समाज शारीरिक संस्था है। जिस प्रकार शरीर में प्रत्येक अवयव का संबंध है, उसी प्रकार समाजगत प्रत्येक व्यक्ति समाज-सूत्र द्वारा एक दूसरे में बंधा हुआ है।
-स्पेन्सर