अष्टग्रही योग और उसकी सम्भावना

October 1961

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आगामी माघ वदी अमावस्या ता॰ 5 फरवरी 52 में अष्टग्रही योग आने वाला है। इसकी चर्चा अखण्ड-ज्योति में समय-समय पर होती रही है। यह समय अब टिकट ही आने वाला है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार एक राशि पर चार या उससे अधिक ग्रहों का होना अशुभ माना जाता है। विगत महाभारत के समय राशि पर सात ग्रह आये थे उसके फलस्वरूप वह विश्व युद्ध हुआ था और संसार पर भारी विपत्ति आई थी। अब की बार आठ ग्रह एक राशि पर एकत्रित होते हैं। इसका फल और भी अधिक अशुभ होना चाहिये। दैवज्ञ इस योग को कालकूट नाम देते हैं। जैसे सब विषों में कालकूट प्रमुख विष है, उसी प्रकार अशुभ योगों में यह अष्टग्रही योग भी कालकूट के समान भयंकर है। किन्हीं ग्रन्थों में इसे प्रव्रज्या योग गोल योग, अथवा महागोल योग कहा गया है । यह नाम अशुभ अनिष्ट का ही संकेत करते हैं। 6,7,8 ग्रहों के एकत्रित होने से विभिन्न कुयोग बनते हैं। ता॰ 19 जनवरी से 12 फरवरी तक 25 दिन का षड्ग्रही योग है। इसी बीच में 24 जनवरी से 9 फरवरी तक सप्तग्रही योग है। अष्टग्रही योग 2 फरवरी से 5 फरवरी तक है । माघ वदी अमावस्या (मौनी मावस) इसका मध्य बिन्दु हैं। इसी दिन सूर्य ग्रहण भी है, जो यद्यपि भारतवर्ष में दिखाई नहीं पड़ेगा पर उसका फल भी विश्व के अन्य भागों पर होगा ही।

ज्योतिष्मती पत्रिका के ग्रीष्मांक में इस योग के संबंध में कई दैवज्ञों ने प्रकाश डाला है। श्रीकालीदास घोष का कथन है कि इस योग का प्रभाव सन् 1964 तक रहेगा। रेल, इंजन, परिवहनों की दुर्घटना होंगी। आधुनिक सभ्यता के मलवे से नवीन रक्त-बीज उत्पन्न होगा। मेष लग्न पर मंगल उच्च है और शनि स्वग्रही है इस अवस्था में इसके सिवाय और कोई विकल्प दिखाई नहीं देता है कि युद्ध का देवता मंगल विश्वव्यापी युद्ध करेगा। ज्योतिर्विद् श्रीचैलाम राजू गोपाल कृष्ण मूर्ति का कथन है। सूर्य के साथ मंगल का होना युद्ध का सूचक है। प्रायः सभी देशों के शासकों की रातें जागते गुजरेंगी । भूमि पर भारी रक्तपात होगा। विश्वशान्ति भंग होगी, प्रत्येक देश में युद्ध का शंखनाद सुनाई देगा। सीमा विवाद चलेंगे। बड़े पुरुषों की साख न रहेगी। फसल नष्ट होगी। अकाल और बेकारी बढ़ेगी। तूफान, आँधी नाव दुर्घटना, युद्ध मुद्रा, अवमूल्यन, संक्रामक रोग आदि घटित होंगे। रमेशचन्द्र शास्त्री ने लिखा है-इस योग के प्रभाव के आगामी विश्वयुद्ध की नींव जरूर इस वर्ष पड़ जायेगी, पर वह होगा सन् 1964 में। उपरोक्त पत्रिका के सम्पादक ज्योतिषाचार्य पं॰ हरदेव शर्मा त्रिवेदी ने लिखा है-जलीय उत्पात, भयानक बाढ़ और भूकम्प से विशेष हानि होगी। खाद्य समस्या समाधान कारक नहीं होगी। दुर्भिक्ष महामारी आदि से भी विनाश होगा। सन् 1963 में 141 वर्ष बाद क्षय मास आ रहा है अतः सन् 62 से 72 तक आगामी दश वर्ष में बड़ी भारी राज्य क्रान्तियाँ और प्रकृति प्रकोप सम्भव होगा। तृतीय विश्वयुद्ध इसी अवधि में होकर जन धन का भीषण रूप से विनाश करेगा। इसी प्रकार के फलादेश पहले भी कई बार प्रकाश में आ चुके हैं। उनमें अशुभ अनिष्टकी ही संभावना प्रकट की गई है। हमारा निज का अभिमत भी ऐसा ही है कि इस कुयोग से मानव जाति को विशेष कष्ट सहने पड़ेंगे। यद्यपि ऐसी आशंका कतई नहीं है कि योग के दिनों में प्रलय हो जायगी या उसी समय एटम चलेंगे। कई व्यक्ति ऐसी आशंका करके भयभीत रहते हैं। उन्हें जान लेना चाहिये कि उन दिनों भी ऐसी ही स्थिति रहेगी जैसी कि यह पंक्तियाँ पढ़ने वाले दिन को है। योग के 25 दिनों में कोई आश्चर्यजनक घटना न घटेगी, साधारण दिनों की भाँति ही वे दिन भी शान्ति से बीतेंगे। पर सूक्ष्म जगत में ग्रह योग की जो प्रतिक्रिया होगी उसके फ ल स्वरूप संसार के प्रत्येक भाग में और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में कठिनाइयाँ बढ़ने का वातावरण बनना प्रारम्भ हो जायगा। जैसे-जैसे समय बीतता जायगा वे कठिनाईयाँ सामने आती जायेंगी और वे आगामी दस वर्षों तक बनी रहेंगी। इससे किसी को भयभीत या निराश नहीं होना चाहिए। विकास की शक्तियों की भाँति ही रक्षा की शक्तियाँ भी सक्रिय हैं, वे चिरपोषित मानव संस्कृतियों नष्ट न होने देंगी। हमें आगामी समय के लिए अधिक साहस, अधिक धैर्य और अधिक विवेक का सम्पादन करना चाहिए ताकि संभावित कठिनाई का भली प्रकार मुकाबला किया जा सके। पिछले अज्ञात वास में हमें उच्च कोटि के तत्वदर्शियों का सान्निध्य प्राप्त करने का अवसर मिला है। उनके व्यक्तिगत निष्कर्ष यह हैं कि इस योग के फलस्वरूप जहाँ एक ओर विनाश की विभीषिका सामने आवेगी वहाँ युग निर्माण के उपयोगी तत्वों का इसी अवधि में तीव्र गति से अवतरण और विकास भी होगा। ज्ञान और विज्ञान दोनों की उन्नति ऊँचे स्तर तक बढ़ेगी । निर्माण और उत्पादन के कार्य भी बड़े विशाल परिमाण में होंगे। इस विनाश का उद्देश्य अन्ततः विश्व में स्थिर शक्ति की सहायता ही है । इसलिए समय पर तत्संबन्धी आवश्यक साधनों की उपलब्धि के लिए निर्माण एवं उत्पादन कार्य भी साथ ही साथ प्रारम्भ होगा। इस दश वर्षीय विनाश चक्र का प्रभाव संसार के विभिन्न भागों पर बहुत पड़ेगा, पर भारत को कम से कम हानि सहनी पड़ेगी। भारत धीरे-धीरे प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति करता जाएगा और सन् 64 के उपराँत उसकी स्थिति संसार में सर्वश्रेष्ठ होगी। ज्ञान और विज्ञान, धन और सत्ता, नीति और सदाचार की दृष्टि से वह विश्व का सर्वोपरि राष्ट्र होगा। उसकी संस्कृति सम्पूर्ण विश्व में अपनाई जायगी और प्राचीन काल की भाँति उसे सारे भूमण्डल को अपना नेतृत्व देना होगा। जिस प्रकार आज अमेरिका और रूप अपना प्रभाव संसार के विभिन्न क्षेत्रों पर बनाये हुए हैं उसी प्रकार सन् 64 के बाद अकेला भारत संसार के नेतृत्व की बागडोर अपने हाथ में लेगा और चिरकाल तक सर्वत्र सच्ची सुख शाँति स्थापित किये रहने में सफल होगा। उस महान जिम्मेदारी को अपने कन्धों पर उठाने के लिये इन्हीं दिनों भारत भूमि पर अत्यन्त उच्च कोटि की जीवन मुक्त आत्माऐं जन्म लेंगी। ज्योतिषशास्त्र के मानसागरी ग्रन्थ के अनुसार जिनकी कुण्डली में एक स्थान पर छै, सात, या आठ ग्रह होते हैं वह बालक दरिद्र, मूर्ख और नीच वृत्ति, धनहीन अधर्मी और महा दुष्ट होते हैं। किन्तु आचार्य बराहमिहर के अनुसार ऐसे बालक निश्चय ही बहुत बड़े महात्मा होते हैं। यद्यपि दोनों मत एक दूसरे के प्रतिकूल हैं तो भी उनमें एक बात पर मतैक्य है कि ऐसे समय में उत्पन्न बालक असाधारण होते हैं, परिस्थितियों उन्हें चाहे महादुष्ट बना दे चाहे महासंत, पर क्षमता, उनके अन्दर निश्चित रूप से बहुत रहेगी। ग्रहों का यह प्रभाव अष्ट ग्रही योग के तीन या षड्ग्रही योग के 25 दिनों तक ही न चलेगा, वरन् उसका प्रभाव आगामी तीन वर्षों तक रहेगी। ग्रहयोग के 25 दिनों में उत्पन्न हुए बालकों की शिक्षा दीक्षा यदि उनके अभिभावक अच्छी तरह कर सके तो वे आगे चलकर बहुत ही श्रेष्ठ प्रकार के नर रत्न सिद्ध हो सकते हैं। इसके उपरान्त आगामी तीन वर्ष तक भी यह क्रम जारी रहेगा और धर्म शिक्षा, संस्कृति, विज्ञान, शिल्प, रसायन, चिकित्सा उद्योग आदि विभिन्न क्षेत्रों में सारे विश्व का नेतृत्व करने वाली आत्माएँ यहाँ जन्म लेती रहेंगी। भारतीय स्वतंत्रता का उद्देश्य पूर्ण करने के लिए 30 उच्चकोटि की आत्माएँ अवतरित हुई थी, उनका चिर संचित आत्मबल इतने बड़े कार्य के लिए आवश्यक वातावरण उत्पन्न करने में समर्थ हुआ। अब सारे विश्व की राजनैतिक आर्थिक सामाजिक, आत्मिक स्वतंत्रता की दिशा में नेतृत्व करने का कार्य भारत के कंधों पर आने वाला है। इस कार्य के लिए उच्च लोकों जीवन मुक्त आत्माएँ भारत भूमि पर जन्म लेने आ रही हैं। इसी दृष्टि से सन् 62 जहाँ दुर्भाग्य-पूर्ण है वहाँ साथ ही आशा की स्वर्णिम किरणें भी साथ चल रही हैं। इस संदर्भ में अखण्ड-ज्योति परिवार के धर्म प्रेमी स्वजनों के लिए भी कुछ कर्तव्य बनते हैं । हम सबको उस पर ध्यान देना चाहिये।

(1) जिस प्रकार चन्द्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण का सूतक कुछ घण्टे पहले लग जाता है उसी प्रकार माघ वदी अमावस्या को आने वाले इस कुयोग सूतक चार मास पूर्व आश्विन वदी अमावस्या से प्रारम्भ होगा। इन चार महीनों में कुछ न कुछ धर्म आयोजन करने का प्रयत्न हममें से हर एक को करना चाहिए।

(2) व्यक्तिगत साधना जिसकी जो रही है उसे इन चार महीनों के लिए कम से कम सवाई कर दें। एक चौथाई और बढ़ा दें और इस चार मास की साधना को विश्वकल्याणार्थ, समर्पण कर दें। (3) कुयोग के दिनों में भी 9 दिन का एक आयोजन इसी प्रकार से किया जाय। माघ वदी 11 गुरु बार आरम्भ करके माघ सुदी वसंत ता॰ 9 फरवरी को इसे पूर्ण किया जाय। इस अवसर पर भी आश्विन नवरात्रियों की भाँति ही सामूहिक धर्मानुष्ठान किये जाय । व्यक्ति गत साधना भी इन दोनों अवसरों पर कुछ विशेष की जाय।

(4) जनता में किसी प्रकार का भय उत्पन्न न होने जाय। वरन आगामी समय का महत्व बताते हुए उसके लिए आवश्यक आत्मबल, धैर्य साहस और विवेक एकत्रित करने की उसको सलाह ही जाय।

(5) जिनकी निजी निष्ठा गायत्री उपासना में दृढ़ हो चुकी है वे अपनी धर्म पत्नियों को भी प्रेरणा देकर इस मार्ग पर अग्रसर करें और कम से कम इन चार महीनों में तो ब्रह्मचर्य से रहने की प्रतिज्ञा कर ही लें। ऐसे श्रद्धावान दाम्पत्य किन्हीं महान् उच्च आत्माओं को अपने यहाँ जन्म लेने के लिए आकर्षित कर सकते हैं।


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