स्नान कैसे करना चाहिये

February 1956

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(श्री गंगाप्रसाद गौड़ “नाहर”)

साधारण स्नान—यह स्नान हम-आज रोज करते हैं। यदि हो सके तो यह स्नान सुबह-शाम, दोनों वक्त होना चाहिये। यदि जाड़ों में नहीं तो गर्मियों में ऐसा करने में आपत्ति नहीं होनी चाहिये। इस स्नान का समय, सबेरे, सूर्योदय से प्रथम तथा शाम को, सूर्यास्त के ठीक बाद है। स्नान का पानी ताजा एवं निर्मल होना चाहिये। यह स्नान यदि किसी नदी या तालाब में किया जाय तो शरीर पर नाम मात्र का वस्त्र रख कर और यदि घर के किसी एकाँत स्नान में किया जाय तो बिलकुल निवस्त्र होकर। ऐसा करने से, इस स्नान का पूरा-पूरा लाभ उठाया जा सकता है। स्नान आरम्भ करने के प्रथम, यदि शरीर के अंग-प्रत्यंग की सूखी मालिश कर ली जाय तो अधिक लाभ होगा। तेल की मालिश करके भी यह स्नान किया जा सकता है, पर स्नानोपराँत शरीर पर लगे उस तेल को किसी खुरदुरे तौलिये से खूब रगड़-रगड़ कर पोंछ लेना अत्यन्त आवश्यक है। इस स्नान में विपुल जल का व्यवहार होना चाहिये। लोटे-दो-लोटे जल से यह स्नान नहीं होना चाहिये। स्नान करते समय किसी खुरदुरे वस्त्र या केवल हाथ से ही प्रत्येक अंग, विशेष कर गुह्यांगों को मलकर, उस पर जमे मैल को छुड़ाते जाना भी कम आवश्यक नहीं है। स्नान के समय साबुन का व्यवहार ठीक नहीं। स्नान के समय सर्व प्रथम सिर को धोना चाहिये। तत्पश्चात् पेट, पेड़ू, तथा पैर। ऐसा करने से शरीर की आवश्यक उष्णता सिर से होती हुई पैरों की तरफ से निकल जाती है, और शरीर तरोताजा हो जाता है। स्नान पैरों की तरफ से आरम्भ करने से आँखों पर गर्मी चढ़ जाने का भय रहता है। स्नान कर चुकने पर शरीर को भली-भाँति पोंछकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिये।

शीतल-जल स्नान—इस को अंग्रेजी में The cold plunge bath (कोल्ड पलञ्ज बाथ) कहते हैं। कोमल और शीतल जल का स्नान मनुष्य देह के लिये ईश्वर की एक बड़ी देन है। हृष्ट-पुष्ट व्यक्तियों के लिये यह स्नान, सब स्नानों से उत्तम है। यह स्नान स्वास्थ्यवर्द्धक तो है ही, साथ-ही-साथ, सौंदर्यवर्द्धक भी है। शीतकाल में, बंद कमरों में, गर्म पानी से नहाने वाले स्त्री-पुरुष, अधिक नहीं, केवल एक पखवारा ही किसी खुले जलाशय के शीतल जल में स्नान कर देखें, उन को यह अनुभव कर महान आश्चर्य होगा कि उन के स्वास्थ्य और सौंदर्य में पहले से कहीं अधिक वृद्धि हो गई है। हमारे शास्त्रों में जो शीतकाल में, समय-समय पर गंगा जी आदि पवित्र सरिताओं के शीतल जल में स्नान करने की व्यवस्था है, वह इस प्रयोजन से दी गई है ताकि इस स्नान के असाधारण गुणों से एक भी व्यक्ति वञ्चित न रह जाए और सभी इसे अपने धर्म का एक आवश्यक अंग समझ कर करें।

शीत-जल में नियमित रूप से स्नान करने वाले मनुष्य, काफी बड़ी आयु पाते हैं। और मरते दम तक शक्तिशाली, तेजस्वी, एवं स्वस्थ बने रहते हैं। ठंडे जल के स्नान से शरीर की त्वचा को शक्ति मिलती है और उसके काम में सहूलियत पैदा हो जाती है, जिससे बिगड़ा हुआ स्वास्थ्य भी आसानी से सुधर जाता है। इस स्नान से शरीर की जीवन-शक्ति बढ़ती है। मोटी बात यह समझ लेनी चाहिये कि स्नान के लिये जल जितना ही ठंडा होगा, शरीर को वह उतना ही अधिक लाभ पहुँचायेगा।

शीत-जल से स्नान करने का ढंग वही है जो साधारण-स्नान करने का अर्थात् स्नान से पहले सारे शरीर की हल्की मालिश कर लेनी चाहिये या थोड़ा हल्का व्यायाम ही कर लेना चाहिये जिससे रक्त की गति थोड़ी तीव्र हो जाय। उसके बाद स्नान सिर की ओर से शुरू कर देना चाहिये। साधारण तौर पर इस स्नान में 5 से 15 मिनट का समय लगाना चाहिये। यदि इस स्नान के करने का कहीं बाहर जलाशय आदि में सुविधा न हो तो घर में ही किसी जगह स्नान-कुण्ड बना लेना चाहिये। यह भी न हो सके तो मामूली नहाने के टब में ही ठंडा जल भरवा कर स्नान कर लेना चाहिये।

उष्णजल-स्नान—यह स्नान जाड़ों में और कभी-कभी करना चाहिये। इस स्नान को नियमित रूप से रोज़-रोज़ करना ठीक नहीं। दिनभर की थकावट के बाद शाम को सोने से पहले गरम पानी से स्नान कर लेना अधिक लाभप्रद होता है जिन लोगों की खाल सूखी-सूखी सी रहती हो, पसीना ठीक से न निकलता हो तथा उस पर मैल अधिक जम गया हो, ऐसे लोगों के लिये गरम जल का स्नान विशेष रूप से लाभदायक है।

स्नान का तरीका यह है। स्नान-कुण्ड या टब गर्म पानी से भर लें। पानी अधिक गरम न होना चाहिये। उसकी गर्मी 98 से 100 डिग्री के अन्दर होनी चाहिये। अब सिर पर ठंडे पानी से भीगा तौलिया लपेट लें और कुण्ड या टब में प्रवेश कर अंग-प्रत्यंग को खुरदरे तौलिये या स्पञ्चादि से रगड़-रगड़ कर धोएं और स्नानोपरान्त बाहर निकल कर समूचे शरीर को तुरन्त ठंडे जल से धो डालें और बदन पोंछ कर स्वच्छ कपड़े पहन लें। इस स्नान में यही एक बात याद रखने की है कि स्नान करते समय गरम जल गले के ऊपर के अंगों को न छूने पावे अन्यथा मस्तिष्क में रक्त अधिक तेजी से दौड़ जाने के कारण हानि हो सकती है। सिर से गरम पानी से स्नान करने से दृष्टि मंद हो जाती है, तथा बाल गिरने और सफेद होने लगते हैं। स्वस्थावस्था में गरम जल का स्नान न करना ही उत्तम है। त्वचा पर गरम जल का बार बार प्रयोग, त्वचा के लिये हानिप्रद है। गरम जल में त्वचा की शक्ति क्षीण हो जाती है। इससे शरीर की जीवनी शक्ति भी मंद पड़ जाती है।

उष्णजल-स्नान जब कभी भी किया जाए तो 5-7 मिनट से अधिक समय उसमें न लगाया जाए, नहीं तो स्नान से लाभ के बदले हानि ही अधिक होगी।

गुनगुने जल से स्नान—गुनगुने पानी से मतलब, शरीर के तापमान के बराबर ताप वाले पानी से है। यह स्नान भी उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार उष्ण जल-स्नान। अन्तर केवल यही होता है कि इसमें स्नान करने के बाद ठंडे पानी से बदन धोने की आवश्यकता नहीं होती। यह स्नान खासकर शरीर की थकावट दूर करने के लिये किया जाता है।


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