उद्यम और विकास के पथ पर चलते हुए अनेकों विघ्न बाधाओं का आना स्वाभाविक है। कार्य छोटा हो या बड़ा आध्यात्मिक हो अथवा साँसारिक, उलझनें मुसीबतें और कठिनाइयाँ आयेंगी ही। इनसे बच कर सफलता की मंजिल तक पहुँचना असम्भव है। रास्ते की इन रुकावटों का सामना करना वीरोचित कार्य है। जो संघर्षों से कतराता नहीं वह सर्वोपरि साहसी है। वे कायर और कापुरुष होते हैं जो विघ्नों से हार मानकर उद्यम करना छोड़ देते हैं। इससे किसी प्रकार की सफलता प्राप्त नहीं की जाती। सफलता का व्यापक और विशिष्ट लक्षण उत्साह है। मानवी विकास की अधिकाँश सम्भावना साहस धैर्य और पराक्रम पर सन्निहित है।
आपका स्वास्थ्य खराब हो चुका है, पाचन संस्थान बिल्कुल विकृत हो चुका है। मिर्च मसालों के अधिक सेवन से पेट में गड़बड़ी बनी रहती है, खट्टी डकारें आती है, जी मिचलाया करता है। किसी चिकित्सक ने आपकी सलाह दी है कि आप कुछ दिन शाकाहार कर लीजिए। आप उसके महत्व को भी भली भाँति समझ चुके हैं। प्रारम्भ में स्वास्थ्य सुधारने की प्रबल आकाँक्षा उठी थी उसी से प्रेरित होकर आपने शाकाहार आरम्भ कर दिया। अभी तीन दिन ही हुए थे कि आपका मन तरह-तरह के भोजन पकवानों, मेवा-मिष्ठानों की ओर दौड़ने लगा। शाक ग्रहण करते समय कुछ रूखा लगता है सो आपका ध्यान बार-बार स्वादयुक्त भोजन की ओर दौड़-दौड़ जाता है। आप हार मानने लगते हैं बाजार से चुपचाप कुछ खा आते हैं तो जिह्वा इन्द्रिय जीत जाती है और फिर से उसी पूर्व जीवन के क्रम पर आ जाने को विवश कर देती है। यह पट-परिवर्तन एक क्षणिक विग्रह के कारण हुआ। निश्चयात्मक बुद्धि के अभाव में आप स्वास्थ्य सुधारने के लक्ष्य से गिर गए फलस्वरूप असफलता आपके हाथ लगी। यदि आपने जिस तत्परता से कार्य शुरू किया था उसी उत्साह से शाकाहार पर निर्भर रहते, रूखा भोजन करते रहने के साहस पर अडिग बने रहते तो आपका स्वास्थ्य जरूर अच्छा हो जाता।
मनुष्य का एक सामान्य जीवन क्रम बना होता है। खाना, पीना, सोना, चलना, उठना, बैठना, रोग, शोक, चोट-मोच के क्षण सभी के जीवन में एक से आते हैं। इसका सामान्य ज्ञान भी सभी को होता है किन्तु जीवन की एक दूसरी दिशा होती है, कष्ट और कठिनाइयों की दिशा। इससे जीवन का सही मूल्याँकन होता है। नयी-नयी अनुभूतियाँ प्राप्त होती हैं किन्तु यह तभी सम्भव है जब मनुष्य सामान्य जीवन क्रम को त्याग कर और कष्ट कठिनाइयों के अनुभवपूर्ण पथ पर चलने का साहस करते हैं। कूप मण्डूक के समान एक सी स्थिति पर सन्तुष्ट रहने वाले व्यक्ति क्या तो सफलता प्राप्त कर सकेंगे क्या ही महानता की उच्चतम अनुभूतियाँ प्राप्त कर सकेंगे? भयभीत बने रहने से जीवन का सच्चा या व्यावहारिक ज्ञान पाना कठिन है।
नैपोलियन बोनापार्ट कहा करता था “भय से आत्मसम्मान नष्ट हो जाता है।” यह नीति सम्मत बात है कि साहसी मनुष्य अकेला ही सैंकड़ों को मात दे सकता है। जो परिस्थितियों और आलोचनाओं से घबरा कर अपने कर्तव्य से गिरते नहीं अन्त में विजय उन्हीं की होती है कार्य का शुभ आरम्भ करने से पूर्व आप एक बार दृढ़ता पूर्वक विचार कर कीजिए कि आप विफल नहीं होंगे, फिर अपनी सम्पूर्ण शक्तियों को उसी पर जुटा दीजिए। आप विश्वास कीजिए आपका निश्चय ही अन्त तक साहस देता रहेगा। आत्म शक्ति लेकर निश्चित मार्ग पर चल निकलिए रुकिए नहीं। यह मत देखिये कि आपका साथी पीछे जा रहा है। युद्ध में लड़ने वाले सिपाही मरने वालों की तादाद नहीं गिनते। ऐसा करें तो आगे से गोली लग जाने का खतरा बना रहेगा। अपने लक्ष्य की पूर्ति के लिए चलते ही रहिए, क्षेत्र से बाहर न जाइए तो आप अन्त में अपने निश्चय को अवश्य पा लेंगे।
संसार में कुछ कार्य इतने महान व आवश्यक माने जाते हैं जिनके लिए दूसरी सभी वस्तुओं का उत्सर्ग कर देना पड़ता है। देश की रक्षा के लिए माताएं अपने पुत्रों को, पत्नियाँ अपने पतियों को, बिना परिणाम की बात सोचे लड़ाई के मैदान में भेज देती हैं। वैज्ञानिक अपने देश की शक्ति बढ़ाने के लिए अपने जीवन को खतरे में डालकर महत्वपूर्ण प्रयोग करते रहते हैं। मानवता की प्रति स्थापना के लिए गौतम बुद्ध का त्याग- देवत्व के विकास के लिए महर्षि दधीच का अस्थिदान, ये ऐसे विशिष्ट कार्य है जिन में छोटे-बड़े दूसरे हितों का ध्यान नहीं दिया गया। तभी किसी महान संकल्प की पूर्ति हो पाई है। विश्वहित की कामना से अपने सुखों का त्याग सर्वोपरि साहस का परिचायक है। इससे व्यक्ति की महानता का परिचय मिलता है। मनुष्य के मूल्याँकन की कसौटी का दूसरा नाम निर्भयता है।
उत्साह में कमी का एक महत्वपूर्ण कारण अपनी प्रतिष्ठा के प्रति भ्रान्तिपूर्ण संकल्पना होती है। यह भाव पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक पाया जाता है। आत्म प्रतिष्ठा, आदर व सम्मान प्राप्त करने की लालसा मनुष्य को अपने लक्ष्य से गिरा देती है क्योंकि इससे अन्तर्चेतना कई क्षेत्रों में विभक्त हो जाती है। यश की कामना से किए हुए कर्तव्य को औचित्य का भान नहीं रहता, इससे बाद में पश्चाताप और प्रायश्चित ही भोगना पड़ता है। आत्मसम्मान का अर्थ है आप अपने सिद्धान्तों को बलपूर्वक किसी पर थोपना चाहते हैं। इस महत्वाकाँक्षा का जीवन लक्ष्य से संघर्ष हो जाता है, फलतः मूल उद्देश्य अस्त−व्यस्त हो जाता है और दीनता का उदय हो जाता है। वह विचारों की दीनता सारे उत्साह पर पानी फेर देती है इस लिए कर्तव्य करते हुए भी फल की कामना न करने को ही भारतीय संस्कृति में जीवन साफल्य का साधन माना जाता है। इसमें संदेह नहीं है कि सुख व समृद्धि के कारण उत्साह है किन्तु यह ध्यान बना रहें कि आप केवल सम्मान के भाव से प्रभावित नहीं हो रहे है, तभी वास्तविक सफलता तक पहुँच पायेंगे।
साहस में कमी का एक कारण “आत्म निर्भरता का अभाव” भी है। अपने ऊपर विश्वास करना, अपनी शक्तियों पर विश्वास करना एक ऐसा सद्गुण है जिससे विचार योग्यता और साहस उत्पन्न होता है। जो प्रत्येक कार्य में दूसरों का मुँह ताकते हैं वे जीवन में कोई महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त नहीं कर सकते किन्तु जो यह मानते हैं कि कोई भी कार्य उनकी शक्ति से परे नहीं उनमें अदम्य उत्साह भर जाता है जिसके सहारे वे बड़े-बड़े कार्य तक हँसी खुशी पूरा कर लेते हैं। कहावत है “ परमात्मा उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद आप करते हैं”। दूसरों पर निर्भर होना मनुष्य की हीनता का बोधक है। इससे अपना बल घटता है इच्छाओं की पूर्ति में अनेकों विघ्न बाधायें आ उपस्थित होती हैं। सफलता का अच्छा और सीधा पथ यह है कि अपनी शक्तियों पर विश्वास करना सीखें। मनुष्य की प्रतिष्ठा, स्वाधीनता और निर्भयता इसी बात में है।
संसार में हर किसी को एक सी परिस्थितियाँ उपलब्ध नहीं हैं। सभी मिल मालिक बनना चाहें तो फिर मजदूर रहना कौन स्वीकार करेगा? जो जिम्मेदारी मिले उसे ही सम्मानपूर्वक निबाहना मनुष्य का सर्वोत्तम कर्तव्य है। अपनी जिम्मेदारियाँ दूसरों पर टालने से आत्मिक विकास नहीं हो पाता। दिन-दिन बुरी परिस्थितियों की ओर खिंचते हुए चले जाते हैं। ऐसी स्थिति में किसी प्रकार की सफलता की आशा नहीं की जा सकती। हर परिस्थिति में संघर्ष करने वाले व्यक्ति ही सफल और मुक्ति पथगामी हुए हैं। परिस्थितियों से टकराने से ही मनुष्य की अन्तः प्रतिभा जागृत होती है। सोयी हुई शक्तियों का विकास होता है। इस जागृत शक्ति को जिस दिशा में लगा देते हैं, वहीं सफलता के दर्शन होने लगते है। जो निर्भयता पूर्वक अच्छी, बुरी, हर एक स्थिति में अनुकूलता प्राप्त कर सकता है, उन्नति सफलता और आनन्द की उपलब्धि उसी को होती है।