यह काम आपको सौंपते हैं।

February 1956

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विशद् गायत्री महायज्ञ की विशाल पूर्णाहुति के लिए तपोभूमि में व्यस्त कार्यक्रम चल रहा है। कमरे बन रहे हैं, कुण्ड तैयार किये जा रहे हैं, बिजली भी फिटिंग हो रही है, हवन सामग्रियाँ, भोजन बनाने, खाद्य पदार्थ एकत्रित करने आदि की व्यवस्था की जा रही है। तम्बू, रोशनी, पानी, स्पेशल ट्रेनें, बसें, टेलीफोन, पूर्णाहुति का फिल्म चित्र, विद्वानों को निमंत्रण, मुक्ति-सेना के आत्म-त्यागी, आत्म-दानी और व्रतधारी सैनिकों का संगठन, नरमेध की तैयारी, औषधि पौधों की नर्सरी, दैनिक यज्ञ व्यवस्था, सर्व सांप्रदायिक सम्मेलन आदि नाना प्रकार के कार्यक्रमों की हलचलें यहाँ चल रही हैं। कार्य बहुत भारी है, समय थोड़ा है, इसलिए यह सब दौड़-धूप आवश्यक भी है, अन्यथा समय पर सब कार्य कैसे पूरे हो सकेंगे? खर्च बहुत और धन याचना न करने की अपनी परम्परा, इन दोनों का समन्वय करना भी उलझन भरा है। तपोभूमि इन गुत्थियों को सुलझाने में लगी हुई हैं। कार्यभार तो निश्चित रूप से अपनी सामर्थ्य से बहुत भारी है, पर चिन्ता और परेशानी की कोई बात नहीं है। माता की शक्ति और सामर्थ्य से पर्वत भी राई हो सकता है। हमें तो अपने कर्तव्यों का ध्यान रखना ही पर्याप्त है।

हम चाहते हैं कि अखण्ड-ज्योति और गायत्री परिवार के प्रत्येक सदस्य को अपना कुछ काम बाँट दें और उनके जिम्मे भी कुछ जिम्मेदारी सौंपे। हमारा एक भी परिजन ऐसा न होना चाहिए जो इस आड़े वक्त में ‘फुरसत न होने’ आदि का बहाना करके हाथ बँटाने से जी चुराये। इस परीक्षा के समय में हममें से हर एक को कुछ करने के लिए अपनी शक्ति और भावना का एक अंश देना ही चाहिए।

इस मास एक कार्य अपने सभी परिजनों को सौंप रहे हैं। वह यह कि अपने समीपवर्ती गायत्री उपासकों तथा धर्म-प्रेमियों तक पूर्णाहुति का सन्देश तथा आमंत्रण पहुंचाने में हमारे व्यक्तिगत प्रतिनिधि का कार्य करने के लिए कुछ समय निकालें। सभी गायत्री-प्रेमियों तक निमन्त्रण पहुँचाने लायक डाक व्यय, क्लर्क, लिफाफे आदि की व्यवस्था हमारे पास नहीं है, फिर परिचय भी अपना थोड़ा ही है, प्राचीन काल में जब डाकखाने नहीं थे, तब अपने प्रतिनिधि-नाई, पुरोहित आदि के द्वारा ही निमन्त्रण भेजे जाते थे। इस यज्ञ में भी वही करने का विचार है। पाण्डवों के यज्ञ में श्री कृष्णजी को यह कार्य सौंपा गया था कि वे आगन्तुकों के चरण धोया करें, हम अपने स्वजनों को इस मास सन्देश वाहक बनने की ड्यूटी सौंप रहे हैं। यह कार्य आप सभी को करना चाहिए। अपने समीपवर्ती क्षेत्र में जितने गायत्री उपासक एवं धर्म प्रेमी हों, उनकी संख्या गिन लें। फिर उतने ही निमन्त्रण-पत्र तपोभूमि से मँगालें और उन्हें स्वयं जाकर या डाक के द्वारा उन सत्पुरुषों तक पहुँचाने में हमारे प्रतिनिधि का काम करें। यह कार्य देखने में हलका है, पर हमारी दृष्टि में इसका भारी मूल्य है।

स्वयं अपनी उपासना में वृद्धि, दुर्बल संरक्षण बढ़ाने के लिए अधिक गायत्री उपासकों की वृद्धि, मन्त्र-लेखन, गायत्री पुस्तकालयों की स्थापना, आत्मदान की तैयारी, कुछ दिन पहले मथुरा आने का प्रयत्न,आर्थिक सहयोग, अखण्ड-ज्योति के सदस्य बढ़ाना, आवश्यक परामर्श देते रहना, आदि अनेक कार्य ऐसे हैं, जिनमें हाथ बँटाने के लिए कदम बढ़ाया जा सकता है, पर आज जो काम ‘ड्यूटी’ के रूप में सौंप रहे हैं, वह सन्देशवाहक का कार्य है। इस मास हम अपने प्रत्येक प्रेमी के नाम पर ध्यान रखेंगे कि किसने हाथ बँटाया, कौन चुप बैठा रहा, हमें आप सभी से इस सम्बन्ध में सहयोग की आशा है।


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