महत्व की बात यह नहीं हैं कि हमने कितने लोगों की सेवा की। निरहंकार सेवा हुई या नहीं, सेवा का मूल्य इसी से आँका जाता है। संख्या अल्प होते हुए भी अगर उसका छेद शून्य हो तो उसका मूल्य अनन्त हो जाता हैं। उसी प्रकार अल्प सेवा को भी निरहंकारिता का छेद प्राप्त होने से उस मूल्य अनन्त हो जाता है। यथार्थ सेवा से सन्तोष की मात्रा बढ़ती हैं। उस संतोष से, सेवा वास्तविक है या आभासात्मक, यह जाना जा सकता है-विनोबा