अब तू मेरी सच्ची बेटी है

December 1966

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अब तू मेरी सच्ची बेटी है—

हजरत मोहम्मद एक दिन फातिमा से मिलने उसके घर गये। वहाँ जाकर देखा उनकी बेटी हाथों में चाँदी के मोटे-मोटे कंगन पहने हैं और दरवाजों पर रेशमी परदे लहरा रहे हैं। मोहम्मद साहब बिना कुछ बोले उल्टे पाँव घर से वापस चल दिये और मस्जिद में जाकर रोने लगे।

फातिमा कुछ न समझ सकी। उसने अपने लड़के को दौड़ाया कि देख तो तेरे नाना घर आकर एकाएक वापस क्यों चले गये।

लड़के ने जाकर देखा कि नाना मस्जिद में बैठे रो रहे है। उसने घर से एकाएक वापस चले आने और इस प्रकार रोने का कारण पूछा। मुहम्मद साहब ने कहा—’वहाँ गरीब भूख से परेशान होकर मस्जिद के सामने रो रहे हैं और वहाँ मेरी बेटी रेशमी परदों के बीच चाँदी के कड़े पहने मौज कर रही है—यह देखकर मुझे बड़ी शर्म आई और मैं मस्जिद में वापस चला आया।’

लड़के ने जाकर अपनी माँ को सारी बातें बतलाई। फातिमा ने रेशमी परदों में चाँदी के कड़े बाँधकर पिता के पास भिजवा दिये। मोहम्मद साहब ने उन्हें बेचकर गरीबों को रोटी बाँटी और खुशी से जाकर अपनी बेटी से मिले और बोले—अब तू मेरी सच्ची बेटी है।


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