प्रतिज्ञा का कर्तव्य और उत्तरदायित्व

December 1966

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भावावेश अथवा कौतूहल में भरे प्रतिज्ञापत्र वापिस लेलें

जिन परिजनों ने पाँच वर्ष तक स्थायी सदस्य बने रहने के लिए जुलाई मास के अंक में संलग्न फार्म भरकर भेजा है, उन्हें अपना कर्तव्य और उत्तरदायित्व भली प्रकार समझ लेना चाहिए। ऐसा न हो कि ऐसे ही भावावेश में आकर बिना समझे-बूझे फार्म भरकर कौतुक कौतूहल की तरह भेज दिये जायें और उन प्रतिज्ञाओं की ओर ध्यान ही नहीं दिया जाय जिनके आधार पर परिवार का परिष्कार एवं पुनर्निर्माण सम्भव है। एक घंटा समय नवनिर्माण की विचारधारा का विस्तार करने के लिए इन कर्मठ सदस्यों को लगाना चाहिए। बाहर के लोगों के साथ संपर्क कम बन सके तो समय अपने परिवार के लोगों, स्त्री, पुत्र, पुत्री, भाई, बहिन आदि के साथ सैद्धान्तिक चर्चा करने में लगाया जा सकता है। मित्र, सम्बन्धी, परिचित लोगों के साथ भी बहुत सा समय गुजारना पड़ता है और तरह-तरह की बातें करनी पड़ती हैं। इसके साथ ही नवनिर्माण विचारधारा की भी चर्चा की जा सकती है। इस प्रकार अलग से एक घंटा न सही, सब मिलाकर आदर्शवादी प्रेरणाओं से अपने घर तथा बाहर के लोगों को प्रकाश दिया जा सकता है। इस प्रकार एक घंटा सैद्धान्तिक चर्चा करते रहने में किसी को कोई कठिनाई नहीं हो सकती।

प्रतिदिन दस नया पैसा की बचत तुरन्त आरम्भ कर दी जानी चाहिए। यह पैसे कहीं किसी के पास दान स्वरूप नहीं भेजे जाने हैं। वरन् अपने घर में इसे “नवनिर्माण पुस्तकालय” स्थापित करने में ही खर्च किया जाना है। ऐसा पुस्तकालय-सच्चे देवालय की आवश्यकता पूर्ण करेगा। ‘अखण्ड ज्योति’ तथा ‘युग निर्माण योजना’ पत्रिकायें उसी पैसे से मँगाई जाती हैं। अब अखण्ड ज्योति को पाक्षिक हो गई समझना चाहिए। पत्रिकाओं के नाम दो हैं पर वस्तुतः एक ही तथ्य के सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक पहलुओं को अलग-अलग से समझाने के लिए दो बार उसे निकाला जाता है। इसलिए जिनने फर्म भरे हैं उन्हें दोनों पत्रिकाओं का अनिवार्य रूप से सदस्य रहना चाहिए। जिनने युग निर्माण योजना का चन्दा फार्म भरने के बाद भी अभी न भेजा हो उन्हें अविलम्ब इस कमी को पूरा कर लेना चाहिए।

घरेलू नवनिर्माण पुस्तकालय में सस्ते ट्रैक्टों की भरमार रहेगी, वे ही अपना प्रयोजन पूरा करेंगे। 70 ट्रैक्ट पिछले दिनों छप चुके हैं इन्हें मँगा लेना चाहिए। जो दस पैसे प्रतिदिन बचाये जाते हैं इसी हिसाब को आगे पीछे करके ट्रैक्टों की यह प्रथम किश्त मँगा लेनी चाहिए। प्रस्तुत ट्रैक्ट समाज निर्माण के कार्यक्रमों पर प्रकाश डालते हैं। अगली किश्त मई के आस-पास छपेगी उसमें व्यक्ति तथा परिवार की समस्याओं पर सुलझाव प्रस्तुत किया जायगा। इस प्रकार मानव जीवन के प्रत्येक पहलू पर एक सुव्यवस्थित क्रमबद्ध एवं युग के अनुरूप सांगोपांग विचारधारा इन ट्रैक्टों के द्वारा प्रस्तुत की जायगी। अपने आपमें यह छोटा-सस्ता किन्तु सर्वांगपूर्ण साहित्य इस युग की एक अद्भुत एवं अनोखी चीज होगी। इसलिए इस पुस्तकालय की स्थापना का श्री गणेश इस वर्ष हर सक्रिय कार्यकर्ता को अपने घर में करना चाहिए और अपने प्रभाव परिचय क्षेत्र में लोगों के घरों पर जा-जा कर यह साहित्य पढ़ने देने और वापिस लेने का कार्य आरम्भ कर देना चाहिए। अशिक्षितों को यह साहित्य सुनाये जाने का प्रबन्ध किया जाना चाहिए।

जिन्होंने दोनों प्रतिज्ञाओं का स्वरूप समझ लिया है, जो उनका कर्तव्य और उत्तरदायित्व निर्वाहन को तत्पर हों वे ही वे अपनी प्रतिज्ञा पर दृढ़तापूर्वक आरुढ़ रहने को तत्पर हो जायें। जिनने भावावेश में और कौतूहलवश फार्म भरकर भेज दिया हो और कर्तव्य पालने तथा उत्तरदायित्व निबाहने में असमंजस अनुभव करते हों वे अपने प्रतिज्ञापत्र वापिस मँगवा लें। झूठे प्रतिज्ञापत्र हर दृष्टि से अवाँछनीय एवं अशोभनीय रहेंगे।

*समाप्त*


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