा से बचना, कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य, साहस और विवेक से काम लेना सुखी जीवन का प्रमुख रहस्य है कठिन परिस्थितियों में हमें हिटलर के दो शब्द याद रखने चाहिए—’हमें यह मानकर लड़ना चाहिए कि मृत्यु तो सुनिश्चित है पर जीत हमारी ही होगी।” जीवन के प्रति आशा और कठिन-से-कठिन परिस्थिति से भी संघर्ष करने का साहस मनुष्य में आ जाये तो उसकी सफलता के मार्ग को कोई रोक नहीं सकता पर यदि निराशा पल्ले पड़ी तो उसका उत्साह भंग हुआ और सुखद परिस्थितियाँ नष्ट हुईं। सर वाल्टर स्काट ने एक प्रेस चलाया। पर वह 30 वर्ष तक निरन्तर घाटा देता रहा। बेचारों पर कर्ज का बोझ इतना बढ़ गया कि साधारण मनोबल का कोई दूसरा व्यक्ति होता तो आत्महत्या ही कर बैठता। वाल्टर स्काट हार मानने वाले व्यक्ति न थे, कभी कोई मासिक निकाला, कभी दूसरों की पुस्तकें छापी, अखबार निकाला, असंख्य प्रयोग किये आखिर एक गोली निशाने पर बैठ ही गई। उपन्यासों में उनका नाम चमक उठा। अन्त में यह व्यवसाय इतना चमका कि लाखों रुपयों का कर्ज भुगतान कर वाल्टर स्काट ने असीमित धन पैदा किया। वाल्टर की सफलता का एक ही रहस्य था कि उन्होंने कभी परिस्थितियों से हार नहीं मानी, निराशा को पास नहीं फटकने दिया।

एक युद्ध में थेडरी नामक आइरिश सिपाही घायल हुआ। सारे शरीर में छत्तीस गोलियाँ लगी थीं। डॉक्टर आपरेशन रूम में जाते काँप रहा था। इसी समय स्ट्रक्चर में पड़े थेडरी लाये गये। डॉक्टर की परेशानी भाँप गये। पीठ पर हाथ रखकर कहा- डॉक्टर! जब तक मेरा बिना गोली लगा दिल मौजूद है आपको घबड़ाने की आवश्यकता नहीं। आपरेशन किया गया और थेडरी अच्छा हो गया। डॉक्टर ने बधाई देते हुये कहा—थेडरी, तुम अपने मनोबल के कारण अच्छे हुये, मैं तो आपरेशन करने में ही काँप गया था।”

डाँ. लारसन का मत है कि मनुष्य के शरीर में ऐसी शक्तियाँ होती हैं जिन्हें आशा, उत्साह, प्रमोद और प्रफुल्लता का कम्पन देकर जगा दिया जाये तो शरीर में असाधारण शक्ति भर जाती है जो बड़ी-से-बड़ी कठिनाइयों को भी परास्त कर देती है इसलिये मनुष्य को हर स्थिति में प्रसन्न रहने का मार्ग ढूंढ़ना चाहिए। छोटी बात को लेकर भी मनों-विनोद में डूब जाना चाहिए।

एक मल्लाह का लड़का नाव चला रहा था। एक सौदागर ने पूछा—क्यों जी! तुम्हारे बाबा की मृत्यु कैसे हुई, बाल नाविक ने जवाब दिया—’नाव चलाते समय तूफान आ गया, नाव पलट गई, दरिया में डूब कर बाबा की मृत्यु हो गई।’ सौदागर ने विस्मय किया बोला- ‘और तुम्हारे पिता जी? उनकी भी मृत्यु क्या ऐसे ही हुई,-बच्चे ने जवाब दिया ‘हाँ’। ‘तो फिर तुम यह खतरनाक काम क्यों करते हो?’ सौदागर ने पूछा। बालक ने कहा ‘महाशय! क्या आप बता सकते हैं कि आपके बाबा और पिताजी की मृत्यु कैसे हुई?’ सौदागर बोला—हाँ-हाँ उन्हें तो बीमारी हुई और घर पर पड़े-पड़े मर गये।’ ‘तो फिर आप घर में क्यों रहते हैं?’ ‘सौदागर के पास भला इसका क्या उत्तर हो सकता था? मल्लाह के बेटे ने अपनी बात जारी रखते हुये कहा—’श्रीमान् जी! यहाँ या वहाँ मृत्यु तो सब जगह अपनी ही है फिर हम उससे परेशान क्यों हों? हमें तो सुन्दर भविष्य की कल्पना करनी चाहिए। परेशानी में पड़ने की बात ही हम क्यों सोचें। जैसी स्थिति आयेगी उसका सामना किया जायेगा।’

उत्साहवर्द्धक मनोभूमि मनुष्य के लिये एक प्रकार का दैवी चमत्कार है जो उसे अनेक कठिनाइयों से निकाल कर सुख, सन्तोष, प्रसन्नता और उल्लास प्रदान करती है। इन गुणों से आत्मा का आविर्भाव होता है। डेल कार्नेगी का तो यहाँ तक विचार है कि आशावादी और उत्साहवर्द्धक दृष्टिकोण से मनुष्य चिन्ता, भय और बड़ी-से-बड़ी बीमारियों पर भी विजय प्राप्त कर सकता है। जीवन के प्रति उसे प्रेम करना चाहिये। उसे कोई सहयोगी मिले या न मिले आत्म-सहानुभूति के विचारों में रमण करना चाहिए। यह सर्वोत्तम औषधि है जो मारक विषों को भी प्रभावहीन कर सकती है।

इस संसार की बनावट ही ऐसी है कि यहाँ कि सुख के साथ दुःख भी अवश्य आते हैं। बलवान् व्यक्तियों को रोग, धनी व्यक्तियों को भी ऋण-ग्रस्तता, नेक और ईमानदारों को भी समस्यायें सताती हैं। विपरीत परिस्थितियों का आना जीवन का स्वाभाविक गुण है। दिन के उजाले के बाद रात का अँधेरा आता ही है। हर प्रातः के साथ सन्ध्या का सनातन सम्बन्ध जुड़ा हुआ है। इनमें जो अच्छी परिस्थितियों का चिन्तन करते रहते हैं वे बुद्धिमान कहे जाते हैं। उनके सामने कठिनाइयाँ आती है तो चुटकी बजाते हल कर ली जाती है। पर जो रात के अंधियारे, दिन की सन्ध्या, बादल, बिजली, कड़क मौत, घाटा, असुरक्षा, चोर, भूत के भय काँपते रहते हैं उनके लिए सुख की वस्तुयें भी धोखा सिद्ध होती हैं इसलिये उनकी कल्पना ही क्यों की जाये? हम शुभ सोंचे और सुखद भविष्य की आशा रखें यह कहीं अधिक उत्तम बात है; उससे कठिनाइयों का आधा हल तत्काल हो जाता है।

मेरा वजन 5 पौण्ड कम हो गया—ऐसा सोचकर मानसिक दबाव न पैदा कीजिये। स्वास्थ्य पर ही विचार करना पड़े तो यों कहिये—वाह! कल्लू 86 पौण्ड का है मेरा तो वजन अभी भी 100 पौण्ड है कल्लू से 14 पाँण्ड अधिक। विद्यासागर को मुझसे कुल 25) रुपये अधिक वेतन मिलता है पर मुझे तो दीनानाथ, शम्भु दयाल इन सबसे 30-30 रु. अधिक मिलते हैं फिर अभी तो विभागीय परीक्षायें दूँगा, शैक्षणिक योग्तायें बढ़ाऊँगा। इससे और भी तरक्की होगी। तात्पर्य यह है कि विचार करने का तरीका ऐसा हो जो अपने को ऊपर उठने का निरन्तर उत्साह दे सकता हो। किसी भी रूप में अपनी मानसिक प्रसन्नता स्थिर रखने का प्रयत्न हर व्यक्ति को करना चाहिए। जिसे इस तरह का जीवन जीने की कला आ गई उसने दीर्घ-जीवन का रहस्य जान लिया। आगे बढ़ने वाले सभी व्यक्ति आशावादी दृष्टिकोण वाले ही रहे हैं।

आशावादी दृष्टिकोण एक दैवी वरदान है। आशा पर पाँव रखकर ही मनुष्य अपने जीवन का सारा ताना-बाना जोड़ता है। आशा ही सुखी रहती है, आशा ही संतुष्ट बनाती है, आशा ही जीवन है। उसे त्याग कर निराशा की मृत्यु का वरण हम क्यों करें? जितने दिन जीना है उतने दिन उत्साहपूर्वक जियें, मन और आत्मा को उन्मुक्त रखकर जियें। हमें सदैव इस बात पर भरोसा होना चाहिये कि हम आज की अपेक्षा कल निश्चित रूप से आगे बढ़े हुये होंगे, ऊँचे चढ़े होंगे। यही मनुष्य की साँसारिक उन्नति का मूल-मन्त्र है और आध्यात्मिक सुखों का साधन भी।


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