अब अगला शिविर 15 दिन का होगा, आश्विन सुदी 1 से पूर्णिमा तक। अँग्रेजी तारीखों के हिसाब से वह 26 सितम्बर से आरम्भ होकर 10 अक्टूबर तक चलेगा। नवरात्रि, विजया दशमी और शरद पूर्णिमा यह तीन पर्व उसी अवधि में पड़ेंगे। जो शिक्षण जेष्ठ के एक महीने में पूरा हुआ है, उसमें से लेखन शिक्षण को छोड़कर शेष सब कुछ 15 दिन में ही सिखाने का प्रयत्न किया जायगा। गीता कथा, सत्य नारायण कथा, षोडश संस्कार, पर्व और त्यौहार मनाना, गायत्री यज्ञ आदि धर्म मंच से हो सकने वाले कार्यक्रमों को इन्हीं दिनों सीखा जा सकता है। नवरात्रि का गायत्री पुरश्चरण भी इन्हीं दिनों हो सकता है। जीवन जीने की कला का प्रशिक्षण एवं व्यक्ति गत समस्याओं के समाधान का परामर्श क्रम इन दिनों चलता ही रहता है। जिन्हें अपना या अपने स्त्री, बच्चों का कोई संस्कार कराना हो, वे भी उन्हीं दिनों में आ सकते हैं।
आश्विन के इस 15 दिवसीय शिविर में जिन्हें आना हो, अभी से स्वीकृति प्राप्त कर लें। संख्या पूरी हो जाने हो अभी से स्वीकृति मिलना कठिन होता है।
उपरोक्त जो शिक्षण 15 दिन में दिया जाना है वह केवल अपनी ओर से बता देने मात्र का होगा। धर्म-प्रचारक एवं कर्मकाण्डी पण्डित बनने के लिए इन शिक्षाओं का अभ्यास करना होगा। अभ्यास के लिए कम से कम पाँच महीने का समय चाहिए। इतने से कम में इतने विषयों में अभ्यस्त बन सकना सम्भव नहीं। इसलिए प्रस्तुत विषयों में जिन्हें निष्णात बनना हो, वे आश्विन के 15 दिवसीय शिविर के साथ अपना अभ्यास आरम्भ करें और माघ में होने वाले 15 दिवसीय शिविर के अन्त तक माघ सुदी 15 तक मथुरा रहें। इस अवधि में वे दो शिविर भी अपनी आँखों देख लेंगे और बीच में 4 महीनों में अभ्यास भी बढ़ा लेंगे। इस अभ्यास क्रम में काम चलाऊ संगीत शिक्षण भी शामिल है। जिनका गला ठीक है, वे हारमोनियम, तबला, खंजरी, खड़ताल, मजीरा, इकतारा आदि का अभ्यास करके एक अच्छे भजनोपदेशक भी बन सकते हैं। संगीत शिक्षण के लिए एक विशेष अध्यापक नियुक्त किया जायगा।
इस धर्म-प्रचारक शिक्षा में 5 महीने के लिए आने वाले व्यक्तियों में यदि कोई आर्थिक दृष्टि से असमर्थ होंगे, तो उन्हें 15- मासिक छात्र वृत्ति भी दी जायगी। इसमें अपने हाथ से बनाकर रूखा-सूखा भोजन कर शिक्षण क्रम जारी रखा जा सकता है। यह शिक्षण भी 26 सितम्बर से ही आरम्भ होगा। जिन्हें आना हो पूर्व स्वीकृति प्राप्त करें।