मानव जीवन को सार्थक बनायें

July 1965

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

मानव जीवन भगवान् का दिया हुआ अनुपम वरदान है। अगणित योनियों में भ्रमण करने के पश्चात् यह अलभ्य अवसर चिरकाल के पश्चात् मिलता है। दुरुपयोग करने पर यह छिन जाता है और फिर निम्न योनियों में भ्रमण करने के लिए चिरकाल तक अधोगति में रहना पड़ता है। जो सुविधायें इस शरीर में प्राप्त हैं, वे अन्य किसी शरीर में नहीं। जो अवसर अन्य किसी जीवधारी के प्राप्त न हो, उसे मनुष्य को प्रदान करते हुए भगवान् ने कुछ विशेष उत्तरदायित्व भी इसे सौंपे हैं। उचित यही हैं कि वह उनकी अवहेलना न करे।

पेट पालने और सुख चैन के साधन जुटाने की सुविधा एवं प्रतिभा तो पशु पक्षियों को भी प्राप्त है। मनुष्य की विशेषता यह कि वह विवेकवान् संयमी, सद्गुणी और उदार बने। अपना आत्मिक स्तर ऊँचा उठाते हुए—अपूर्णता से पूर्णता की ओर चले। इस दिशा में जितनी प्रगति होगी, उतना ही उसका जीवन सार्थक माना जायगा।

आत्मिक विभूतियों की अभिवृद्धि इस बात पर निर्भर है कि वह दूसरों के साथ कितना उदार व्यवहार करता है। आत्मिक सद्गुणों में आत्म-संयम और परोपकार ये दो ही प्रधान हैं। जो इन दोनों की उपलब्धि में जितना अधिक निरत है, समझना चाहिये कि उसके उतना ही अधिक मानव जीवन का महत्व समझा और उसे प्राप्त करने में आगे बढ़ा है।

—स्वामी विशुद्धानन्द भारती


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles