मैस्मरेजम और यौगिक साधना

September 1959

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(योगिराज स्वामी प्रेमानन्द जी महाराज)

इस समय योरोप और अमरीका के विद्वानों ने भौतिक साइन्स में बड़ा नाम किया है। उन्होंने प्रत्येक पदार्थ के मूलतत्वों का पता लगाकर उनके गुण और दोषों की अलग-अलग जानकारी प्राप्त कर ली है। अब वे उन मूलतत्वों को अलग-अलग तादाद में और नये-नये तरीके से मिलाकर ऐसे आश्चर्यजनक पदार्थ और यंत्र बना रहे हैं कि उनके द्वारा दुनिया की कायापलट होती चली जा रही है। आरम्भ में तो वैज्ञानिक लोग सिवाय प्रत्यक्ष पदार्थों या शक्तियों के और किसी चीज पर विश्वास ही नहीं करते, पर धीरे-धीरे वे मानसिक शक्तियों का परिचय प्राप्त करने लगे और इस बात को स्वीकार करने लगे कि इन सूक्ष्म शक्तियों द्वारा भी अनेक कार्य संपन्न हो सकते हैं। मैस्मरेजम, हिप्नोटिज्म, साइकोमैट्री आदि विद्याओं की उत्पत्ति और विकास इन सूक्ष्म शक्तियों का अध्ययन, मनन और अभ्यास करने से ही हुआ है।

मैस्मरेजम का आविष्कार और प्रयोग करने वाले सब से पहले व्यक्ति डॉ0 मिस्मर साहब थे, जो आस्ट्रिया के निवासी थे और जिन्होंने यहाँ की राजधानी बीना में डाक्टरी की शिक्षा प्राप्त की थी। वहाँ पर इनकी मुलाकात “फादरहिल” नामक पादरी से हुई जो “ऐनीमैल मैग्नेटिज्म” (प्राणियों की आकर्षण) शक्ति के सिद्धान्त के जानकार थे। इन्होंने पादरी से इस संबंध में कुछ बातें सीखीं और जब उन में कुछ सचाई मालूम होने लगी तो स्वयं खोज करने लगे। इससे उनको बिना किसी तरह की दवा के अनेक प्रकार के रोगों को दूर करने में सफलता मिलने लगी। उनका उत्साह बहुत बढ़ा और उन्होंने रूस, जर्मनी, स्विट्जरलैंड, पेरिस आदि देशों में जाकर वहाँ बादशाहों को अपनी विद्या का परिचय दिया और ऐसे अस्पताल खुलवाये जहाँ इस विधि से इलाज किया जाने लगा। यद्यपि आरम्भ में वैज्ञानिकों ने मिस्मर का बहुत विरोध किया और उनके काम को ठगी, जालसाजी, हाथ की चालाकी आदि बतलाया, पर धीरे-धीरे इस शक्ति का ज्ञान अन्य लोगों को भी होने लगा और कुछ समय में “मानसिक शक्ति द्वारा अन्य मनुष्यों को प्रभावित करना” विज्ञान की एक शाखा मान ली गई। इस संबंध में एक लेखक ने कहा है—

“डॉ. मिस्मर साहब इस विद्या में जहाँ तक पहुँच पाये थे वह यह था कि हर बड़े जानदार में एक प्रकार की चुम्बकीय शक्ति होती है जिसके द्वारा वह दूसरों को प्रभावित कर सकता है और उनके कष्टों को दूर कर सकता है, अथवा उनको नुकसान भी पहुँचा सकता है। इसका नाम उन्होंने “ऐनीमल मैगनेटिज्म” (हैवानी आकर्षण) रक्खा था, परन्तु बाद में दूसरे वैज्ञानिक इस विषय में और भी आगे बढ़ गये। मशहूर हिप्नाटिस्ट “लेबाल्ट” ने यह खोज की कि हर बड़े जानदार में ही नहीं, वरन् छोटे से छोटे प्रत्येक प्राणी में यह शक्ति रहती है और इसे वे ‘जूमैगनेटिज्म’ के नाम से पुकारने लगे। इसके पश्चात् “पारीश्यिन” साहब अपनी खोज में इस नतीजे पर पहुँचे कि यह चुम्बकीय शक्ति एक प्रकार का पतला और ऐसा सूक्ष्म द्रव्य है कि जो बहुत शीघ्र एक स्थान से निकल कर दूसरे स्थान को चला जाता है और यह जानदारों में ही नहीं वरन् संसार के हर एक पदार्थ में मौजूद है। इसलिये वे इसे “मैगनेटिक फ्लूड” कहने लगे। इसी प्रकार श्री जेन वेक और श्री बार्डिक इत्यादि ने भी इस संबंध में कुछ नई-नई बातें मालूम कीं। नि0 बार्डिक ने जो नई बात वैज्ञानिक जगत को बतलाई वह यह थी कि जिन वस्तुओं के परमाणु अधिक घने होते हैं वह अपने अन्दर से इस प्रकार की किरणें फेंकती हैं जो मनुष्य की शारीरिक और मानसिक स्थिति के लिये लाभदायक होती हैं। उनमें एक ऐसी आकर्षण शक्ति होती है कि जिसका बहुत कुछ संबंध शरीर और मन से रहता है। जवाहरात में हीरा सबसे अधिक गुणकारी है क्योंकि उसके परमाणु इतने अधिक घने होते हैं कि उसे हथौड़ों से भी नहीं तोड़ा जा सकता। धातुओं में सुवर्ण सबसे भारी है और इसलिये उसका धारण करना प्राचीन काल से शुभ व लाभदायक माना जाता है।”

सम्मोहन अथवा हिप्नोटिज्म

जब योरोप में मैस्मरेजम का काफी प्रचार हो गया और अनेक विद्वानों ने उस पर ग्रंथ भी लिख डाले तो अन्य लोग इस संबंध में नवीन शक्तियों की खोज और परीक्षा करने लगे। उनमें से मैनचेस्टर के एक डॉक्टर ब्रेड ने सन् 1941 में हिप्नोटिज्म के सिद्धान्त का पता लगाया। उन्होंने बतलाया कि मिस्मर साहब ने जो प्राणियों की आकर्षण शक्ति का स्वतन्त्र अस्तित्व माना है और उसका एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवाह देना बतलाया है, वह मत ठीक नहीं है। “मैस्मरेजम” के प्रयोग में किसी व्यक्ति को स्ववश करने और उसे आदेश देकर इच्छानुसार कार्य कराने का रहस्य “मानसिक संकल्प” के सिवाय और कुछ नहीं। किसी मनुष्य से प्रभावशाली ढंग से कोई बात कह कर जब उसे विश्वास करा दिया जाता है तो वह तदनुसार आचरण करने लगता है। सम्मोहन विद्या का मूल तत्व यह संकल्प शक्ति ही है जिसे अंगरेजी में “सजैशन” कहते हैं। हाथ फेरना, नाक की नोक पर निगाह का जमाना, किसी चमकीली वस्तु को निगाह गढ़ा कर देखना आदि क्रियाएँ इस “संकल्प प्रकाश” क्रिया की सहायक हैं। इस संबंध में इस विद्या के एक जानकार व्यक्ति की सम्मति इस प्रकार है—

“किस प्रक्रिया को करने से किस शरीर-यन्त्र को अवसन्न किया जा सकता है, इस बात का ज्ञान सम्मोहनकारी को प्राप्त कर लेना आवश्यक है। यदि हम किसी व्यक्ति की आँखों के ऊपर तीक्ष्ण दृष्टि डालकर उसके नेत्रों में अवसन्नता ला सकेंगे, तो उसके शरीर में भी अवसाद का भाव उत्पन्न हो जायगा। इसके बाद “सो जाओ” कह कर ‘संकल्प’ का प्रयोग करने से उसमें निद्रा का भाव उत्पन्न हो जायगा।” मैस्मरेजम वाले तो रोगों को दूर करने, बन्द चिट्ठियों को पढ़ने, देर देश में रहने वाले व्यक्तियों के पास संदेश भेजने, चोरी गई या छुपी हुई वस्तुओं का हाल जान लेने आदि के चमत्कारी कार्य करते हैं। इसको साँसारिक सफलता कह सकते हैं। इसके विपरीत योग विद्या का उद्देश्य साँसारिक बंधनों से निवृत्त होना है जो मैस्मरेजम से उच्चकोटि का है।


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