न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।
हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्षते॥
विषयों की कामना, विषय-भोग से कभी शाँत नहीं होती। किन्तु अग्नि में घी डालने से बढ़ने वाली ज्वाला की तरह और भी अधिक बढ़ती है।
नास्ति सत्यसमोधर्मो न सत्याद्विद्यते परम्।
नहि तीव्रतरं किंचिदनृतादिहाविद्यते॥
सत्य के समान कोई धर्म नहीं, सत्य से बढ़कर कुछ श्रेष्ठ नहीं और असत्य से बढ़कर तीक्ष्ण और कुछ नहीं है।