पूर्णाहुति की तैयारियाँ

February 1956

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विशद् गायत्री महायज्ञ अपनी सुव्यवस्थित योजना के अनुसार चल रहा है। आसुरी शक्तियों का आक्रमण बराबर होता रहता है। अनेक प्रकार के विघ्न-विक्षेप इसलिए उपस्थित होते रहते हैं कि इतने बड़े अनुष्ठान के कारण जो दैवी शक्ति उत्पन्न होने वाली है, वह न हो सके। आसुरी माया प्रबल है, वह अनेक रूपों में प्रकट होती हैं। इससे विश्वामित्रजी को भी घबरा कर दूसरों के पास सहायता के लिए दौड़ना पड़ा था, फिर हमारा तो अस्तित्व ही क्या है। प्रेमी परिजनों के प्रयत्न से संरक्षण व्यवस्था बहुत कुछ हो गई है, पर अभी वह बहुत दुर्बल है। पूर्णाहुति के विशालकाय आयोजन के लिए सुरक्षा व्यवस्था की अधिक आवश्यकता है, अन्यथा आसुरी प्रकोपों से इसमें कोई भारी विघ्न आ सकता है। कुछ दिन पूर्व दिल्ली में एक शत कुण्डी-कोटि होम हुआ था, उसमें अग्निकाण्ड के द्वारा लाखों रुपये की हानि हुई थी। ऐसे कोई उपद्रव यहाँ भी खड़े न हो जायं, उसके लिए सुरक्षा व्यवस्था की और अधिक मजबूती की आवश्यकता है। जो सज्जन संरक्षण की एक-एक माला जपते हैं, वे दो-दो जपना आरम्भ कर दें तथा प्रत्येक संरक्षक को चाहिए कि वह एक-एक दो-दो और नये संरक्षक बनादे। यदि दूने संरक्षक हो जाये तो अगले तीन महीनों में प्रतिदिन 24 लक्ष का एक महापुरश्चरण होता चले और पूर्णाहुति की सुरक्षा पूर्ण निश्चित हो जावे। प्रत्येक भागीदार तथा संरक्षक इस दिशा में अधिक से अधिक ध्यान देने की हमारी करबद्ध प्रार्थना है। आपकी थोड़ी प्रयत्नशीलता से यज्ञ सफल हो सकता है और इस दिशा में लापरवाही एवं उपेक्षा बरतने से इतना सब ‘करा-धरा’ बर्बाद हो सकता है। इन तीन महीनों में संरक्षकों की संख्या बढ़ाई जानी चाहिए। हममें से हर व्यक्ति इसके लिए प्रयत्न करे।

तपोभूमि में प्रातःकाल नियमित रूप से गायत्री यज्ञ होता है। सायंकाल इस मास ऋग्वेद यज्ञ चल रहा है। अगले मास से अथर्व वेद यज्ञ आरम्भ हो जायगा। गत मास यजुर्वेद यज्ञ तो पूरा हो ही चुका है।

पूर्णाहुति की तैयारियाँ आरम्भ हो गई हैं। हवन सामग्री, घी, खाद्य सामग्री समिधाएं आदि रखने के लिए स्थान न था। इसके लिए पाँच कमरे तथा तीन छोटी कोठरियाँ बननी आरम्भ हो गई हैं। तीन नये जीने छतों पर जाने के लिए निकाले जा रहे हैं। यह एक महीने में बनकर तैयार हो जावेंगे। यह स्थान अभी गोदाम का और पीछे साधकों को ठहरने के काम में आवेगा। हवन कुण्डों के लिये मन्दिर के तीनों तरफ जो खाली जमीन थी, उसी का उपयोग किया जा रहा है। डेढ़ फुट ऊँची मिट्टी ढ़लवाकर तथा ईंटों से चिनवाकर उस सब जमीन पर पक्का प्लेटफार्म बनाया जा रहा है। इसी पर 108 कुण्डों की इस हिसाब से रचना की जा रही है कि प्रत्येक कुण्ड पर आठ-आठ व्यक्ति बैठ सकें। बिजली लगाने की सरकारी स्वीकृति आ गई है। अब फिटिंग चालू हो गया है। सभी कक्षों में बिजली लगाई जा रही है। पूर्णाहुति के समय शोभायमान विद्युद्दीप जलाने तथा लाउडस्पीकरों का उपयोग करने में इस बिजली से बड़ी सहायता मिलेगी। पुस्तकालय के लिए आठ नई अलमारियाँ बनवाई गई हैं। मंत्र-लेखन की कापियों को सुरक्षित रखने में स्थान की कमी पड़ गई थी, सो उसी कमरे में ऊपर टांड़ लगाकर शीशेदार अलमारी लगादी गई है। अब प्रत्येक कापी की पूर्ण सुरक्षा का प्रबंध बन गया।

पूर्णाहुति के दिनों तपोभूमि में एक टेलीफोन रहना तो निश्चित हो गया है, पर प्रयत्न यह किया जा रहा है कि चार अलग-अलग क्षेत्रों में जहाँ भोजन आदि के अलग-अलग व्यवस्था केन्द्र रहेंगे, उन सभी में टेलीफोन रहें ताकि एक केन्द्र दूसरे केन्द्र का आपस में विचार विनिमय करना सरल हो जाय। वृन्दावन के लिए उन दिनों स्पेशल ट्रेनें छोड़ने के लिए रेलवे अधिकारियों से पत्र-व्यवहार का अभी कोई सन्तोषजनक उत्तर नहीं आया है, इसलिए एक डेपूटेशन बड़े अधिकारियों से मिलने के लिए भेजा जा रहा है। सरकारी बसें तथा प्राइवेट लारियाँ अधिक से अधिक संख्या में उन दिनों गोकुल, महावन, गोवर्धन, नन्दगाँव, बरसाना आदि की यात्रा के लिए मिल सकें, इसके लिए दौड़-धूप हो रही है।

पहले यह विचार था कि ठहरने के लिए सामूहिक बड़े शामयाने खड़े किये जायं और थोड़ी रावटियाँ-तम्बू रहें। अब यह विचार बदल दिया है। 6 से लेकर 10 आदमियों तक को ठहरने वाली छोटी-बड़ी रावटियाँ ही लगाई जावेगी। खर्च अवश्य कुछ अधिक पड़ेगा, पर सुविधा अच्छी रहेगी बीस-पच्चीस आदमियों को ठहराने वाले तम्बू भी न रखने का विचार है। रोशनी के लिए बिजली और गैसबत्ती दोनों का मुकाबला किया जा रहा है, जिसमें किफायत और सुविधा रहेगी, उसे रखा जायगा। जमुना-किनारे गड्ढेदार चटाई और टाट के पर्दे लगाकर लकड़ी के पाखाने खड़े करने का निश्चय किया गया है। पानी के लिए म्युनिसपैलिटी से पानी की मोटरें माँगी गई हैं, यदि वह प्रबन्ध न हुआ तो कुएं में मोटर पम्प बिठाकर उससे पानी सप्लाई करने की व्यवस्था करनी पड़ेगी। यों यमुना भी तपोभूमि से आधी फर्लांग ही है।

अनेक व्यक्तियों के यह सुझाव हैं कि इस पूर्णाहुति में बड़े-बड़े राजनैतिक नेताओं को भी बुलाया जाय, पर चूँकि यह कोई राजनैतिक सम्मेलन नहीं है, इसलिए ऊंचे-ऊंचे आध्यात्मिक साधकों एवं तपस्वियों की ही प्रधानता रखने की बात अधिक उपयुक्त जँचती है। पाठक अपने विचार हमें लिखें। यदि बड़े नेताओं को बुलाने की बात हो, तो वह सब प्रबन्ध आसानी से हो सकता है। इस अवसर पर एक सर्व सम्प्रदाय-सम्मेलन करने का भी विचार है, जिसमें हिन्दू-धर्म के अंतर्गत सभी सम्प्रदायों के प्रतिनिधि इकट्ठे होकर “अनेकता में एकता” का प्रतिपादन कर सकें ।

पूर्णाहुति के समय भारतवर्ष के अधिकाँश गायत्री उपासकों के आने की संभावना है। ऐसा अवसर फिर कभी शायद ही आवे, इसलिए इन तीर्थ स्वरूप गायत्री-उपासकों की स्मृति को सदैव ताजा रखने के लिए एक फिल्म-चित्रपट बनाया जायगा, यह कार्य श्रीडूँगर शी भाई के सुपुर्द कर दिया गया है। वे सभी दृश्यों और सभी व्यक्तियों की रंगीन फिल्म लेने के लिए अपना फिल्म कैमरा तथा आवश्यक सामान तैयार कर रहे हैं। जो लोग इस पुनीत अवसर पर मथुरा न आ सकेंगे। उनके लिए भी इस फिल्म द्वारा पूर्णाहुति के सारे दृश्य देख सकना सरल हो सकेगा।

यज्ञीय वनस्पतियों-हवन सामग्रियों को लगाने के लिए एक बड़ा खेत करने का विचार है, पर अभी वह व्यवस्था बन नहीं पा रही है इसलिए फिलहाल लगभग पाँच सौ गमलों में दूर-दूर से वे जड़ी बूटियाँ मंगाकर लगाई जा रही हैं। इनकी पौध बढ़ती रहेगी जो अवसर आने पर खेतों में लगाई जा सकेंगी।


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