अपने समाज में सैकड़ों ऐसी प्रथा-परम्परायें चली आ रही हैं, जिनका आधार अन्धविश्वास के सिवाय और कुछ नहीं है। इन अन्धविश्वासों से लाभ तो क्या होना, हानि अवश्य होती है। किन्तु लोग उन पर विचार किये बिना आँख मूँद कर मानते चले जाते हैं। हानि उठा कर भी अन्धविश्वासों को मानते चले जाने का कारण यही होता है कि लोगों में ठीक से सोच सकने की विवेक बुद्धि और उसको तर्क की कसौटी पर कस कर परखने का साहस नहीं होता। अनेक बार तो लोग किसी अन्धविश्वास की व्यर्थता और उससे होने वाली हानियों को जान कर भी संस्कारों वश उनका त्याग नहीं कर पाते। परम्परागत किसी अन्धविश्वास को अपनाये रहने से वह मनुष्य के संस्कारों के साथ मिल जाता है और तब उसके छोड़ने के विचार से ही अनिष्ट की एक-अव्यक्त आशंका सताने लगती है। अधिकाँश अन्धविश्वासों के साथ किसी देवी-देवता अथवा अव्यक्त सत्ता के प्रति आदर अवज्ञा की भावना जुड़ी रहती है।
किसी दिन को शुभ और किसी दिन को अशुभ माना जाना स्पष्ट रूप से एक अन्धविश्वास है। इसके पीछे किसी प्रकार का विवेकसम्मत तर्क नहीं है। मनुष्य को समझना चाहिये कि सब दिन उस परम पिता परमात्मा के बनाये हुए हैं। परमात्मा शुद्ध-बुद्ध एवं पवित्र है। इसलिये उसकी किसी रचना में दोष निकालना मनुष्य की अपनी विकृत बुद्धि का प्रदर्शन मात्र है।
हर दिन पवित्र तथा शुभ है। यह बात भिन्न है कि परिस्थिति, संयोग अथवा अवसर के कारण कोई वार अथवा तिथि किसी के लिये असुविधाजनक हो जाये। इससे उसकी पवित्रता में किसी प्रकार का अन्तर नहीं पड़ता। विद्वानों का कहना है कि शुभ कार्यों के लिये हर दिन शुभ और अशुभ कामों के लिये मान्यता रखने में हर प्रकार से हित है। शास्त्रों में कहा गया है कि जिस समय दान करने की सद्प्रवृत्ति मन में उठे उस समय बाय हाथ की वस्तु को दाहिने हाथ में लेने जितना भी विलम्ब न करना चाहिये। हो सकता है कि उतनी देर में कोई आसुरी प्रवृत्ति उभर आये जिससे दान की प्रवृत्ति दब जाये और मनुष्य एक पुण्य परमार्थ से वंचित रह जाये।
शुभ-अशुभ दिन का विचार करना ही है तो वह केवल अशुभ कार्यों के लिये ही करना ठीक है। ऐसा करने से उस समय अशुभ कर्म टल जायेगा और मनुष्य पाप से बच जायेगा। चोरी-जारी, जुआ, लड़ाई-झगड़ा आदि अपकर्म करने की प्रवृत्ति जगते ही उसे कार्य रूप में परिणित करने से पूर्व यदि मनुष्य उसके लिये शुभ-अशुभ आवेग अवश्य ही प्रतिबन्धित हो जायेगा और सम्भव है तात्कालिक अक्रिया से अपराध अथवा अशुभ करने का विचार शिथिल हो जाये मनुष्य का शुभ विवेक प्रबुद्ध हो उठे। फिर फलित ज्योतिष की गणना से किसी बाबा के लिये कोई दिन पूरी तरह शुभ नहीं है। हर दिन में कोई न कोई दोष अवश्य निकल आता है। इस प्रकार अशुभ करने के लिये शुभ मुहूर्त की प्रतीक्षा करते-करते उसकी वृत्ति बदल सकती और वह उस पाप तथा उसके भोग से बच सकता है जो तत्काल सक्रिय हो उठने से आ पड़ता और भोग करना होता। इस दृष्टिकोण से तो दिनों का शुभ-अशुभ विचार किसी हद तक समझ में आता है, शुभ कार्यों के लिये नहीं।
परमात्मा के बनाये सभी दिन समान रूप से शुभ एवं पवित्र हैं। इनमें शुभ-अशुभ का आरोप मनुष्य स्वयं अपने विचारों से कर लेता है, जिस दिन, जिस क्षण किसी में बुरा विचार आये अथवा कोई अप कार्य करने की प्रवृत्ति हो, मानना चाहिये कि वह दिन, वह क्षण मनुष्य के लिये अशुभ है। इसके विपरीत जिस दिन, जिस क्षण पर शुभ विचार एवं पवित्र प्रवृत्ति उदय हो मानना चाहिये कि वह दिन, क्षण शुभ तथा कल्याणकारी है। वैसे परमात्मा का बनाया सारा समय शुभाशुभ से परे परम पवित्र एवं दोष-रहित है।
प्रसिद्ध है कि रावण का विचार समुद्र पर पुल बनाने और स्वर्ग तक सीढ़ी लगवाने का था। किन्तु उस शुभ कार्य के लिये वह कोई शुभ मुहूर्त खोजता रहा। बात टलती रही और तिथि-वार के शुभाशुभ ने यहाँ तक बाधा डाली कि रावण का वह शुभ विचार क्रिया रूप में परिणित होकर पूरा न हो सका और वह इस संसार से चला गया। इसके विपरीत जब उसने सीताजी को चुराने का विचार किया तो शुभ-अशुत मुहूर्त की खोज नहीं की और विचार आते ही उसे क्रिया रूप में परिणित कर दिया, एक क्षण का भी विलम्ब नहीं किया। कितना अच्छा होता कि दशानन सेतु बनवाने और सीढ़ी लगवाने के शुभ कार्यों का श्रीगणेश करने में शुभाशुभ मुहूर्त के चक्कर में न पड़ता और सीताहरण करने से पूर्व हजार बार शुभाशुभ मुहूर्त का विचार करता। रावण यदि ऐसा कर सका होता तो उसकी कीर्ति का इतिहास उस अपवाद से भिन्न होता जो आज भी उसके नाम के साथ चला आ रहा है। वह दिन निश्चय ही उसके लिये शुभ था जिस दिन उसने समुद्र पर सेतु बनवाने और स्वर्ग तक सीढ़ी लगवाने का विचार किया था, और वह दिन घड़ी निश्चय ही अशुभ थी जिस समय उसके मस्तिष्क में सीता हरण करने का विचार आया। खेद है कि मनुष्य शुभ कर्मों के लिये तो मुहूर्त की खोज करता हुआ समय टालता रहता है, किन्तु अशुभ कार्य के लिये उसकी खोज नहीं करता। इसे विपरीत बुद्धि अथवा अविवेक के सिवाय और क्या कहा जायेगा?
इस शुभाशुभ मुहूर्तवाद का अविवेक यहाँ तक बढ़ गया है कि लोग अपने आवश्यक कार्यक्रमों तक को स्थगित करते और हानि उठाते रहते हैं। अनेक लोग परदेश जाते समय दिशा शूल का विचार करते हैं, जिसके अनुसार किसी दिशा की यात्रा के लिये कोई दिन अशुभ और कोई दिन शुभ बतलाया जाता है। मुहूर्तवादी लोग दिशा शूल के भय से यात्रा स्थगित कर कार्य की हानि कर लेते हैं। जैसे उन्हें सोमवार को पूर्व दिशा में किसी आवश्यक काम के लिये जाना है और वह दिन उस ओर के लिये दिशाशूल के अंतर्गत आता है तो मुहूर्तवादी यात्रा स्थगित कर देगा जिससे अवश्य ही उसकी काम बिगड़ जायेगा और यदि आवश्यकता का दबाव उसे जाने के लिये विवश ही करता है तो वह रास्ते भर अनिष्ट की आशंका से वस्त्र रहेगा। काम की सफलता में सन्देह के कारण निरुत्साह एवं निराशा की पीड़ा भोगता रहेगा, जिसका भावनात्मक कुप्रभाव उसकी क्रिया एवं कार्य पर पड़ेगा। इस प्रकार न तो उसे यात्रा का आनन्द आयेगा और यदि काम में थोड़ी-बहुत सफलता मिल जाती है, तो इसे या तो संयोग कहना पड़ेगा अथवा उसका सौभाग्य। वैसे उसकी क्रिया एवं भावना दोनों असफलता की द्योतक होती है।
ऐसे मुहुर्तवादी न जाने कितने प्रत्याशी दिशा शूल के भय से अपने इन्टरव्यू तथा नौकरियों के लिये, आवश्यक यात्रायें स्थगित हुए प्रतिदिन अवसर खोते, नौकरी बिगाड़ते अथवा उसके बनाये रखने के लिये बाद में खुशामद करते, नाक रगड़ते, माँगते और दण्ड पाते रहते हैं। यह भले आदमी यह क्यों नहीं सोचते कि यह जो रेल गाड़ियों, मोटरों, बसों, जहाजों और हवाई जहाजों में भरे हुए लोग उसी दिन उसी ओर को जाते रहते हैं, दिशा शूल इनकी कोई हानि नहीं कर पाता तो हमारा ही अनिष्ट किस प्रकार सम्भव है।
बात वास्तव में यह है कि न तो कोई शुभाशुभ दिन मुहूर्त होता है और न अनिष्ट दिशा अथवा दिशा शूल। यह अन्धविश्वास तो अपनी मानसिक दुर्बलता होता है जो उसे भयभीत अथवा शंकाकुल किया करती है। ऐसे शंकाशील अशुभ विश्वासी उन्मुक्त-मानस व्यक्तियों की अपेक्षा उन व्यक्तियों से कहीं अधिक घाटे में रहते हैं जो परमात्मा के बनाये हर दिन, हर घड़ी और हर दिशा को सदा शुभ मान कर निर्धारित समय पर पूरे उत्साह, असन्देह एवं आशा से अपना कर्तव्य करते हैं। वे जीवन में कदाचित ही असफलता का ताप पाते हैं। इसके विपरीत मुहूर्त मान्यता तथा शुभा शुभवादी पग-पग पर असफलता एवं अनिष्ट की शंका से घिरे रहते देखे जाते हैं।
शुभाशुभ मुहूर्तवाद के अभिशाप से व्यक्ति ही नहीं राष्ट्रों तक की हानि होती है। इस दुर्बलता से इतिहास के अक्षर बदल जाते हैं। बड़े-बड़े वीर एवं सम्पन्न राष्ट्र परास्त एवं पराधीन हो जाते हैं। संसार में भारत एक ऐसा देश है जो एक बड़ी सीमा तक इस अन्धविश्वास को पाले चला आ रहा है। जहाँ अन्य राष्ट्र कार्य करने में एक छोटे से क्षण का विलम्ब हानिकारक मानते और साधारण कामों में भी तात्कालिकता वर्तते हैं, वहाँ यह आध्यात्मिक तथा दिव्य ज्ञान की भूमि भारत के निवासी बड़े-बड़े विषय एवं महत्वपूर्ण अवसरों पर मुहूर्त के शुभाशुभ होने की अल्प मान्यता के कारण अपने कार्यक्रमों को स्थगित कर देते हैं। इस अन्धविश्वास ने देश को कितनी हानि पहुँचाई है, कितना संत्रस्त एवं अपमानित कराया है उसका विवरण पढ़ कर दुर्भाग्य पर रोना आता है।
महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर चढ़ाई की। राजपूत राजाओं की अनी-कनी लोह लेने और मन्दिर की रक्षा करने के लिये सन्नद्ध होकर आगे बढ़ने वाली थी तब तक राज-ज्योतिषियों ने गणना करके बताया कि इस समय मुहूर्त शुभ नहीं है यदि प्रतिरोध के लिये आगे बढ़ा गया तो पराजय हो जायेगी। उन दिनों मुहूर्तवाद अपनी चरम सीमा पर था और प्रजा से लेकर राजा तक उस दुर्बलता के शिकार बने हुए थे। निदान सेनाओं के उठे हुए कदम ठिठक गये, निकली हुई तलवारें म्यान में वापस हो गईं और चढ़े हुए तीर तरकश में डाल दिये गये। इस अशुभ हतोत्साह का जो परिणाम होना था वह हुआ। गजनवी ने मन्दिर पर आक्रमण किया। उसे तोड़ा और भगवान शंकर के ज्योति लिंग को अपने गुर्ज से टुकड़े-टुकड़े कर दिया। यह था शुभाशुभ मुहूर्त के अन्धविश्वास का कुफल जिसे अपमान, अवमानना, कलंक और पराजय के रूप में पूरे राष्ट्र को भोगना पड़ा और भारत के इतिहास में एक ऐसा कलंक पृष्ठ जुड़ गया जिसका प्रतिकार सम्भव नहीं। किन्तु फिर भी एक समय की यह हानि सदा सर्वदा के लिये शुभ हो जाती यदि भारतवासियों ने इससे शिक्षा ली होती और शुभाशुभ मुहूर्तवाद का अन्धविश्वास छोड़ दिया होता। किन्तु क्या ऐसा हो सका?
बख्त्यार खिलजी ने बंगाल पर चढ़ाई की। राजा ने लड़ाई की तैयारी की। राज-ज्योतिषी ने पोथी खोली—तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण चन्द्रमा, मुद्रा भरणी आदि के कारण कोई दिन शुभ तो होता ही नहीं निदान पोथी-परायण पंडित ने बतलाया मुहूर्त शुभ नहीं है लड़ाई में हार हो सकती है। अन्धविश्वासी राजा भाग गया और बख्त्यार खिलजी ने बंगाल की मसनद पर बैठ कर बिना लड़े जीत जाने में सहायक भारत के मुहूर्तवाद को धन्यवाद दिया।
मुहूर्तवाद की अन्धमान्यता के कारण होने वाली पराजयों तथा अवमाननाओं से भारत का इतिहास भरा पड़ा है। मुहूर्तवाद और शुभाशुभ तिथि वार की मान्यता समय की सबसे बड़ी दुश्मन और अवसर की घोर शत्रु है। जो इसमें विश्वास करता और पत्रा देख कर पैर उठाता है वह कर्म क्षेत्र में ऐसा कायर ही माना जायेगा जो न तो समय का मूल्य जानता है और न विश्वास-पूर्ण पुरुषार्थ में विश्वास करता है। कोई दिन, वार, घंटिका न शुभ है न अशुभ। यह एक अन्धविश्वास है जो मनुष्य की अपनी भावना के अनुसार फलीभूत होता है।