महिला स्वयं सेविकाओं की आवश्यकता

October 1958

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महायज्ञ का कार्यक्रम प्रायः श्रमदान पर ही आधारित है। शिक्षण शिविर में 13 अक्टूबर से 26 नवम्बर तक 6 सप्ताह के लिए जो व्यक्ति बुलाये गये हैं वे गायत्री परिवार के महान मिशन को समझने, यज्ञ और गायत्री उपासना के सारे विधि-विधान को जानने, अपने क्षेत्र में गायत्री-प्रचार करने की विधि व्यवस्था को समझने, अपने जीवन को यज्ञ रूप बनाने, युग निर्माण एवं साँस्कृतिक पुनरुत्थान की योजना को पूर्ण करने के सम्बन्ध में तो शिक्षा प्राप्त करेंगे ही, साथ-साथ उन्हें महायज्ञ का कार्यक्रम भी अपने श्रमदान से करने में कटिबद्ध होना होगा। कुण्ड खोदने, यज्ञशालाएँ निर्माण करने, यज्ञशालाओं का हवन कार्य संचालन करने, भोजन एवं ठहराने की व्यवस्था सँभालने, रात को पहरा लगाने, आस-पास क्षेत्र में यज्ञ का प्रचार करने आदि कार्य भी उन्हें ही अपने शारीरिक और मानसिक श्रम से पूरे करने होंगे।

आर्थिक दृष्टि से अपने यज्ञ की स्थिति बहुत दुर्बल है। अत्यन्त आवश्यक कार्यों के लिए भी पैसे की व्यवस्था जुटाने में भारी कठिनाई दीखती है। सार्वजनिक चन्दा न करके, केवल स्वेच्छा सहयोग पर ही निर्भर रहने की नीति से बहुत ही स्वल्प मात्रा में कुछ मिलने की सम्भावना है। ऐसी दशा में हमें अपने अधिकाँश कार्यों के लिए श्रम पर ही निर्भर रहना होगा।

शिक्षण शिविर में शाखाएं अपने-अपने प्रतिनिधि भेज रही हैं वे सुयोग्य ही होने चाहिएं जो हमारा हाथ बँटा सकें। कूड़ा-कचरा जैसे फालतू आदमी भेज देने से वे कुछ काम तो करेंगे नहीं, उलटे हमारे सिरदर्द बनेंगे, ऐसे लोग भेज देना यज्ञ में सहायता तो क्या उलटी एक बाधा साबित होगी।

पुरुषों की भाँति नारियों का भी इस सम्बन्ध में पूरा उपयोग है। प्रतिभाशाली महिलाएं वही काम कर सकती हैं जो पुरुष करेंगे। जिनके ऊपर छोटे बच्चों की जिम्मेदारी न हो तथा जो बहुत घूँघट-पर्दा न करती हों, जिनके शरीर में स्फूर्ति तथा स्वभाव में उत्साह हो वे महिलाएँ इस श्रमदान में, शिक्षण शिविर में पुरुषों के समान ही उपयोगी सिद्ध हो सकती है। अध्यापिकाएँ इस कार्य के लिए पूर्ण उपयुक्त हैं। कोई भी वयस्क लड़की यहाँ पूर्ण सुरक्षित एवं पवित्रता के वातावरण में उसी प्रकार रह सकेगी जैसे अपने पिता के घर में रहती है।

यज्ञ के दिनों में भी एक दिन महिला सम्मेलन होगा तथा स्वयं सेविकाओं की आवश्यकता पड़ेगी। जो महिलाएँ इस कार्य के लिए उपयुक्त हों वे 13 अक्टूबर से लगने वाले शिक्षण शिविर में आ सकती हैं। जो इतने दिनों के लिए न आ सकें वे यज्ञ के दिनों में अथवा उससे कुछ दिन पूर्व आ सकती हैं। पुरुष सहयोगियों की तरह नारी सहयोगिनियों का भी समान रूप में स्वागत है। दोनों के ही सहयोग एवं श्रमदान का समान रूप में आह्वान है।

नारी जाति को अपने आत्म-गौरव स्वाभिमान महत्व एवं सामर्थ्य बल का भान ऐसे ही अवसरों पर कार्य करने में होता है। इसलिए प्रयत्न यह करना चाहिए कि गायत्री माता के महायज्ञ के प्रबन्ध में उसकी पुत्रियाँ ही आगे बढ़कर हाथ बँटावें। महायज्ञ में आने वाले याज्ञिक अपने साथ कुछ ऐसी महिलाएं लाने का प्रयत्न करें जो यहाँ के प्रबन्ध की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठाने के लिए उत्साहित हों। शिविर में भी ऐसी महिलाएं आनी चाहिएं। चूँकि साधारणतः सभी नर-नारी याज्ञिकों के वस्त्र पीले रंगे हुए होंगे इसलिए इन स्वयं सेविकाओं की धोतियाँ दूसरे रंग से रंगी जाएंगी। यह रंग यहीं निश्चित किया जायगा। इसलिए ये महिला स्वयं सेविकाएं अपनी धोतियाँ सफेद ही लायें, जो रंग निश्चित किया जायगा यहीं रंग दिया जायगा। शिक्षण शिविर में 13 अक्टूबर से आने वाली महिलाएँ पूर्व स्वीकृति अवश्य प्राप्त कर लें।


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