जगद्वन्धु माँ, शक्ति दो, साधना दो।
अचल अर्चना दो, अटल बन्दना दा॥
हमें भक्ति दो सर्वदा प्रेम मण्डित।
हमें ज्योति दो वह सदा जो अखण्डित॥
न इच्छा रहे ना बसे वासना आ-
तुम्हें में मगन मन यही कामना दो॥
जगद्वन्धु माँ, शक्ति दो, साधना दो।
अचल अर्चना दो, अटल बन्दना दा॥
न हो हर्ष से, शोक में क्षुब्ध यह मन।
सतावे न सुख दुःख कटे मोह बन्धन॥
सभी यह तुम्हारा, तुम्हारे सभी हैं-
तुम्हीं सर्वमय हो यही भावना दो॥
जगद्वन्धु माँ, शक्ति दो, साधना दो।
अचल अर्चना दो, अटल बन्दना दा॥
कभी काम की कल्पना ना कँपाये।
कभी क्रोध प्रतिशोध होकर न आये॥
जले राग की आग में मन न मेरा-
यही धारणा दो, यही भावना दो॥
जगद्वन्धु माँ, शक्ति दो, साधना दो।
अचल अर्चना दो, अटल बन्दना दा॥
विषय वासना विष भरी है अटारी।
यही बुद्धि दे दो बनें ब्रह्मचारी॥
मिले मान अपमान पथ में तुम्हारे-
लगें सब परम प्रिय यही धारणा दो॥
जगद्वन्धु माँ, शक्ति दो, साधना दो।
अचल अर्चना दो, अटल बन्दना दा॥
*समाप्त*