प्राणायाम क्यों करें?

August 1950

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(श्री ॐ स्वामी शिवानन्द सरस्वती)

‘प्राण’ एक ऐसी शक्ति है जो सर्वविदित है। वास्तविक शक्ति यही है। यह सर्वव्यापी है। इसकी गति चर या अचर होती है। यह प्रत्येक प्रकार के जीव, वृक्ष आदि में रहता है। नेत्रों की ज्योति के रूप में प्राण ही प्रकाशमान होता रहता है। प्राण की ही शक्ति से कान सुनते हैं, आँखें देखती हैं, चर्म स्पर्श का अनुभव करता है, जिह्वा स्वाद लेती है, नाक गन्ध का अनुभव करती है, तथा बुद्धि और मस्तिष्क अपना-अपना कार्य करते हैं। एक नवयुवती की मुस्कान, संगीत की मधुरता, कुशल वक्ता के वाक्यों का ओज तथा अपनी प्रेयसी के वचनों में आकर्षण-ये सभी प्राण की देन हैं प्राण से अग्नि जलती है। प्राण से वायु चलती है। प्राण से ही नदियाँ बहती हैं। प्राण से ही वायुयान आकाश में चलते हैं। भाप से चलने वाले इंजन की शक्ति भी प्राण ही है। प्राणशक्ति द्वारा ही मोटर और गाड़ियाँ चलती हैं। रेडियो में ध्वनि प्राण द्वारा प्रसारित होती है। प्राण विद्युतशक्ति है। प्राण बल है। प्राण आकर्षण है। प्राण ही हृदय से धमनियों में रक्त परिचालित करता है। प्राण के द्वारा ही पचन-पाचन, निष्कासन आदि क्रियाएँ होती हैं।

विभिन्न क्रियाओं से प्राण शक्ति व्यय होती है जैसे सोचना, इच्छा करना, बातचीत करना, लिखना, हिलना-डुलना आदि। एक स्वस्थ और बली पुरुष में प्राण शक्ति की ही बहुलता रहती है। भोजन, जल, वायु, ऊष्णता, प्रकाश आदि से प्राण प्राप्त होता है। स्नायुमण्डल इसे प्राप्त करते हैं। श्वास-प्रश्वास प्राण मस्तिष्क या स्नायु केन्द्र में जमा रहता है। वीर्य का रूप ओजस में परिवर्तित हो जाता है तो स्नायुमण्डल को प्रचुर मात्रा में प्राण शक्ति मिलती है। यही ओजस है, यही प्राण है।

जिस प्रकार बिजली घर में इंजन बिजली जमा करता है उसी प्रकार एक योगी प्राणायाम द्वारा प्रचुर मात्रा में प्राण संचित करता है। जिसने योग से प्रचुर मात्रा में प्राण संचित कर लिया है वह सभी दृष्टि से बली और तेजस्वी दिखलायी पड़ता है। तो वह स्वयं एक बिजली घर-सा बन जाता है। जो अन्य व्यक्ति उसके संसर्ग में आते हैं उन्हें भी प्राण शक्ति मिलती है और वे शक्ति, स्फूर्ति तथा तेज प्राप्त करते है। जिस प्रकार एक नदी से दूसरी नदी में जल प्रवाहित होता है। उसी प्रकार एक सिद्ध योगी की ओर से एक अशक्त व्यक्ति की ओर प्राण प्रवाहित होता है। जिस योगी ने यौगिक अंतर्दृष्टि प्राप्त कर ली है वह यह देख सकता है।

प्राण और शरीर की शक्ति प्राणायाम द्वारा संचित होती है। यह श्वास को नियमित बनाता है। यह महत्वपूर्ण साधन है। प्राणायाम का उद्देश्य प्राण को नियंत्रित करना है। आन्तरिक गहन शक्ति तथा जीवन धारा पर नियंत्रण प्राप्त करने के हेतु श्वास का नियमित करना ही प्राणायाम है। प्राण का बाह्य रूप ही श्वास है। प्राणायाम के नियमित अभ्यास से नियमित श्वास-प्रश्वास बनाया जा सकता है। साधारण व्यक्ति की श्वास क्रिया अधिकाँशतः नियमित नहीं रहती।

यदि प्राण पर नियंत्रण कर लिया जाये तो विश्व की सभी शक्तियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है-वे मानसिक हों अथवा शारीरिक। प्राणायाम सिद्ध योगी विश्वव्यापी ब्रह्म पर भी अधिकार कर लेता है जिससे सभी प्रकार की शक्तियाँ आविर्भूत होती है जैसे-आकर्षण, विद्युत, घनत्व, आदि तथा इच्छाशक्ति आत्मबल आदि। कहने का तात्पर्य यह है कि सभी प्रकार की शक्तियों की प्राप्ति का साधन यही है।

यदि एक व्यक्ति श्वास या प्राण पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है तो मन पर भी नियन्त्रण प्राप्त हो जाता है। जिसने अपने मन पर अधिकार कर लिया है वह अपने श्वास पर भी विजय हासिल कर लेगा। यदि एक छूटा तो दूसरा भी गया। जिसने मन और प्राण पर नियन्त्रण हासिल कर लिया है वह आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है और परम पद प्राप्त कर लेता है। मन, प्राण तथा वीर्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है। जिसने वीर्य को संचित कर लिया है वह प्राण और मन पर भी अधिकार कर लेगा।

यदि कोई अत्यन्त सूक्ष्म ध्वनि सुननी होती है तो आदमी एक बार अपनी श्वास रोक लेता है। रेलवे स्टेशन पर कुली जब माल उठाता है तो पहले खूब श्वास भर लेता अज्ञानता में प्राणायाम का अभ्यास करता रहता है। जब कोई व्यक्ति छोटा नाला कूद कर पार करता है या जो व्यक्ति लम्बा ऊंचा कूदने आदि का व्यायाम करता है वह भी अपनी अज्ञानता में प्राणायाम का अभ्यास करता रहता है। श्वास रोकने का यह अभ्यास उनमें शक्ति और स्फूर्ति भर देता है। फलतः तत्काल ही वे शक्ति और स्फूर्ति का अनुभव करने लगते हैं।

मिलावट के सोने को मिट्टी में रख कर सुनार एक नली से फूँक फूँक कर उसे विशुद्ध बना लेता है उसी प्रकार एक योगी प्राणायाम से अपने फेफड़े द्वारा शरीर और इन्द्रियों को विशुद्ध बना लेता है।

प्राणायाम का प्रधान उद्देश्य प्राण और अपान को एक करना और उस एकीकृत वायु को सिर की ओर प्रेरित करना है, जिससे सुषुप्त कुण्डलिनी जाग्रत हो जाती है।

प्राणायाम करने के लिये सर्वप्रथम बैठने का ढंग ठीक या आसन सिद्ध करना अथवा शरीर पर नियन्त्रण प्राप्त करना होता है। उसके बाद की क्रिया प्राणायाम होती है। प्राणायाम के सफल अभ्यास के लिये उपयुक्त आसन का उचित रूप सिद्ध होना परमावश्यक है। आराम से और बगैर विशेष श्रम या थकान के जिस ढंग से कैसे कर प्राणायाम किया जा सके वही आसन है जिस आसन पर जितनी अधिक देर आराम के साथ रहा जा सके वही सर्वोत्तम है। छाती, गर्दन और शरीर को एक सीधी रेखा में होना चाहिये। शरीर या मेरुदण्ड को आगे की ओर या दाहिने बायें झुकाना न चाहिये। सीधे तन कर बैठे लेकिन शरीर को एकदम कस न दे। मेरुदण्ड को पूर्णतया सीधा रखना चाहिये। इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा। पीछे की ओर भी शरीर टेढ़ा होने या झुकने न पाये। नियमित अभ्यास से मेरुदण्ड साधारण अवस्था में सीधा रहा करेगा। स्थूलकाय (मोटे) व्यक्ति यदि पद्मासन या कमलासन न कर सकें तो वे सुखासन अथवा सिद्धासन पर बैठकर प्राणायाम का अभ्यास करें। आसन की सिद्धि तक प्राणायाम का अभ्यास रोके न रहे, दोनों का अभ्यास एक साथ करता रहे। समय पाकर दोनों सिद्ध हो जायेंगे। कुर्सी पर सीधा बैठ कर भी प्राणायाम किया जा सकता है।

भगवान कृष्ण ने कहा है

योगी युँजीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।

एकाँकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः॥

छाचौदेशे प्रतिष्ठाप्य स्थिर मासनमात्मनः।

नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिन कुशोत्तरम॥

तत्रौकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रिय क्रियः।

उपविश्यासने युँज्याद्योगमात्मविशुद्धये॥

योगी को एकान्त में रह कर मन और देह दोनों को भली भाँति वश में करके, वासनाओं को दूर कर और समस्त प्रपंच त्याग कर मन को शान्त रखना चाहिये।

उसे निर्जन स्थान में आसन लगाना चाहिये जो कि न बहुत ऊँचा हो और न नीचा हो। उस पर कुशासन रख उसके ऊपर व्याघ्रादि का चर्म बिछाना चाहिये। फिर उस पर बैठकर चित्त और इन्द्रियों की क्रियाएं रोक कर तथा मन को एकाग्र कर अन्तःकरण की शुद्धि के लिये योग करना चाहिये।

प्राणायाम यद्यपि केवल श्वास क्रिया से सम्बन्धित है तथापि इससे समस्त अवयवों एवं शरीर का उत्तम व्यायाम हो जाता है। प्राणायाम से समस्त रोग दूर होते हैं, स्वास्थ्य सुधरता है, पाचन शक्ति बढ़ती है, स्नायुओं को स्फूर्ति और शक्ति मिलती है, इन्द्रिय निरोध होता है और कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होती है। प्राणायाम से स्वास्थ्य उत्तम और मन स्थिर होता है। प्राणायाम का अभ्यास करने वाला अपने श्वास पर निरोध करता है। उसके सीने पर पत्थर तक तोड़ा जा सकता है। प्राण पर नियन्त्रण प्राप्त कर लेने के कारण उसे इसका कुछ असर नहीं मालूम पड़ता। प्राणायाम का जिसे अभ्यास हो जाता है उसका शरीर हल्का, निरोग, सुन्दर तथा काँति युक्त रहता है। लम्बी से लम्बी साँस और उसके साथ अधिक से अधिक वायु लेना ही अधिक शक्ति का परिचय है। एक साधारण व्यक्ति 1 मिनट में 15 बार श्वास लेता है। एक दिन में कुल 216000 बार श्वास लिया जाता है।

जिस कमरे में प्राणायाम का अभ्यास करना है वहाँ अंधेरा और सीलन न हो। वह सूखा और खूब हवादार होना चाहिये। किसी नदी या झील के किनारे, किसी बाग या बगीचे में, खुले हरे-भरे मैदान अथवा यदि विशेष सर्दी न पड़ती हो तो किसी पहाड़ के नीचे या शिखर पर करना सर्वोत्तम है। प्राणायाम का अभ्यास प्रतिदिन और सत्य पर ध्यान आधारित कर करना चाहिये। तभी चित्त सुषुम्ना में लिप्त हो जाता है। परिणामतः प्राण स्थिर हो जाता है। प्राणायाम के लिये मन की एकाग्रता और ध्यान पूर्वकता का होना आवश्यक है।

प्राणायाम करते समय या बाद में किसी प्रकार की कमजोरी, थकान या चित्त में झुँझलाहट न आनी चाहिये। उसे करने में पूर्ण प्रसन्नता और सुखद परिणाम का अनुभव करना चाहिये कभी भी अधिक या अनावश्यक थकान मालूम न होने पाये। श्वास और प्रश्वास बहुत धीरे-धीरे लेना चाहिये। कभी और कहीं भी आवाज न हो। जब कभी मन दुःखी हो, निराशा आती हो प्राणायाम के अभ्यास में लग जाने से शान्ति और उत्साह मिलेगा।

कुम्भक (श्वास लेकर वायु को अन्दर रोकना) शरीर में गर्मी उत्पन्न करता है। उससे कुण्डलिनी शक्ति जागृत होती है और वह सुषुम्ना नाड़ी से लेकर उर्ध्वगति को प्राप्त होती है। कुम्भक से आयु बढ़ती है। आसन का अभ्यास करते समय हल्के प्राणायाम का अभ्यास आसन की सिद्धि देता है, तथा अधिक शक्ति और स्फूर्ति प्राप्त होती है। प्राणायाम के साथ-साथ इष्ट मन्त्र का जप भी करते रहना चाहिये। यह योग साधना हो जायेगी।

प्रातःकाल नींद से उठने के बाद चूँकि थोड़ा-बहुत आलस्य बना ही रहता है अतः उस समय थोड़ा सा प्राणायाम कर लेना लाभकर होगा। और साथ ही आलस्य भी दूर हो जायेगा। ध्यान करने के लिये पहिले प्राणायाम कर लेना बड़ा हितकर होगा। प्राणायाम के बाद मन में एकाग्रता आ जाती है।


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