एक मनुष्य ने कहीं सुना कि ‘रुपया, रुपये को खींचता है।’ उसमें इस बात के परखने का निश्चय किया।
सरकारी खजाने में रुपये का ढेर लगा था। वहीं खड़ा होकर वह अपना रुपया दिखाने लगा ताकि ढेर वाले रुपये खिंच कर उसके पास चले आयें।
बहुत चेष्टाएँ करने पर भी ढेर के रुपये तो न खिंचे वरन् असावधानी से उसके हाथ का रुपया छूट कर ढेर में गिर पड़ा।
खजांची का ध्यान इस खटपट की ओर गया तो उस व्यक्ति को संदिग्ध समझकर पकड़वा दिया। पूछताछ हुई तो उसने सारी बात कह सुनाई।
अधिकारी ने हँसते हुए कहा- जो सिद्धान्त तुमने सुना था वह ठीक था, पर इतनी बात तुम्हें और समझनी चाहिए कि ज्यादा चीजें थोड़ी को खींच लेती हैं। ज्यादा रुपये के आकर्षण में तुम्हारा एक रुपया खिंच गया। इस दुनिया में ऐसा ही होता है। बुराई या अच्छाई की शक्तियों में से जो अब भी बढ़ी-चढ़ी होती हैं जब प्रतिपक्षी विचार के लोग भी बहुमत के प्रवाह में बहने लगते।