सन्त तुकाराम को कहीं से कुछ गन्ने प्राप्त हुए। वे उन्हें लेकर घर आ रहे थे। रास्ते में बच्चे मिलते गये। बालक सन्त की सरल प्रकृति को जानते थे। वे गन्ने माँगते गये और सन्त उन्हें एक-एक बाँटते। पर पहुँचते-पहुँचते केवल एक गन्ना शेष रहा। शेष रास्ते में बालकों को ही बँट गये।
तुकाराम की पत्नी को गन्ने घर आने की पूर्व सूचना मिल चुकी थी। वह बहुत गन्ने घर आने की आशा लगाये बैठी थी। हाथ में केवल एक ही देख कर उसका कर्कश स्वभाव और भी उग्र हो गया। कारण पूछा तो तुकाराम ने सारी बात सरलतापूर्वक बता दी। क्रुद्ध पत्नी ने वह एक गन्ना भी उनकी पीठ पर दे मारा। गन्ने के दो टुकड़े हो गये।
हँसते हुए सन्त तुकाराम ने कहा-देवि, तुमने ठीक बँटवारा कर दिया। इन दो टुकड़ों में एक तुम ले लो, दूसरा मुझे दे दो। जो कुछ थोड़ा बहुत भगवान ने दिया है उसे मिल बाँट कर खाना ही ठीक है।