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April 1964

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क्रोधः प्राणहरः शत्रुः क्रोधो मित्रमुखो रिपुः।

क्रोधो ह्यसिर्महातीक्ष्णः सर्व क्रोयोऽपकर्वति॥

क्रोध प्राणों को लेने वाला शत्रु है। यह मित्र

के रूप में आने वाला शत्रु है। क्रोध तीव्र तीक्ष्ण तलवार के समान है। क्रोध सबकी अवनति करने वाला है।

इस मार्ग में रूढ़िवादिता से भारी संघर्ष करना पड़ेगा। संकीर्णतावादी विचार धाराओं से नम्रता किन्तु दृढ़ता के साथ निपटना पड़ेगा। नारी को पददलित, अशिक्षित और उपेक्षित बनाये रहने के हामी रूढ़िवादी तत्वों के साथ चतुरता के साथ इस प्रकार सुलझना पड़ेगा ताकि अनावश्यक उद्वेग उत्पन्न किये बिना नारी को समर्थ, सशक्त और सुसंस्कृत बनाया जा सके।

नये समाज की नई रचना का आदर्श और आवाज प्राचीन भारत की महान सभ्यता को ही बनाया जाना है। हमारी क्रान्तियों का उद्देश्य विकृतियों को हटाकर उसके स्थान पर सनातन आदर्शों की स्थापना करना है। उसमें नारी की अध्यात्मवादी विशेषताओं को अग्रिणी बनाना पड़ेगा। भारत माता की जय-घोष करते हुए स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया है। बौद्धिक और सामाजिक स्वतंत्रता की प्राप्ति के लिए हम गायत्री माता की जय बोलते हुए आगे बढ़ते रहेंगे।


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