वेषभूषा में मूल्याँकन नहीं

December 1966

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

वेषभूषा में मूल्याँकन नहीं-

बंगाल के प्रसिद्ध नेता वायसराय की कौंसिल के सम्मानित सदस्य श्री कृष्णदास पाल बड़े ही सादे व्यक्ति थे। बाहरी आडम्बर उनको छू तक न गया था। किन्तु उनके पिता तो सादगी और सरलता की साक्षात प्रतिमा ही थे।

एक बार एक अंग्रेज किस कार्य से श्री कृष्णदास पाल से मिलने उनके बंगले पर गया। वह घोड़े पर सवार था। लान में जाकर उसने एक साधारण-सी धोती पहने एक वृद्ध को फूल-पौधों की सँभाल करते देखा। अंग्रेज ने समझा कि यह पाल महोदय का नौकर होगा। बूढ़े को घोड़े की लगाम थमा कर उसने पूछा—क्या पाल महोदय अन्दर हैं? इतने में पाल महाशय अन्दर से आये और वृद्ध के हाथ से घोड़े की लगाम लेकर आगन्तुक अंग्रेज से बोले—’इनसे मिलिये, ये हमारे पूज्य पिताजी हैं।’

अंग्रेज को अपने व्यवहार पर बड़ी लज्जा आई। उसने तपाक से श्री कृष्णदास पाल के पिता से हाथ मिलाया और अपने व्यवहार के लिये क्षमा माँगते हुये कहा- ‘आप भारतीय लोग बड़े सरल और सादे होते हैं। मुझे अपने व्यवहार के लिये खेद है। किन्तु मैंने अपनी इस गलती से यह शिक्षा भी ग्रहण कर ली है कि बिना परिचय के किसी की वेशभूषा देखकर ही उसका मूल्याँकन नहीं करना चाहिये’


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118