नवरात्रि में सामूहिक यज्ञानुष्ठान हों।

October 1958

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

उपासना के तत्वज्ञान पर विश्वास रखने वाले धर्मप्रेमियों के लिए नवरात्रि का पुनीत पर्व बहुत ही महत्वपूर्ण है। समय पर बोया हुआ बीज जिस प्रकार भली प्रकार अंकुरित होता है, उसी प्रकार नवरात्रि जैसे पर्वों पर की हुई साधना भी विशेष फलदायक होती है। सूर्य उदय और सूर्य अस्त के समय जिस प्रकार दिन और रात का मिलन काल ‘संध्या समय’ माना जाता है, उस समय की हुई उपासना, दिन रात में अन्य किसी भी समय की अपेक्षा अधिक फलवती होती है। इसी प्रकार ग्रीष्म और शीत ऋतुओं की मिलन बेला 9-9 दिन के लिए आश्विन और चैत्र की नवरात्रि में आती हैं। यह समय साधना के लिए अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। वर्ष के अन्य महीनों में जो साधना बहुत दिन करने पर भी सफल नहीं होती वह इन नवरात्रियों के 9 दिनों में पूर्ण हो जाती है।

साधना प्रेमियों के लिए नवरात्रि का पुनीत पर्व सदा से ही महत्वपूर्ण रहा है। नैष्ठिक साधक इन दिनों अपनी साधना को तीव्र कर देते हैं। साधारण लोग जो साल के अन्य समयों में उपासना के लिए समय नहीं निकाल पाते, वे इन दिनों साँसारिक कामों से अवकाश लेकर साधना रत होते हैं, अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्य इस पर्व पर अपनी सुविधा के अनुरूप कुछ न कुछ समय नवरात्रि में विशेष गायत्री साधना के लिए निकालते हैं। इस बार भी सभी परिजनों को वैसा करना चाहिए।

आश्विन की नवरात्रि ता. 13 अक्टूबर सोमवार से आरम्भ होकर 9 दिन, 21 अक्टूबर मंगलवार तक चलेगी। इन 9 दिनों में निम्न प्रकार के अनुष्ठान आसानी से किये जा सकते हैं।

(1)प्रतिदिन 27 माला के हिसाब से 9 दिन में 24 हजार जप।

(2)प्रतिदिन 266 के हिसाब से 9 दिन में 2400 मन्त्र लेखन।

(3)प्रतिदिन 27 के हिसाब से 9 दिन में 240 गायत्री चालीसा पाठ।

इनमें से जो साधन जिस रुचि के अनुकूल हो वह उसे करना चाहिए। इनमें तीनों में से प्रत्येक साधना में लगभग 3 घण्टे लगते हैं। इतना समय 9 दिन तक, इतनी अधिक सत्परिणाम दायिनी साधना में लगा देना कुछ बहुत बड़ी बात नहीं है।

अन्तिम दिन 240 आहुतियों का हवन करना चाहिए। इस सामूहिक हवन में जितने अधिक व्यक्ति सम्मिलित किये जा सकें उत्तम है। जहाँ कई साधक हों वहाँ सब का सम्मिलित एक स्थान पर ही हवन होना चाहिए। गायत्री-परिवार की शाखाएं सामूहिक अनुष्ठान का प्रयत्न करें। 5 साधक जहाँ हों वहाँ सम्मिलित सवालक्ष का अनुष्ठान हो सकता है। 24 हजार न भी कर सकें तो 5 माला 10 माला के हिसाब से जो जितना करे उससे उतनी प्रतिज्ञा लेकर अधिक से अधिक धर्मप्रेमियों को सम्मिलित अनुष्ठान करने का प्रयत्न करना चाहिये। 1। लाख, 2॥ लाख, 3॥। लाख 5 लाख इसी प्रकार 1। लाख का क्रम बढ़ाते हुए चाहे जितनी संख्या के सम्मिलित अनुष्ठान हो सकते हैं। 1। लाख से कम का सामूहिक अनुष्ठान नहीं होता। हमारा विशेष आग्रह सम्मिलित अनुष्ठानों पर है। व्यक्तिगत साधना की अपेक्षा सामूहिक साधना का महत्व कई गुना अधिक होता है।

हवन भी सब का सम्मिलित किया जाय। जप, पाठ और लेखन के जो अनुष्ठान ऊपर लिखे हैं, उनकी पूर्णाहुति में 240 आहुतियों का हवन प्रत्येक अनुष्ठानकर्ता की ओर से होना चाहिए। हवन में अन्य गायत्री प्रेमियों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए। यदि वे हवन सामग्री, घी आदि का सहयोग दें तो वह भी अवश्य लेना चाहिए। प्रयत्न यह होना चाहिए कि पूरा न सही थोड़ा बहुत जप और हवन करने के लिए भी लोगों को उत्साहित किया जाय। धर्म कार्य में किसी प्रकार लोगों की अभिरुचि लगाना एक बड़ा पुण्य है, यह ध्यान में रखकर सामूहिक यज्ञानुष्ठानों में बहुत न सही थोड़ा भी भाग लेने वाले अधिक लोग सम्मिलित करने का प्रयत्न होना चाहिए।

(1) जप और (2) हवन के अतिरिक्त अनुष्ठान का तीसरा महत्वपूर्ण भाग ब्रह्मभोज है। ब्रह्मभोज का अर्थ है—’ज्ञान प्रसार’। इसके लिए सत्संग, प्रवचन, भाषण, विचार विनिमय, उपदेशों के शिक्षाप्रद संगीत भजन की व्यवस्था करनी चाहिए। सत्साहित्य वितरण करना चाहिए। 6 मूल्य के 240 गायत्री चालीसा वितरण किये जा सकते हैं। 6) मूल्य के मथुरा महायज्ञ के निमन्त्रण पत्र मंगाकर वितरण किये जा सकते हैं। इस सामूहिक अनुष्ठान की स्मृति में कम से कम एक नया गायत्री ज्ञान मन्दिर भी स्थापित किया जा सकता है।

जहाँ भोजन कराने का विचार हो वहाँ कुमारी कन्याओं को भोजन कराने की व्यवस्था करनी चाहिए। गायत्री के प्रतीक रूप में कन्या पूजन का महात्म्य है। नारी जाति के सच्चे गौरव को समझने, उसका सम्मान करने, उसे पवित्र एवं पूजनीय तत्व मानने की भावना जागृति करने की दृष्टि से भी कन्या-भोज उत्तम है। इसमें नारी जाति को अपनी प्रतिष्ठा और महत्ता स्वयं अनुभव करने के भी बीज मौजूद हैं।

जो साधक अपनी साधना की सूचना समय पर दे देंगे उनकी साधना में रही हुई त्रुटियों का संरक्षण दोष परिमार्जन यहाँ होता रहेगा।

नवरात्रि के लिए कोई वितरण साहित्य या हवन सामग्री आदि तपोभूमि से मँगानी हो वे 15 दिन पूर्व ही मँगा लें। क्योंकि कई बार डाक या रेल की गड़बड़ी में चीजें समय पर नहीं पहुँच पाती तो कार्यक्रम में असुविधा होती है।

इस बार ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान का वर्ष है। परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपने यहाँ छोटे बड़े सामूहिक अनुष्ठान का आयोजन इन नवरात्रियों में अपने यहाँ करना चाहिए। 24 हजार न सही पाँच दस माला जपने के लिए कई लोग तैयार होकर 1। लाख जप का एक अनुष्ठान बड़ी आसानी से कर सकते हैं। इसी प्रकार 1। हजार मन्त्र-लेखन, 1। हजार पाठ के भी अनुष्ठान हो सकते हैं। जहाँ जैसी सुविधा हो सामूहिक अनुष्ठान अवश्य किये जाएं और उन आयोजनों के समाचार ‘गायत्री परिवार पत्रिका’ में छपने भेजे जाएं।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118