पूर्व योजित घोषणा के अनुसार आगामी गीता शिविर तथा चान्द्रायणव्रत शिविरों को अगले तीन महीने स्थगित कर माघ में सम्मिलित रूप से करने का निश्चय किया गया है।
गीता शिविरों में पढ़ाये जाने के लिये। (1) गीता श्लोकों के समकक्ष हिन्दी पद्यानुवाद। (2) गीता श्लोकों के साथ रामायण चौपाइयों की संगतियाँ। (3) गीता श्लोकों से सम्बन्धित पौराणिक ऐतिहासिक गाथाएं तथा दृष्टान्त। (4) परिवार निर्माण के उपयुक्त प्रशिक्षण कर सकने वाली षोडश संस्कार विधि यह चार ग्रन्थ पाठक्रम में रखे गये थे। यह चारों मिलाकर हजार आठ सौ पृष्ठों की पाठ्य सामग्री है। आशा यह थी कि जेष्ठ शिविर के बाद आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद के तीन महीने हमें मिलते हैं उनमें इनका लेखन और मुद्रण कार्य पूरा कर लिया जायगा। पर युग-निर्माण योजना सम्बन्धी पुस्तक माला की व्यवस्था में इतना समय लग गया कि वे चारों ग्रन्थ तैयार न हो सके। इतने में आश्विन का चान्द्रायणव्रत शिविर आ गया। 50 की अपेक्षा 100 साधक उसमें आ गये। उन्हें उनके व्यक्तिगत जीवन का मार्ग दर्शन, शारीरिक मानसिक स्वास्थ्य का अभिवर्धन तथा व्यवस्था सम्बन्धी कार्यों में व्यस्तता इतनी अधिक रही कि उन चार अधूरे ग्रन्थों को पूरा कर सकना संभव न हो सका।
आश्विन शिविर यों अनेक दृष्टियों से बहुत सफल रहा पर कुछ-कमियाँ रह गईं। प्राकृतिक चिकित्सा का प्रशिक्षण एवं उपचार करने के उतने साधन न थे जितने अधिक लोगों के लिये आवश्यक हैं। दूसरे ठहरने सम्बन्धी कठिनाई स्थानाभाव के कारण सभी को रही। तीसरे प्रवचनों के लिये 50 के स्थान पर 100 को बिठाने में सब लोग पूरी बात अच्छी तरह सुन न सके। आगामी शिविर आरम्भ करने तक यह तीनों कमियाँ पूरी कर लेनी आवश्यक हैं। जो प्रसाधन कम है उन्हें आगामी शिविर तक कर लेने के लिये यह शिविरों का प्रशिक्षण कार्य आगामी तीन महीने स्थगित रखने की ही बात ठीक जँची।
उधर युग-निर्माण परिवार के सदस्यों को आदर्श विवाह दहेज विरोधी अभियान, जातीय संगठन एवं अन्यान्य अनेक रचनात्मक कार्यों के लिये अधिक स्पष्ट अधिक व्यावहारिक मार्ग दर्शन एवं प्रचार साहित्य चाहिये। वह तैयार न होने से नवनिर्माण के व्यापक रचनात्मक कार्यों में जो उत्साहपूर्ण लहर आई है उसमें अड़चन उत्पन्न होती है। तद् विषयक छोटा प्रचार साहित्य, ट्रैक्ट, विषय पत्र, प्रतिज्ञा फार्म, नियमावलियाँ आदि चाहिये। उनके लिये शाखा संचालक आतुर होकर माँग कर रहे हैं।
अखण्ड-ज्योति परिवार ने युग-निर्माण योजना को कार्यान्वित करने के लिए जिस श्रद्धा तथा तत्परता से कदम बढ़ाये हैं उसे देखते हुये अपनी क्षमता से दस गुना काम करने की आकाँक्षा हम भी करते हैं पर समय और हाथ पाँव सीमित होने के कारण इच्छानुरूप कार्य यथा समय हो नहीं पाता। पिछले तीन महीनों से दिन रात व्यस्त रहते हुए भी इतने तात्कालिक कार्य शेष रह गये हैं कि उनकी पूर्ति के लिये आगामी तीन महीने शिविरों को स्थगित करने के अतिरिक्त और कोई चारा शेष नहीं रह गया है। कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष इन तीन महीनों में रुके हुए आवश्यक कार्य पूरे हो जाने की आशा है। तभी शिविरों की कार्य पद्धति भी ठीक तरह चल सकेगी ऐसा मानने के लिये व्यावहारिक कठिनाइयों ने विवश कर दिया है।
अब आगामी शिविर माघ मास में होगा। वह जीवन विद्या चान्द्रायणव्रत और गीता शिक्षा का सम्मिलित शिविर होगा। उसमें दोनों ही प्रकार की शिक्षा सभी शिक्षार्थियों को सम्मिलित रूप से मिलेगी। प्रत्येक शिक्षार्थी अब चान्द्रायणव्रत की आध्यात्मिक साधना कर सकेगा, अपने शारीरिक मानसिक प्रतिरोध को हाल कर सकेगा, जीवन विद्या के उपयुक्त प्रशिक्षण प्राप्त करेगा, प्राकृतिक चिकित्सा का लाभ लेगा, ज्ञान प्राप्त करेगा और साथ ही गीता का मर्म समझकर आत्म कल्याण कर सकने तथा जन जागरण का उद्देश्य पूर्ण करने के लिये धर्म प्रचारक की भूमिका भी अदा कर सकेगा। अपने शिविरों को स्वर्ण सुयोग कहा जाय तो कुछ अत्युक्ति न होगी।
संजीवनी विद्या की जो शिक्षा हम विविध प्रवचनों में देते हैं वह केवल गीता के माध्यम से देंगे। पूरे माघ मास हमारे द्वारा गीता कथा कही जाएगी और उसी माध्यम से वह सब कुछ बता दिया जाएगा जो एक प्रगतिशील मनुष्य के आत्मोत्कर्ष के लिए जानना आवश्यक है। कहना न होगा कि यह गीता कथा अनुपम ही होगी। सोये हुए मोहग्रस्त मन-अर्जुन-को जगाने के लिये उसमें बहुत कुछ प्रकाश विद्यमान रहेगा।
आगामी शिविर माघ मास में होगा। यह महीना आध्यात्मिक साधनाओं के लिए बहुत ही उपयुक्त है। माघ स्नान का पुण्य फल प्रख्यात है। प्रयाग में त्रिवेणी संगम पर पूरे एक महीने सहस्रों नर-नारी हर वर्ष माघ मास में ‘कल्पवास’ करते हैं। गीता शिक्षा चान्द्रायण तप, एवं गायत्री उपासना की यह त्रिवेणी भी कल्पवास के उपयुक्त ही है। आन्तरिक कायाकल्प और दूध-कल्प, छाछ-कल्प, शाक-कल्प, अन्न-कल्प आदि की योजनायें इस अवसर को सच्चे अर्थों में कल्पवास बना देंगी। इसी बीच में माता सरस्वती का जन्म दिन बसन्त पंचमी पर्व भी पड़ता है। अखण्ड-ज्योति की, हमारी साधना जीवन की जयन्ती भी उसी दिन है। इन कारणों से भी यह माघ मास अधिक शुभ अवसर बन जाता है।
पौष सुदी पूर्णिमा (17 जनवरी 65) में यह शिविर आरम्भ होगा इसलिये 16 जनवरी की शाम तक विद्यार्थियों को मथुरा आ जाना चाहिये। यह माघ मास से पुरे एक महीने चलेगा। माघ सुदी पूर्णिमा (15 फरवरी को) समाप्त हो जायगा।
आश्विन में 50 साधकों को स्वीकृति दी गई थी। पर माघ में 100 को देने की व्यवस्था कर रहे हैं। फिर भी इच्छुकों की संख्या इससे कई गुनी होनी स्वाभाविक है। सब को प्रवेश नहीं मिल सकेगा। जिन्हें इससे आगे या पीछे की स्वीकृतियाँ पहले दी जा चुकी हैं वे अब उन्हें रद्द मान लें और माघ शिविर में आने के लिये ही आवेदन करें। अब नये सिरे से स्वीकृतियाँ दी जायेंगी। समय से पहले ही इसके लिये पत्र व्यवहार करके अपना स्थान सुरक्षित करा लेना उचित होगा। जगह न रहने पर किन्हीं भी अनुरोधों को स्वीकार कर सकना हमारे वश की बात भी न रहेगी।