मन्त्र शक्ति का अद्भुत चमत्कार

July 1959

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री गिरिजा सहाय व्यास)

भारतीय धर्म में मन्त्रशक्ति का स्थान बड़ा महत्वपूर्ण और हमारे वेद-शास्त्र पुराण सभी मन्त्रों की महिमा से भरे हैं। उनका मत यह है कि मंत्रों में शक्ति का अपार भंडार भरा है और जो कोई उनका विधिवत् साधन करेगा। वह उनकी शक्ति से अपना और दूसरों का कल्याण कर सकेगा। पर काल प्रभाव से अब मन्त्रों पर लोगों की वैसी श्रद्धा नहीं रही है और मन्त्रों द्वारा प्रत्यक्ष कार्य कराने वाले साधक भी नाम मात्र को ही मिलते हैं। इसके विपरीत अनेक धूर्तों ने इस विद्या के नाम पर लोगों को ठगना शुरू कर दिया है और वे तरह-तरह की चालें और हाथ की सफाई करके दर्शकों को धोखे में डाल देते हैं, इन बातों का परिणाम यह हुआ है कि जनता का विश्वास मन्त्रों पर से हट गया है और कोई समझदार व्यक्ति मन्त्र-शक्ति की सत्यता को मानने के लिये तैयार नहीं होता। यह स्थिति लोगों के लिये ही नहीं धर्म की दृष्टि से भी हानिकर है, क्योंकि मन्त्रों का मुख्य उद्देश्य चमत्कार दिखलाना नहीं, वरन् आत्मोन्नति के क्षेत्र में प्रगति करना है। सन्तोष का विषय है कि अब भारतीय राष्ट्र में जो नवीन चेतना की लहर उत्पन्न हुई है उसमें अन्य बातों के साथ इस ओर भी अधिकारी पुरुषों का ध्यान गया है और इस विद्या का विधिवत् साधन करने के कितने ही उदाहरण सम्मुख आ रहे हैं। इस सम्बन्ध में एक प्रामाणिक वर्णन गोरखपुर के सहयोगी “कल्याण” के वर्ष 26 संख्या 12 पृष्ठ 1498 में प्रकाशित हुआ है। जिसे हम पाठकों के हितार्थ ज्यों का त्यों उद्धृत कर रहे हैं—

बिरला हाउस, नई दिल्ली से मास्टर श्रीराम जी लिखते हैं—दिल्ली में अनुमान दो-ढाई मास से एक वैष्णव साधु आये हुये थे, जिनका नाम बाबा गोपालदास है। वे यहाँ पर आर्यनिवास नं.1 डॉक्टर लेन पर ठहरे थे। छत के ऊपर एक गोल सा छोटा कमरा है, उसी में वे रहते थे। उन्होंने गोपाल का एक चित्र काष्ठ की चौकी पर रख छोड़ा था। उस चित्र के चारों तरफ कनेर के पुष्प चढ़ाये हुए रक्खे रहते थे। गोपालदास बाबा उस चौकी के पास ही एक दरी पर बैठे तुलसी की माला फेरते थे। जो लोग उनके पास जाते, वे भी उसी दरी पर बैठ जाते थे। उनके पास जाने वालों को प्रसाद देने के लिये बाबाजी ईंट के छोटे-छोटे टुकड़े अनुमान 4,5 तोले वजन के एक हरे केले के टुकड़े में गोपाल की मूर्ति के सामने आधा मिनट रखकर उठा लेते थे, ईंट के टुकड़े सफेद मिश्री के टुकड़ों में बदल जाते थे और वे उन मिश्री के टुकड़ों को उन लोगों को दे देते थे, जो उनके दर्शन के लिये जाते। कभी-कभी ईंट का टुकड़ा कलाकन्द में बदल जाता था। यह अद्भुत परिवर्तन कैसे हो जाता है? सो तो वह बाबाजी ही जानते हैं और किसी को पता चला नहीं है। विज्ञानवेत्ता इस कारण को ढूँढ़ निकालें तो दूसरी बात है।

उस बाबाजी के पास जर्मन-राजदूत, जापानी-राजदूत, (संसद के अध्यक्ष) श्रीमावलंकर, श्रीसत्यनारायणसिंह, रायबहादुर लक्ष्मीकान्त मिश्र आदि गये थे। इनको भी इसी प्रकार का प्रसाद दिया गया था। जर्मन-राजदूत के साथ एक जर्मन महाशय भी थे। उन्होंने तो यह चमत्कार देखकर बाबाजी से अपना शिष्य बना लेने की प्रार्थना भी की।

इन दो प्रकार के चमत्कारों के अतिरिक्त तीन चमत्कार विशेष उल्लेखनीय हैं। पहला चमत्कार तो यह है कि श्री जुगलकिशोर जी बिरला ने एक ताँबे की चमची को एक केले के हरे पत्ते में लपेटकर अपने हाथ में लिया और बाबाजी के कहने के अनुसार श्री बिरला जी सूर्य के सामने खड़े हो गये। बाबाजी भी पास में खड़े कुछ मन्त्र जपते रहे। दो-तीन मिनट बाद ही चमची निकाली गई तो सोने की बन गई थी। अभी तक वह चमची श्री बिरला जी के मुनीम डालूराम जी के पास उसी आर्य-भवन में रक्खी हुई है।

दूसरा चमत्कार यह हुआ कि इस मिश्री के प्रसाद का वृत्तान्त सुनकर एक महाशय ने बाबाजी के पास जाने वालों में से किसी को यह बात कह दी कि हम तो बाबाजी की मन्त्रसिद्धि तब मानें जबकि वे पूरी-की-पूरी एक नंबरी ईंट को मिश्री की ईंट बना दें। ऐसी बात बाबाजी को सुनाई गई तो बाबाजी ने झट कह दिया कि गोपाल जी की कृपा से मिट्टी की ईंट के टुकड़े मिश्री के टुकड़े बन जाते हैं तो पूरी मिट्टी की ईंट बन जाना कौन बड़ी बात है। अतएव 18 सितम्बर बृहस्पतिवार को रात्रि के 8 बजे श्री बिरलाजी के तथा और कई सज्जनों के सामने एक नंबरी ईंट मँगाई गई और उसको धो-पोंछकर एक सज्जन के हाथ से काष्ठ की एक चौकी पर वह ईंट रखवा दी गई तथा एक केले के पत्ते से उस ईंट को ढ़क दिया गया। तीन-चार मिनट तक बाबाजी कुछ मन्त्र जपते रहे। फिर उस ईंट को उठाया गया तो केले के पत्ते में से एक दम श्वेत मिश्री की ईंट निकली। वह ईंट (बिरला-हाउस, दिल्ली में ) श्री जुगलकिशोर जी बिरला के पास रक्खी हुई हैं, सो ये दोनों चीजें तो मौजूद हैं, कोई भी देख सकता है।

तीसरी अद्भुत घटना तो मैंने स्वयं अपनी आँखों से देखी है। उस समय बाबू जुगलकिशोर जी बिरला, गायनाचार्य पंडित रमेश जी ठाकुर तथा ‘नवनीत’ के संचालक श्री श्रीगोपालजी नेवटिया उपस्थित थे। अनुमान दिन के दस बजे होंगे। उस समय किसी ने बाबाजी से कहा कि “एक दिन आपने पानी से दूध बनाया था, परन्तु उस दिन प्रभुदयाल जी हिम्मतसिंह का, माधवप्रसाद जी बिरला आदि जो सज्जन देखते थे, उनको सन्तोष नहीं हुआ था। बाबाजी इस प्रकार से दूध बनायें कि किसी को भी सन्देह न रहे। इस पर बाबाजी बहुत हँसे और बोले, उन लोगों की श्रद्धा की स्यात्, परीक्षा की गई होगी। इसके बाद बाबाजी ने कहा, ‘अच्छा एक काठ का पट्टा बाहर रक्खो और उस पर यह पानी की बाल्टी रख दो।’ बाबाजी ने जैसा कहा वैसा ही किया गया। बाबाजी ने अपनी चद्दर, जो ओढ़ रखी थी, वह भी उतार दी और एक कौपीन तथा उस पर एक तौलिया ही रक्खा और स्वयं दूर खड़े हो गये तथा सबको कह दिया कि उस बाल्टी को एक दफे फिर अपनी आँखों से देख लो। सबने वैसा ही किया। बाबाजी ने एक आदमी से कहा कि “तुम इस पट्टे पर बाल्टी के पास बैठ कर ओम् का जप करते रहो। फिर बाबाजी उस बाल्टी के पास गये और उसमें से कटोरी पानी की भरी और सबको वह पानी दिया गया। सबने कहा, यह तो पानी ही है। फिर बाबाजी श्री गोपाल जी की मूर्ति के पास जा बैठे और वह बाल्टी अपने पास मँगा ली। बाल्टी गमछे से ढ़क दी गई और एक लाल फूल, जो गोपाल जी की मूर्ति पर चढ़ा हुआ था, अपने हाथ से बाल्टी में डाल दिया। उसे पश्चात् जब गमछा हटाया गया, तब एकदम सफेद दूध देखने में आया। सबको एक-एक कटोरी दूध दिया गया। शेष दूध बिरला-हाउस पहुँचाया गया, जो अनुमानतः ढाई सेर था। वह दूध गरम करके जमाया गया और दूसरे दिन उसमें से मक्खन निकाल गया।

बाबाजी को ऐसी ही अनेक सिद्धियों का हाल गोस्वामी गणेशदत्त जी सुनाया करते हैं; परन्तु यहाँ पर तो संक्षेप में इतना ही उल्लेख किया गया है। इन कुछ आश्चर्यजनक बातों को देखकर मन में आया कि विज्ञानवेत्ताओं से विनयपूर्वक निवेदन करूं कि आर्य-ऋषियों और मुनियों द्वारा सम्मानित पातञ्जल-योगदर्शन के सूत्र ‘जन्मौषधिमन्त्रतपः समाधिजाः सिद्धयः’ में एक मन्त्रसिद्धि भी मानी गई है। मन्त्रसिद्धि का चमत्कार देखने का अब तक मुझे कोई अवसर नहीं मिला था, परन्तु ये कुछ चमत्कार अपनी आँखों से देखकर मुझे मन्त्रसिद्धि में पूर्णतया विश्वास हो गया है। साथ ही एक प्रकार का विस्मय भी उत्पन्न हो गया है। उसी विस्मय के कारण आधुनिक विज्ञानवेत्ताओं से यह निवेदन करने की प्रबल इच्छा उत्पन्न हुई है कि आप पातञ्जल-योगदर्शन के उपर्युक्त मन्त्र में वर्णित मन्त्रसिद्धि को मानते हैं या नहीं? और यदि नहीं मानते हैं तो या तो आय भी ऐसे ही चमत्कार अपने विज्ञान द्वारा करके दिखायें और यदि आप दिखाने में समर्थ नहीं हैं तो आप अपने अभिमान को त्याग कर भारतीय आर्य शास्त्रों में बताई गई मन्त्रसिद्धि को सहर्ष स्वीकार कर लें, क्योंकि आप तो अपने को बराबर ही सत्य का पुजारी घोषित करते रहते हैं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles