एक भरोसो एक बल, एक आश विश्वास।
याति सलिल हरिनाम है, चातक तुलसी दास॥
तुलसी सोई चतुर है, संत-चरण लवलीन।
परमन परधन हरन को, वेश्या बड़ी प्रवीन॥
पानी बाढ़ो नाव में, घर में बाढ़ा दाम।
दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो काम॥
पढ़ पढ़ के सब जग मुवा, पण्डित भया न कोय।
ढाई अक्षर प्रेम के, पढ़े सो पंण्डित होय॥
क्या मुख ले हंस बोलिये, तुलसी दीजे रोय।
जन्म अमोलक आपना, चले अकारथ खोय॥
नारायण हरि भजन में, तू जनि देर लगाय।
क्या जाने या देर में, श्वास रहै कि जाय॥
अपनो साखी आप तू, निज मन माहि विचार।
नारायण जो खोट है, ताको तुरत निकार॥
नारायण तू भजन कर, कहा करेंगे फूर।
अस्तुति निन्दा जगत की, दोऊन के शिर धूर॥
दो बातन को भूल मत, जो चाहत कल्यान।
नारायन एक तौत को, दूजे श्री भगवान॥
मगन रहे नित भजन में, चलत न चाल कुचाल।
नारायण ते जानिये, यह लालन के लाल॥
नारायण हरि लगन में, ये पाँचों न सुहात।
विषय भोग निद्रा हँसी, जगत-प्रीत बहु बात॥
जीवन माटी हो रही, साँई सन्मुख होय।
दाद् पहिले मर रहो, पीछे मरे सब कोय॥
दादू नीका नाम है, सो तू हिरदय राख।
पाखँड सारे दूर कर, सुन साधुन की साख॥
जो तोकौं काँटा चुबे, ताको वोहि तू फूल।
तोकों फूल के फूल हैं, वाही को तिरशूल॥