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September 1959

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स्वयं अपना पूर्ण परिचय प्राप्त करना ही अन्तर्ज्ञान है, जिससे हमें पता चल जाता है कि हम क्या हैं और हमें क्या होना चाहिए, जिससे हम इस संसार में सुखपूर्वक और उपयोगी रूप से और उस लोक में शान्ति तथा आनन्द से रह सकें।

—जे0 मेरु

जब तक हम अपनी पहुँच से बाहर की वस्तुओं की इच्छा में झूला करते हैं तब तक हम पालने के बच्चे ही हैं। जब हम वासना करते-करते थक जाते हैं, तब इच्छा शक्ति सो-सी जाती है-उस समय हमें मृत्यु-शैया पर समझना चाहिए।

—बुल्वर

इस विचार से अधिक मूर्खता की बात हो क्या सकती है कि सारे ब्रह्माँड और पृथ्वी की अनूठी रचना एक आकस्मिक घटना है, जब कि कला की सारी चतुराई एक सिप्पी बनाने में असमर्थ है।

—जर्मीटेलर


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