सच्चे और ईमानदार रहिए।

August 1950

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(श्री राजा महेन्द्रप्रताप)

बेईमानी मत करो। ईमानदारी सहित अपनी शुद्धि करो। सच्चे हिन्दू बनो, सच्चे मुसलमान बनो जो बनो सच्चे बनो। आज हमारा सब से अधिक नुकसान झूँठ से हो रहा है। धार्मिक कहानियाँ भी ऐसी प्रचलित हैं जो बेईमानी सिखाती हैं। कैसे हमने इन कथाओं को सुना, सुनवाया और प्रचलित होने दिया? सब धर्मों दीनों में ऐसी बातें भरी पड़ी हैं कि अमुक देवता ने झूँठ से काम निकाला अथवा धोखा दिया। श्रीकृष्ण तक की ऐसी कहानियाँ हैं कि उन्होंने अपनी माँ से झूँठ बोला, चोरी की या चालाकी में अपने किसी चेले को सिखाया कि इस प्रकार शत्रु को मार डालो, चीर कर दो कर दो।

मनुष्य जो दिन प्रति दिन सुनता है उसका उस पर बहुत असर पड़ता है। हम वह ही बनते हैं जो हमको गढ़ कर बनाया जाता है। हमारी शिक्षा त्रुटिपूर्ण है। और इसी कारण जन साधारण में बेईमानी अधिक है। देश क्यों गिरा? क्योंकि बेईमानी थी। देश क्यों शीघ्र उन्नति नहीं करता? क्योंकि बेईमानी है! यदि हमारे देशवासी ईमानदारी को ही धर्म समझें तो धर्म और समाज की उन्नति हो।

समाज की फिर से सुरचना करनी है। समाज को इस प्रकार रचना होगा कि झूँठ अथवा बेईमानी की आवश्यकता न रहे। मनुष्य बहुधा झूँठ बोलता है, अनुचित लाभ उठाने के लिये। मनुष्य सदा ही लाभ उठाना चाहता है क्योंकि उसे कल पर भरोसा नहीं। प्रत्येक व्यक्ति को भय रहता है कल का, काल का! समय न जाने कल क्या दिखलावे? नौकरी रहती है या नहीं? व्यापार में हानि न हो जाए? कोई लड़ाई न छिड़ जाए? चोरी का भय? डाके का डर? मनुष्य पर विश्वास नहीं है। और इसलिये मनुष्य झूँठ बोल कर, छल कपट से रुपये कमाना चाहता है।

हमको ऐसा समाज बनाना चाहिए कि उसमें प्रत्येक व्यक्ति को जन्म से मरण तक खाना पीना, पहनना, मकान और समस्त जीवन की आवश्यक वस्तुयें अवश्य ही मिल सकें, सन्देह न रहे, फिक्र न रहे। ऐसे समाज में मनुष्य, बिना बात, क्यों झूँठ बोलेगा।

सुसंगठित कुटुम्ब में, जहाँ माँ-बाप पुत्रादि से प्रेम करते हैं, जहाँ भाई बहन आपस में प्रेम रखते हैं, जहाँ छोटे बड़ों का आदर करते हैं और सेवा करते हैं, झूँठ नहीं बोला जाता। यदि ऐसे कुटुम्ब में कभी कोई झूँठ बोलता है तो हँसी के लिये। हम को ऐसे ही कुटुम्ब ग्राम-ग्राम और नगर-नगर में स्थापित करने हैं। मत कहिये कि यह असम्भव है। मेरा भाई यदि बीमार पड़ा है तो मैं तो उसका इलाज करूंगा ही, मैं यह नहीं सुनना चाहूँगा कि वह स्वस्थ नहीं होगा। समाज रोगी है। देश रोगी है। समाज को स्वस्थ बनाना है। आप सन्देह की बातें मत कहिये। सन्देह एक बड़ा शत्रु है।

मत कहिये कि ऐसा कभी नहीं हुआ। मत कहिये कि जो पहले कभी नहीं हुआ आज भी नहीं हो सकता। हम समस्त मनुष्य जाति का एक कुटुम्ब बनायेंगे। आज यह सम्भव है। आज हवाई जहाजों ने और रेडियो ने समस्त पृथ्वी को मानो एक छोटा सा देश बना दिया है। हमारी मनुष्य जाति अभी तो युवा अवस्था को पहुँची है। कम से कम यह सभ्यता जब से उत्पन्न हुई है आज ही इस दशा को प्राप्त कर सकी है जब कि मनुष्य आकाश में उड़ता है। आज यह भी सम्भव है कि हम मनुष्य जाति का एक कुटुम्ब बनावें।

वह पागलपन ही तो था। हिन्दू, सिख और मुसलमान नामों पर हमारे देशवासी पागल हुए। बिना बात रक्तपात किया। बहु काल की उलटी शिक्षा का यह कुफल था। लोगों ने सिखाया था कि धर्म के हेतु बेईमानी करो और झूँठ बोलो , झूठ बोला और बेईमानी की। भाई का भाई से विश्वास उठ गया। फिर यह ही हुआ जो होना था!

इसलिए मैं कहता हूँ बेईमानी मत करो। मत करो किसी भी नाम पर, किसी भी विचार से। यह बुद्धिमानी नहीं कि आप धोखा देवें। कुछ मन हो, कुछ कहें, कुछ दूसरों को जतावें। यह बेईमानी है। मैं फिर कहता हूँ कि देखो, भला चाहते हो तो बेईमानी मत करो!


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