बाँट खाय हरि को भजे, तजै सकल अभिमान।
नारायण ता पुरुष को, उभय लोक कल्यान॥
बहुत गई थोरी रही, नारायण अब चेत।
काल चिरैया चुग रही निश दिन आयू खेत॥
तेरे भावें कुछ करो, भलो बुरो संसार।
नारायण तू बैठि के, अपनो भवन बुहार॥
नारायण मैं सच्च कहुँ, भुज उठाय के आज।
जो जिय बने गरीब तू, मिले गरीब निवाज॥
विद्या पढ़ करते फिरै, औरन कौ अपमान।
नारायण विद्या नहीं, याहि अविद्या जान॥