(श्री हेमचन्द्र साहित्य मनीषी)
साधारण लोग शरीर की शक्ति को ही सर्वोपरि मानते हैं। उनकी समझ में जो आदमी जितना अधिक हट्टा-कट्टा, और पुष्ट और मजबूत स्नायुओं वाला होता है, वह उतना ही शक्तिशाली होता है। जो मनुष्य चार-छह मन बोझ को आसानी से एक जगह से उठाकर दूसरी जगह रख सकता है, मोटरगाड़ी को पकड़ कर रोक सकता है, लोहे की मोटी छड़ को मरोड़ सकता है उसे बहुत बड़ा बलवान माना जाता है। एक ऐसा मनुष्य जो बीस सेर बोझा भी नहीं उठा सकता ऐसे शक्तिशाली व्यक्ति को ललकार देता है और उसे अपनी आज्ञानुसार चलने को बाध्य कर देता है। तब हमको अनुभव होता है कि संसार में स्थूल शक्ति से भी बढ़कर कोई सूक्ष्म शक्ति काम कर रही है, और वही वास्तव में समस्त कार्यों का मूल कारण है।
विचार किया जाय तो संसार का आदि स्वरूप सूक्ष्म ही है और उसी से क्रमशः स्थूल का विकास हुआ है। इस प्रकार हम सूक्ष्म को स्थूल का कारण कह सकते हैं और कारण को जान लेने तथा स्वयंवश करे लेने पर कार्य को सफल बना सकना कुछ भी कठिन नहीं रहता। एक समय था जब मनुष्य केवल अपने हाथ पैरों की या हाथी, घोड़े, बैल आदि की शक्ति को ही प्रधान मानता था और उसी से बड़े-बड़े कार्य सिद्ध करता था। उस समय अगर उनको कोई सौ मन की वस्तु अपने स्थान से हटानी पड़ती तो उसमें सौ आदमी ही लग जाते थे अथवा कितने हाथी, बैलों आदि को एक साथ जोत कर इस कार्य को पूरा कराया जाता था। पर कुछ समय पश्चात् जब मनुष्य को भाप जैसी सूक्ष्म वस्तु का ज्ञान हुआ तो उसकी सहायता से अकेला मनुष्य ही हजार-हजार मन वजन की वस्तुओं को हटाने में समर्थ हो गया। इससे आगे चल कर मनुष्य को बिजली की शक्ति का ज्ञान हुआ जो भाप की शक्ति से भी सूक्ष्म थी। इससे मनुष्य को ऐसी शक्ति प्राप्त हुई कि वह सैकड़ों मील दूर बैठ कर ऐसे-ऐसे कार्यों को पूरा करने लगा जिसे पहले दो चार हजार आदमी भी कठिनाई से कर सकते थे। अब वर्तमान समय में मनुष्य अणुशक्ति को हस्तगत कर रहा है जो बिजली से भी अत्यन्त सूक्ष्म है। इसकी सहायता से अब यह आशा की जा रही है कि मनुष्य बड़े-बड़े पर्वतों और सागरों की भी काया पलट कर सकेगा और आकाश स्थित ग्रहों पर भी अधिकार जमा सकेगा।
इतना होने पर भी ये सब भौतिक शक्तियाँ हैं। इन सबका उद्गम भौतिक पदार्थों से होता है और उनका प्रभाव भी भौतिक जगत तक ही सीमित रहता है। हमारा मन इन भौतिक पदार्थों की अपेक्षा कहीं अधिक सूक्ष्म है इसलिये स्वभावतः वह इन सब की अपेक्षा अधिक शक्ति का भंडार है। यह सच है कि लोगों को न तो मन की शक्तियों का ज्ञान है और न वे उससे काम लेने की विधि जानते हैं, पर यदि हम इस विषय में चेष्टा करें तो मन की शक्ति से ऐसे-ऐसे कार्य कर सकते हैं जो उपरोक्त भौतिक शक्तियों से असम्भव हैं। आज कल जो लोग “मैस्मेरिज्म” “हिप्नोटिज्म” ‘विचार-संक्रमण’ (थाट ट्रान्सफरेंस) आदि के चमत्कार दिखलाते हैं, वे मन की शक्ति के साधारण कार्य होते हैं। पर इन्हीं के द्वारा कैसे-कैसे असम्भव समझी जाने वाली बातें कर दिखाई जाती हैं, इनका वर्णन स्वामी विवेकानन्दजी ने एक स्थान पर किया था। वे उन्होंने अपने एक भाषण में बतलाया—
“मैंने एक बार एक ऐसे मनुष्य के बारे में सुना जो किसी के प्रश्न का उत्तर सुनने के पहले ही बता देता था। मुझे यह भी बतलाया गया कि वह भविष्य की बातें बतलाता है। मुझे उत्सुकता हुई और अपने कुछ मित्रों के साथ मैं वहाँ पहुँचा। हम में से प्रत्येक ने पूछने का प्रश्न अपने मन में सोच लिया था और कोई गलती न हो इस ख्याल से उन प्रश्नों को कागज पर लिख कर अपने जेब में भी रख लिया था। ज्यों ही हम में से एक वहाँ पहुँचा उसने हमारे प्रश्न और उनके उत्तर बतलाने शुरू कर दिये। फिर उस मनुष्य ने एक कागज पर कुछ लिखा, उसे मोड़ा और उसके पीछे की तरफ मेरे हस्ताक्षर कराये। तब वह बोला इसे पढ़ो मत, अपने जेब में रख लो जब तक कि मैं इसे न माँगूँ।” उसने ऐसा ही एक-एक कागज सब को दिया और यही बात कही। फिर उसने कहा कि “अब तुम किसी भी भाषा का कोई वाक्य या शब्द अपने मन में सोच लो”! मैंने संस्कृत का एक लम्बा वाक्य सोच लिया। वह मनुष्य संस्कृत बिल्कुल न जानता था। उसने कहा “अब अपने जेब में से उस कागज को निकालो।” कैसा आश्चर्य! वही संस्कृत का वाक्य उस कागज पर लिखा था और नीचे यह भी लिखा था कि “जो कुछ मैंने इस कागज पर लिखा है वही यह मनुष्य सोचेगा।” और यह कागज उसने मुझे एक घंटा पहले लिख कर दे दिया था। हम में से दूसरे को, जिसके पास भी उसी तरह अरबी भाषा का एक फिकरा सोचा। अरबी भाषा जानना उस मनुष्य के लिये और भी असम्भव था। वह फिकरा था “कुरान शरीफ” का। लेकिन मेरा मित्र क्या देखता है कि वह भी उसके जेब में रखे कागज पर पहले से लिखा हुआ रखा है। हम में से तीसरा साथी था डॉक्टर। उसने जर्मन भाषा की किसी डाक्टरी पुस्तक का वाक्य अपने मन में सोचा। उसके जेब के कागज पर वही वाक्य लिखा हुआ निकला।
“यह सोच कर कि मैंने पहले पहल कहीं धोखा न खाया हो, कई दिन बाद मैं फिर दूसरे मित्रों को साथ लेकर वहाँ गया। पर इस बार भी उसने वैसी ही आश्चर्यजनक सफलता प्राप्त करके दिखलाई।”
इस प्रकार के उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। उपर्युक्त उदाहरण हमने इसलिये दिया है क्योंकि यह एक ऐसे महापुरुष के मुख से निकला है जिसकी सचाई पर कोई अविश्वास नहीं कर सकता। यह बात वैसे बड़ी आश्चर्यजनक सी लगती है, पर यह दूसरों के दिमाग में उठने वाले विचारों को जान लेने और अपने विचारों को उनके दिमाग में प्रविष्ट करा देने की विद्या के सिवाय कुछ नहीं है। योग शास्त्र के अनुसार यह आध्यात्मिक उन्नति की दूसरी सीढ़ी है जो मनोमय कोष पर कुछ अधिकार होने से प्राप्त हो सकती है। प्रत्येक मनुष्य का मन संसार के समिष्ट मन का अंशमात्र है और इसलिये प्रत्येक मन दूसरे हर एक मन से संलग्न है। मन एक विश्वव्यापी तत्व है। इसी अखण्डता के कारण हम अपने विचारों को एक दम सीधे, बिना किसी माध्यम के, आपस में संक्रमित कर सकते हैं और इसके द्वारा छोटे-मोटे चमत्कार ही नहीं दिखला सकते, वरन् बहुसंख्यक व्यक्तियों के मन को इच्छानुकूल मार्ग की ओर मोड़ सकते हैं। जो महापुरुष किसी राष्ट्र का निर्माण करते हैं, या कोई अद्भुत शक्ति उत्पन्न कर देते हैं, वह लोग इस शक्ति के लिये योगियों या मेस्मराइज करने वालों के समान कोई अभ्यास नहीं करते वरन् यह शक्ति और प्रभाव उनमें प्रकृतिदत्त होते हैं।
मनुष्य इस प्रकार मन की शक्ति को कहाँ तक बढ़ा सकता है इसका कोई अन्त नहीं है। इस प्रकार जब हम अपने मन की बढ़ी शक्ति को किसी एक विषय में लगा देते हैं, तो उसमें आश्चर्यजनक उन्नति करके दिखला सकते हैं। भारतवर्ष के ऋषि महर्षियों ने बिना कालेजों और विश्व विद्यालयों की शिक्षा प्राप्त किये जो अद्भुत आविष्कार किये थे और वैज्ञानिक सिद्धान्तों को खोज निकाला था उसका मूल इसी प्रकार की मानसिक शक्ति में था। गणित, ज्योतिष, चिकित्सा, रसायन शास्त्र, भौतिक विज्ञान आदि अनेक महत्वपूर्ण शास्त्रों की रचना उन लोगों ने अधिकाँश में इसी प्रकार की थी। इतना ही नहीं उनमें से अनेकों ने साधारण धातुओं को सोने के रूप में बदलने, अपने पंचभौतिक शरीर को लगभग अमर बनाने, बिना किसी यंत्र के आकाश में उड़ने आदि जैसे असम्भव माने जाने वाले कार्यों को भी पूरा कर दिखाया था। पर चूँकि इस प्रकार के कार्यों में उनकी मानसिक शक्ति ही प्रधान थीं, वर्तमान समय के अनुसार बाह्य याँत्रिक साधनों का उनमें विशेष संपर्क न था। यही कारण है कि उस समय इन विद्याओं और विधियों का वैसा सार्वजनिक रूप से प्रचार न हो सका जैसा कि हम आज कल देख रहे हैं। पर इससे यह नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान युग विज्ञान की दृष्टि से विशेष उन्नति का है। इस समय वैज्ञानिक आविष्कारों की सार्वजनिकता का परिणाम यह हुआ है कि उसमें से अधिकाँश का दुरुपयोग हो रहा है और प्रत्येक आविष्कार रुपया कमाने का—स्वार्थ साधन का जरिया बन रहा है। अन्त में बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक नौबत आ गई है कि स्वार्थी और गैर जिम्मेदार व्यक्ति अणुबम और हाइड्रोजन बम जैसे नाशकारी साधनों के अधिकारी बन गये हैं और संसार के अस्तित्व को खतरे में डाल रहे हैं। यही कारण था कि भारत के प्राचीन विद्वान् और वैज्ञानिक शक्ति सम्पन्न व्यक्ति ऐसे रहस्यों को केवल अधिकारी व्यक्तियों को बतलाते थे और बतलाने के पहले उनकी हर प्रकार से परीक्षा ले लेते थे।
इसमें सन्देह नहीं कि मन की सामर्थ्य अपार है और यदि हम वास्तव में मन की शक्ति बढ़ाकर अपनी और दूसरों की उन्नति के लिये उसका प्रयोग करें तो संसार का बड़ा कल्याण हो सकता है।