सदस्यता की प्रतिज्ञाऐं:—

September 1956

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(1) मैं सद्बुद्धि की प्रतिनिधि गायत्री और त्यागमय प्रेम के प्रतिनिधि यज्ञ को अपना आध्यात्मिक माता-पिता स्वीकार करता हूँ। इनके प्रति सदा गम्भीर आस्था रखूँगा।

(2) प्रतिदिन कम से कम 108 गायत्री मंत्र अपने और उसके अर्थ का चिन्तन करने का व्रत लेता हूँ। बीच में कमी छूट होगी तो उसकी पूर्ति आगे कर लिया करूंगा। नवरात्रियों में सामूहिक जप तथा हवन का भी प्रयत्न करूंगा।

(3) भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने तथा अपने निकटवर्ती लोगों के जीवनों को ढालने का प्रयत्न करूंगा।

(4) अपने प्रभाव-क्षेत्र में सद्विचारों और सत्कर्मों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ न कुछ समय अवश्य लगाता रहूँगा।

(5) वर्ष में एक बार--गायत्री जयन्ती (ज्येष्ठ शुल्का 10) अवसर पर अपनी साल भर की साधना का विवरण तथा आत्मिक उन्नति-अवनति का परिचय अपनी मातृ-संस्था गायत्री तपोभूमि, मथुरा के लिए भेजता रहूँगा।

(1) मैं सद्बुद्धि की प्रतिनिधि गायत्री और त्यागमय प्रेम के प्रतिनिधि यज्ञ को अपना आध्यात्मिक माता-पिता स्वीकार करता हूँ। इनके प्रति सदा गम्भीर आस्था रखूँगा।

(2) प्रतिदिन कम से कम 108 गायत्री मंत्र अपने और उसके अर्थ का चिन्तन करने का व्रत लेता हूँ। बीच में कमी छूट होगी तो उसकी पूर्ति आगे कर लिया करूंगा। नवरात्रियों में सामूहिक जप तथा हवन का भी प्रयत्न करूंगा।

(3) भारतीय संस्कृति के अनुरूप अपने तथा अपने निकटवर्ती लोगों के जीवनों को ढालने का प्रयत्न करूंगा।

(4) अपने प्रभाव-क्षेत्र में सद्विचारों और सत्कर्मों को प्रोत्साहित करने के लिए कुछ न कुछ समय अवश्य लगाता रहूँगा।

(5) वर्ष में एक बार--गायत्री जयन्ती (ज्येष्ठ शुल्का 10) अवसर पर अपनी साल भर की साधना का विवरण तथा आत्मिक उन्नति-अवनति का परिचय अपनी मातृ-संस्था गायत्री तपोभूमि, मथुरा के लिए भेजता रहूँगा।


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