(प्रो. रामचरण महेन्द्र, एम. ए.)
महात्मा एपिक्टेटस ने जीवन में प्रतिक्षण काम में आने वाली एक महत्त्वपूर्ण बात कही है :—
“यदि तुम चाहते हो कि, तुम्हारी स्त्री, तुम्हारे बच्चे, तुम्हारे मित्र कभी भी तुमसे पृथक न हों, तो तुम मूर्ख हो; क्योंकि तुम ऐसी चीज की चाह कर रहे हो जो तुम्हारे वश की नहीं है और निरन्तर ऐसी अनहोनी इच्छाओं में निमग्न रहने के कारण तुम्हें अतृप्ति का दुःख मिलेगा ही।
इसी प्रकार यदि तुम चाहते हो कि तुम्हारा नौकर या पत्नी, पुत्र, मातहत, या पड़ौसी आदि अन्य व्यक्ति। भूल न करें, तो तुम निरे मूर्ख हो। तुम ऐसी वस्तु चाह रहे हो, जो संभव नहीं है। तुम चाहते हो काला काला न रहे, और कुछ हो जाय। पर ऐसा हो नहीं सकता। अतः तुम दुःखी हो।”
इसी भाव को यदि हम और गहराई तथा व्यापकता से देखें तो विदित होता है कि हम जीवन में अनेक ऐसी बातें चाहते हैं जो संभव नहीं हैं। आप मानसिक, बौद्धिक या अध्यात्मिक दृष्टि से उच्च स्तर पर हैं। स्वच्छता पसन्द करते हैं अथवा आपकी रुचि कलात्मक है। अन्य ऐसे व्यक्तियों या वातावरण आपको ऐसा प्राप्त होता है कि वे व्यक्ति या वह वातावरण आपकी मानसिक ऊँचाई तक उठ कर नहीं आता। बस, आप दुःखी और संतप्त हो उठते हैं।
आप घर में सफाई चाहते हैं, पर वह आपको नहीं मिलती। आप परिवार के सब सदस्यों को सुशिक्षित चाहते हैं किन्तु आपके पूर्ण ध्यान देने पर भी वे पढ़ते-लिखते नहीं हैं। आप घर के आस पास के वातावरण को स्वच्छ चाहते हैं, पर पड़ौसी कूड़ा-करकट बाहर फेंकते हैं, शोर गुल मचाते हैं, दिनभर लड़ते-झगड़ते हैं। गालियाँ भी दे बैठते हैं। बाजार में आप खरीदने जाते हैं तो दुकानदार चुपचाप आपकी दृष्टि बचते ही खराब वस्तु सड़ी-गली तरकारी या गन्दी वस्तु दे देता है। आप अपने अफसर या सातहत से जैसा मधुर एवं शिष्ट व्यवहार चाहते हैं, वैसा आपको प्रायः प्राप्त नहीं होता। ऐसी अवस्था में आप मन ही मन कुढ़ते हैं, मानसिक संतुलन खो बैठते हैं, कभी आवेश में भर जाते हैं। परिस्थिति और वातावरण को कोसते हैं। लेकिन आप भूल कर रहे हैं। यह सब तथा अन्य इसी प्रकार की अनेक साँसारिक बातें, आपके वश की बातें नहीं हैं। दूसरों के मनोभाव, इच्छाएँ, अच्छी बुरी आदतें, रहने और सोचने के ढंग इनमें से एक भी बात आपके वश की नहीं है। इन्हें लेकर दुःखी संतप्त रहना, या कुढ़ना मन को भारी रखना, तुम्हारी मूर्खता और नासमझी ही है।
यदि तुम चाहते हो कि जीवन में तुम्हें असफलता, मजबूरी या कठिनाई न मिले तो यह असम्भव है। तुम्हारे वश की बात नहीं है। जीवन मृदुल भावनाओं की मदुवाटिका है, तो कंटक और शूल, कठोर चट्टानों, पत्थरों की शुष्कता और कठोरताओं से भी भरा है। सभी कुछ आपको चखना है, मधुरता भी, तो कड़वाहट भी।
जिस दुनिया को आप बदल नहीं सकते, उससे झगड़ा करने से क्या लाभ? जिस परिस्थिति से आप बच नहीं सकते, उसे परिवर्तित करने की इच्छा से क्या फायदा? जिन व्यक्तियों का कड़ा, कलहपूर्ण या झगड़ालू स्वभाव है, उनसे अड़ने और क्रोध करने से क्या लाभ? असफलता, हानि, और भूल पर व्यर्थ सोचने से क्या लाभ? ये सभी आपके मनोबल और मानसिक संतुलन को नष्ट करने वाले हैं।
तुम्हारे वश की बात क्या है? तुम्हारा स्वभाव, तुम्हारी अच्छी आदतें, तुम्हारा मानसिक संतुलन, मनःशांति—ऐसी दिव्य बातें हैं, जो तुम्हारे वश की बातें हैं।
इनका सम्बन्ध स्वयं तुम और तुम्हारे निजी व्यक्तित्व से है। क्रमशः अभ्यास द्वारा तुम इनमें से प्रत्येक को प्राप्त कर सकते हो। इनके द्वारा तुम्हारा जीवन सुख और शान्ति से परिपूर्ण हो सकता है।
अतएव यदि संसार में सुख और शान्ति चाहते हो तो जो तुम्हारे वश की बातें हैं, उन्हीं को विकसित करो और जो तुम्हारे वश की बातें नहीं हैं, उन पर व्यर्थ चिन्तन या पश्चाताप छोड़ दो। स्वयं अपने मस्तिष्क के स्वामी बनो। संसार और व्यक्तियों को अपनी राह जाने दो।