आप भी दीर्घजीवी हो सकते हैं!

September 1956

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(डाक्टर के. प्रसाद )

आयु वर्षों पर नहीं, शारीरिक योग्यता पर निर्भर है। बहुधा देखा जाता है कि एक मनुष्य युवावस्था में ही प्रौढ़ मालूम पड़ने लगता है और दूसरी तरफ ऐसे दीर्घायु वाले भी दृष्टिगोचर होते हैं जो बड़ी उम्र के होकर भी युवा से दिखाई पड़ते हैं।

वे सभी साधन जिनसे जीवनी शक्ति बढ़ती है युवावस्था को कायम रखने वाले होते हैं, और जो जीवन-शक्ति का ह्रास करते हैं वे जल्दी ही वृद्धावस्था लाने वाले होते हैं। दिन कार्य करने के लिये होता है और रात्रि सोने के लिए। यदि परिश्रम और विश्राम अनुपात से बराबर साथ-साथ चलते रहें तो आयु की हानि नहीं होती। कारण यह है कि जागृत अवस्था में हम जिस जीवन-शक्ति का व्यय करते हैं उसे निद्रावस्था में पुनः अर्जित करते हैं। इसलिए निद्रा (विश्राम) की हमें निताँत आवश्यकता है। परन्तु इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि जितना अधिक हम सोयेंगे उतनी ही हमारी जीवन-शक्ति बढ़ेगी। दिन भर काम करते-करते हमारा शरीर थककर जितनी शक्ति व्यय करता है उतनी शक्ति उसे पूरा आराम करके प्राप्त करनी चाहिये। साधारणतया नौजवान आदमी को आठ घण्टे सोना काफी है लेकिन जो अधिक परिश्रम करते हों उन्हें 8-9 घण्टे विश्राम लेना चाहिये। बच्चों का सोने का समय प्रायः 10 घण्टे होना चाहिये। उपवास करने वाले एवं फलाहारी व्यक्तियों के लिए केवल 6 घण्टे का विश्राम ही काफी है। निद्रा के इस नियम का अवश्य पालन करना चाहिये और जब भी नींद आ रही हो सो जाना चाहिये, चाहे दिन हो या रात और यदि नींद न आती हो तो निद्रा लाने वाली औषधियों का प्रयोग नहीं करना चाहिये। नींद को किसी उपाय द्वारा रोकना बड़ा हानिकारक है। यदि अनिवार्य आवश्यकता वश जागना ही पड़े तो हलका फल, दूध आहार करना चाहिये। ऐसा करने से निद्रा का दबाव अधिक न पड़ेगा। चाय,काफी आदि टानिक पीकर निद्रा का विरोध करना मूर्खता है। जब दिन में कभी थकान, आलस्य या निद्रा का झोंका मालूम पड़े और कार्यवश विश्राम के लिए अवकाश न मिले, ऐसे समय पर एक प्रकार की यौगिक क्रिया [जिसे शव आसन कहते हैं] द्वारा शरीर को पुनः सशक्त किया जा सकता है।

साहस, उत्साह, फुरती, शक्ति और काम शक्ति आदि जवानी के चिन्ह हैं और यदि हम में ये चिन्ह नहीं तो हम जवान होते हुए भी बूढ़े हैं। शरीर में सदा पुराने परमाणु नष्ट होते रहते हैं और उनके स्थान पर नये परमाणु बनते रहते हैं। अगर हम इन नये बनने वाले परमाणुओं को नष्ट होने से बचा सकें और उन्हें स्वस्थ रख सकें तो हम बुढ़ापा दूर रख सकते हैं। योग साधन के अंगों में बार बार उपवास और फलाहार की महिमा गायी है और इसी उपवास फलाहार, प्राणायाम द्वारा योगी हजारों वर्ष जीते थे।

बुढ़ापा क्या है? जिस हालत में शरीर अपने अन्दर इकट्ठे विजातीय द्रव्य को निकालने में असमर्थ हो जाता है उसी हालत को बुढ़ापा दीर्घ रोग कहते हैं और इसी सिद्धाँत के अनुसार अन्य रोगों की भाँति बुढ़ापा भी लगातार विधिपूर्वक कुछ मास के स्वाभाविक भोजन फल, शाक, मेवा, दूध, कंद द्वारा दूर किया जा सकता है। हजारों, लाखों ऋषि मुनि, योगी, तपस्वी बहुत बड़ी आयु वाले हो चुके हैं। सैकड़ों और हजारों वर्ष आयु के प्रमाण हमारे इतिहास में मिलते हैं। सौ वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्ति तो अब भी हमारे देश में वर्तमान है। इतनी बड़ी आयु वाले व्यक्तियों का जीवन रहस्य केवल उपवास और स्वाभाविक भोजन ही था। इसके विपरीत शहरों में रहकर नाना प्रकार के पकवान, मिठाइयाँ, नमकीन पदार्थ, रोटी दाल खाने वाले बहुत कम लोग ऐसे देखे गये हैं जिन्होंने दीर्घायु प्राप्त की हो।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118