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November 1964

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न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति।

हविषा कृष्णवर्त्मेव भूय एवाभिवर्षते॥

विषयों की कामना, विषय-भोग से कभी शाँत नहीं होती। किन्तु अग्नि में घी डालने से बढ़ने वाली ज्वाला की तरह और भी अधिक बढ़ती है।

नास्ति सत्यसमोधर्मो न सत्याद्विद्यते परम्।

नहि तीव्रतरं किंचिदनृतादिहाविद्यते॥

सत्य के समान कोई धर्म नहीं, सत्य से बढ़कर कुछ श्रेष्ठ नहीं और असत्य से बढ़कर तीक्ष्ण और कुछ नहीं है।


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