दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन

July 1965

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विवाहोन्माद प्रतिरोध आन्दोलन आज के हिन्दू समाज की सबसे बड़ी एवं सबसे प्रमुख आवश्यकता है। उसकी पूर्ति के लिए हमें अगले दिनों बहुत कुछ करना होगा। हमारा यह प्रयत्न निश्चित रूप में सफल होगा। अगले दिनों हवा बदलेगी और आज की खर्चीली वैवाहिक कुरीतियाँ पीढ़ी वालों के लिए एक कौतूहल की बात रह जायगी। कुछ वर्षों बाद भावी सन्तान को यह खोज करनी पड़ेगी कि हमारे पूर्वज थे तो बुद्धिमान पर ऐसी मूर्खतापूर्ण रीति-रिवाज के जंजाल में फँसकर इतना कमर तोड़ अपव्यय आखिर करते क्यों थे? वह दिन निश्चित रूप में आने हैं। समय की माँग, युग की पुकार इतनी प्रबल होती है कि उसके द्वारा बड़े-बड़े प्रवाह मोड़ दिये जाते हैं। इस परिवर्तन का लाभ अगली पीढ़ी को मिलेगा, हमें तो इसके लिए भागीरथ तप ही करना है और प्रतिरोध करते हुए गोली न हो तो कम से कम गाली तो खाते ही रहना है। अन्ध मान्यताओं की भी नशेबाजी जैसी लत होती है, वह मुश्किल से छूटती है। इसलिए काम बहुत कठिन है। पर कठिन काम भी मनुष्य ही करते हैं। हम कठिनाइयों को चीरते हुए आगे बढ़ेंगे और समय को बदल डालने की प्रतिज्ञा पूरी करके रहेंगे।

विवाहोन्माद की जड़े काफी गहरी हैं। उन्माद रोगग्रस्त व्यक्ति के गले कोई बात उतारना काफी कठिन होता है। रूढ़ियों की चुड़ैल जिनकी गर्दन पर सवार है उनके लिए समझ की बात मानना अपनाना काफी कठिन होगा। यह प्रचार करते हुए जहाँ जाया जाय वहाँ प्रथम बार में ही सफलता मिल जाय, इसकी आशा कम ही होगी। कितनी ही बार प्रचारक को निराश और तिरस्कृत होकर लौटना पड़ेगा। ऐसी दशा में मानव मनोविज्ञान के अनुसार यह हो सकता है कि तिरस्कृत करने वाले और तिरस्कार सहने वाले के बीच मनोमालिन्य का अंकुर उत्पन्न हो जाय और उसके कारण आगे मिलने-जुलने या मधुर सम्बन्ध बनाये रहने में बाधा उत्पन्न होने लगे। यदि ऐसा हुआ तो उससे अपने मिशन को नुकसान ही पहुँचेगा।

इस समस्या का हल करने के लिए यह आवश्यक प्रतीत हुआ है कि विवाहोन्माद प्रतिरोध आन्दोलन के साथ-साथ एक छोटा सहायक आन्दोलन और भी चालू रखा जाय। जिससे जो लोग आदर्श विवाहों की पद्धति अपनाने के लिए तैयार न हो सकें उन्हें उस सहायक आन्दोलन के किसी अंश के साथ सहमत करने का प्रयत्न किया जाय। किसी न किसी बात पर यदि व्यक्ति को सहमत कर लिया जाय तो विदाई के समय मधुरता बनी रहती है और आगे के प्रेम सम्बन्धों में अन्तर नहीं आता। आज की थोड़ी सहमति आगे चलकर बड़ी सहमतियों के रूप में परिणत हो सकती है। अतएव एक सरल आन्दोलन भी साथ-साथ चलते रहने की आवश्यकता अनुभव की गई है।

इस सहायक आन्दोलन का नाम है—”दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन” यों इसकी उपयोगिता, आवश्यकता एवं महत्ता भी किसी प्रकार कम नहीं। समाज निर्माण एवं सुधार के लिए दूसरा सहायक आन्दोलन के अंतर्गत आने वाले काम भी कम महत्व के नहीं हैं। चरित्र निर्माण, व्यक्ति निर्माण एवं समाज निर्माण में इनका भी भारी योगदान रहेगा। पर सहायक आन्दोलन उसे इसलिए कहा गया है कि उसमें बताये हुये दस कार्यों में से किसी न किसी के लिये कोई भी व्यक्ति आसानी से सहमत किया जा सकता है और बिना अधिक कठिनाई के आन्दोलन में सम्मिलित होने वाला, कोई एक प्रतिज्ञा लेने वाला बन सकता है।

दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन के अंतर्गत दस कार्यक्रम रखे गये हैं—

माँसाहार—माँस, मछली, अण्डे एवं काटे हुए पशुओं के चमड़े का उपयोग।

नशेबाजी—तम्बाकू, भाँग, गाँजा, अफीम, शराब आदि नशों का सेवन।

पशुबलि—देवी देवताओं के नाम पर निरीह पशु-पक्षियों की हत्या।

मृत्यु भोज—मृतक के नाम पर धूमधाम भरी दावतों का अपव्यय।

ऊँच-नीच—गुणों की अपेक्षा पद, वंश, जाति के कारण किसी को ऊँचा या नीच मानना।

नारी तिरस्कार—पुरुष की तुलना में नारी का गौरव, महत्व, सम्मान या अधिकार कम मानना।

बेईमानी-चोरी, छल, जुआ, समर्थ होते हुए भी अपने लिये भिक्षा याचना अनीति एवं बिना परिश्रम की कमाई।

अपव्यय-फैशन, जेवर, आडम्बर, विलासिता एवं व्यसनों की फिजूलखर्ची।

अन्ध विश्वास— भूत-पलीत, टोना, टोटके शकुन-अपशकुन जैसी मूढ़ मान्यतायें।

असभ्यता—गाली-गलौज, गन्दगी, आलस-अशिष्टता, कृतघ्नता, आवेश जैसे दुर्गुण।

इन दोष-दुर्गुणों में से कुछ न कुछ तो हर व्यक्ति में पाये जाते हैं। उनमें से एक-दो को भी छोड़ दिया जाय तो उससे व्यक्ति एवं समाज के उत्थान में बड़ी सहायता मिलती है। जिस प्रकार बुरी आदतें छूत की बीमारी की तरह फैलती हैं और दूसरों को भी वही लत लगाती है उसी प्रकार उनका त्याग करने और आदर्शवाद अपनाने की प्रवृत्ति भी यदि पनपे तो उसका प्रभाव अनेक लोगों पर पड़ता है और वे भी उसी प्रकार प्रभावित होते हैं और यह शृंखला तेजी के साथ आगे चलने लगती है।

‘दुष्प्रवृत्ति निरोध आन्दोलन’ भी साथ-साथ ही हमें चलाना है। इसके लिये विवाहोन्माद आन्दोलन जैसे प्रतिज्ञा पत्र भी छपाये गये हैं और उन्हें भरने वालों के लिये प्रमाण पत्र जैसे छोटे-छोटे अभिनन्दन पत्र भी। इस संदर्भ में भी 10 ट्रैक्ट लिखे और छापे जा रहे हैं। वे भी दो महीने के भीतर तैयार हो जायेंगे। इस प्रकार इन 10 दुष्प्रवृत्तियों के विरुद्ध प्रचार करना और वातावरण बनाना भी संभव हो जायगा। जब तक बिना ट्रैक्टों के भी प्रवचनों एवं विचार विनिमय द्वारा लोगों को आवश्यक तथ्य समझाये जा सकते हैं और इन बुराइयों को छुड़ाने का आन्दोलन चलाया जा सकता है।

नव निर्माण की दिशा में यह दूसरा आन्दोलन भी महत्वपूर्ण है। दोनों मिलकर सोने में सुगंध का कार्य करेंगे। टोलियाँ बनाकर या अकेले भी इन आन्दोलनों से जनता को परिचित एवं प्रभावित करने के लिये उनमें सम्मिलित एवं प्रतिज्ञाबद्ध करने के लिये हमें जुट जाना चाहिये। हमारा आज का श्रम उज्ज्वल भविष्य की संभावनाएं प्रस्तुत करेगा। आज का अपना

काम बीज के गलने पर वृक्ष की उत्पत्ति का उदाहरण बनेगा


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