भारत की प्राचीन-सुसंस्कृति! तेरी सदा विजय हो।
धर्म भाव भूतल में छाये, कर्म भाव जनता में आये, निष्कामो जीवन फल पाये, ईश्वर में विश्वास अटल, मन स्वस्थ, नितान्त अभय हो।
सत्य सनातन नित्य प्रचारें, शुभ कृतियों में तथ्य विचारें, निज मानस के दोष सुधारें, वेदों का स्वाध्याय निरन्तर, पाप सभी का क्षय हो।
ऊँच नीच के भाव विसारें, कलुष कामना सकल निवारें, समता भाव समाज प्रसारें, सब का हित हो ध्येय हमारा तेरी सदा विजय हो॥ 3 ॥
सदाचार की शिक्षा पायें, ‘उच्छ-वृत्ति’ की भिक्षा भायें, यज्ञ शेष सब मिलकर खायें, पूर्ण काम हों, पिये सुधा सम प्रति गृह गोरस पथ हो।
भारत की प्राचीन सुसंस्कृति! तेरी सदा विजय हो॥