तीर्थ यात्रा का मूल तत्व-धर्म प्रचार

October 1958

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प्राचीन काल में तीर्थ यात्रा पैदल की जाती थी। शास्त्रों में पैदल तीर्थ-यात्रा का बहुत पुण्य लिखा है। इसका कारण यह है कि तीर्थ यात्री लोग रास्ते में पड़ने वाले ग्रामों में धर्म प्रचार करते हुए जावें। उत्तर प्रदेश के पूर्वी जिलों में एक धर्म परम्परा यह चलती है कि उत्साही धर्मप्रेमी गंगाजी से दो शीशी गंगाजल की भरकर उन्हें काँवर में कँधे पर रख कर पैदल चलते हुए उस काँवर को अपने समीप के शिव मन्दिर पर चढ़ाते हैं। यह लोग रास्ते में उच्च स्वर से धार्मिक दोहे या भजन गाते जाते हैं ताकि उस रास्ते में धर्म प्रचार होता चले। स्त्रियाँ किसी तीर्थ को जाती हैं तो रास्ते भर धार्मिक भजन गीत गाती जाती हैं। इसका भी यही उद्देश्य है।

आज कल लोग तीर्थ यात्रा को तो चलते हैं पर रास्ते में धर्म प्रचार करते चलने वाली अत्यन्त महत्वपूर्ण, पुण्य की मूल बात को भूल ही जाते हैं। दर्शन या स्नान में ही पुण्य मान लेते हैं जबकि सच्चा पुण्य पैदल यात्रा के कष्ट सहने एवं धर्म प्रचार करने में केन्द्रित है। हमें चिन्ह पूजा तक ही सीमित न रहना चाहिए वरन् तीर्थ यात्रा करते समय धर्म प्रचार की उस सार बात को भी स्मरण रखना चाहिए।

यह गायत्री महायज्ञ सच्चे अर्थों में तीर्थ यात्रा है। वृंदावन, गोकुल, महावन, गोवर्धन, नन्दगाँव, बरसाना आदि स्थानों के दर्शनों के साथ-साथ इतने तपस्वियों का सम्मिलन, इतने कुण्डों द्वारा इतनी प्रचंड आध्यात्मिक शक्ति के अवतरण का यह अलभ्य अवसर है। ऐसी तीर्थ यात्रा का सुयोग फिर शायद ही लोगों को कभी मिलेगा। इसलिए व्रतधारी साधकों के अतिरिक्त दर्शक भी इस अवसर पर आने की तैयारी कर रहे हैं।

अनेकों शाखाओं से मथुरा के लिए पैदल जत्थे रवाना होने की सूचनाएँ प्राप्त हो रही हैं। पीले वस्त्र पहन कर गायत्री परिवार के झंडे हाथ में लिए हुए, गाँव-गाँव गायत्री प्रचार करते हुए लोग आवें तो सचमुच ही यह पैदल तीर्थ यात्रा अनेक गुनी पुण्य फलदायक होगी। जहाँ सम्भव हो वहाँ से इस प्रकार के पैदल जत्थे रवाना होने चाहिए और रास्ते भर गायत्री माता का, यज्ञ पिता का महत्व बताते हुए महायज्ञ में मथुरा आने का निमन्त्रण देते आना चाहिए।

महायज्ञ में पैदल या सवारी से जिससे जैसे बनेगा आवेंगे। पर एक बात हर किसी आगन्तुक को ध्यान में रखनी चाहिए कि तीर्थ यात्रा के रास्ते में धर्म प्रचार करने की पुण्य परम्परा को अवश्य ध्यान में रखा जाय। रास्ते में चुप न रहा जाय वरन् जिनसे भी बातचीत हो अपने मथुरा जाने का उद्देश्य और महायज्ञ का, गायत्री परिवार का कार्यक्रम बताया जाय। रास्ते में महायज्ञ सम्बन्धी चर्चा का, भजन कीर्तन का आयोजन होता हुआ आना चाहिए। जो उस अवसर पर न आ सकें उन्हें महायज्ञ का निमन्त्रण अपने आस-पास के क्षेत्र में दूर-दूर तक पहुँचाने के लिए इन पर्चे पोस्टरों का उपयोग करना चाहिए। यह पर्चे 4)में एक सेर के हिसाब से दिये जावेंगे। एक सेर में लगभग 1400 ‘छोटे पर्चे पोस्टर’ या 350 बड़े पर्चे पोस्टर आवेंगे। छोटे पर्चे 5&3॥। इंच और बड़े पर्चे 7॥&5 इंच साइज के हैं। यह दीवारों पर, किवाड़ों पर, चिपकाने तथा बाँटने के भली प्रकार काम आ सकते हैं। महायज्ञ में मथुरा आने वाले प्रत्येक तीर्थ यात्री को कुछ दिन पहले ही अपनी सामर्थ्यानुसार यह पर्चे मँगा लेने चाहियें। इनमें से आधे पर्चे तो अपने आस-पास के क्षेत्र में बाँटने या चिपकाने में काम ले लेने चाहिएं। शेष आधे पर्चे घर से निकल कर मथुरा आने तक मिलने वाले यात्रियों में बाँटते हुए आना चाहिए।

अभी तक अधिकाँश होता यजमानों एवं संरक्षकों ने निर्धारित प्रतिज्ञा के अनुसार वितरण साहित्य नहीं मँगाया है। अब उन पर इस ब्रह्मभोज की आवश्यक शर्त के लिए जोर दिया जाना चाहिए। निर्धारित शर्त जितना वितरण साहित्य अपनी शक्ति और श्रद्धा के अनुसार मँगा लेना चाहिए। जिसने इस पुनीत प्रचार कार्य से सर्वथा मुख मोड़ा हो ऐसा व्रतधारी याज्ञिक एक भी न रहना चाहिए। अब ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की पुस्तकें तथा बड़े पर्चे न मँगाकर इन छोटे बड़े पोस्टरों पर अधिक बल देना चाहिए क्योंकि इनके द्वारा गायत्री माता का, यज्ञपिता का सन्देश एवं महायज्ञ का निमन्त्रण पहुँचता है। यह बहुत ही सस्ते में अधिक लोगों तक धर्मप्रचार करने का सरल तरीका है।

यह पर्चे पोस्टर वी.पी. से नहीं भेजे जायेंगे। क्योंकि हर वी.पी. में करीब॥।) अतिरिक्त अधिक पोस्टेज रजिस्ट्री खर्च देना पड़ता है। इनका पैसा पेशगी भेजना चाहिए। शाखा मन्त्री उधार भी मँगा सकते हैं उनका पैसा इकट्ठा करके अपने साथ ला सकते हैं। जहाँ रेलवे स्टेशन पास हो और छोटे बड़े पर्चे पोस्टर बड़ी तादाद में मँगाने हों वहाँ रेल से ही इन्हें मँगाना चाहिए। नवरात्रि के पुनीत पर्व में ही इन पर्चों का वितरण, प्रचार आरम्भ हो जाना चाहिए।

शिक्षण शिविर से आने वाले सज्जन अपना लोटा, कटोरी, बिस्तर तथा पीले रंगे वस्त्र साथ लावें।


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