निर्माण के हम गीत गाएँ (kavita)

July 1959

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विश्व के हर पंथ में हम फूल भरे दें।

विघ्न के हर शैल को हम धूल कर दें॥

निर्बलों में बल भरें मिलकर चलें सब,

स्वर्ग का संसार हम भू पर बसाएँ।

आज नव निर्माण के हम गीत गाएँ॥ 1॥

हर रुके राही को हम गतिमान कर दें।

हर बुझे दीपक में हम नव प्राण भर दें॥

विषमता समता बने मेरी धरा पर,

शान्ति शुचिता प्रेम के नव स्वर जगाएँ।

आज नव निर्माण के हम गीत गाएँ ॥ 2॥

अब तिमिर जग में अधिक क्या रह सकेगा।

चेतना का रवि नई रचना रचेगा॥

नव सृजन होगा नई हर बात होगी।

सृष्टि को नव रूप दे हम फिर सजाएँ।

आज नव निर्माण के हम गीत गाएँ ॥ 3॥

—त्रिलोकीनाथ ब्रजवाल


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