मिट्टी की उपयोगिता

August 1950

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(डॉ. लक्ष्मी नारायण टंडन ‘प्रेमी’ एम.ए.एन.डी.)

यह मानव-स्वभाव की कमजोरी है कि जिस वस्तु को प्राप्त करने में जितना ही अधिक व्यय, परिश्रम तथा कठिनाइयाँ होती हैं हम उन्हें उतना ही महत्व देते हैं। डाक्टरों की लम्बी फीस और दवाखानों की महंगी दवाओं के बीच हम प्रकृति के इस दान ‘मिट्टी’ की महत्ता भूल गए हैं। हमारा यह अभाग्य है।

आपने लोगों से सुना होगा-अखाड़े की मिट्टी में बल होता है। इससे खाल में कोमलता आती है। तो अखाड़े की न भी हो, कहीं की भी हो लाभ तो मिट्टी का ही है। इसकी शक्ति महान है। पंडोल मिट्टी लो, न हो तो चिकनी मिट्टी को ही पानी में मिलाओ। हाथ मत डालो। कपड़े पर मिट्टी को 3 घंटे तक रखो। फिर दूसरी बदलो। ऐसे रोगी को जिसका हाथ काटने को डॉक्टर कह चुके थे, वह भी अच्छा हो गया। शरीर के अन्दर विष हो, ज्वर भी साथ में हो, फोड़े-फुँसी हों, तब मिट्टी की पट्टी यदि अरसे तक बाँधी जाय तो लाभ करती है। वैसे ही यदि किसी के बटिया पड़ गई हो-न पके, न फूटे, न दर्द हो वह मिट्टी की पट्टी से बटियाँ भी छट जाएं। 20-20 मिनट पर पट्टी बदली जाय। पट्टी चाहे गरम प्रयोग करें चाहे ठंडी।

याद रहे यदि रोग-स्थान छूने पर गरम मालूम पड़े तो ठंडी पट्टी और यदि वह छूने पर ठंडा मालूम पड़े तो गरम पट्टी का प्रयोग हो।

मिट्टी से शरीर का संपर्क नंगे पैर चलने से ही है। पर ईंटों के फर्श, पलस्तर, या तारकोल वाली सड़कों पर चलने से लाभ नहीं होगा। घास वाली भूमि पर और प्रातः ओस की बूँदें भी हों तो सोने में सुहागा है।

फोड़े तथा दर्द में जल्दी-जल्दी पट्टी बदले और यदि शरीर गरम हो तो ठंडी पट्टी बाँधे। उकौता दाद में भी मिट्टी का प्रयोग करना चाहिए पर कुछ अरसे तक प्रयोग करें। मिट्टी में पानी होने से, सिकुड़ कर पहले खून भीतर जायगा, फिर मिट्टी गरम होने पर खून फिर प्रतिक्रिया-स्वरूप बाहर की ओर आयेगा-इससे खून का दौरान होगा।

आँखों में जलन, सर का दर्द यदि खून के दौरान के कारण हो, रक्तचाप में लम्बे अरसे तक मिट्टी का प्रयोग करे। गठिया में विशेष लाभ होता है। ऐसे रोगों में विषैले पदार्थों के जमा होने से खून का दौरान कम हो जाता है। इससे पहले ही से ठंडक बनी रहती है-अतः मिट्टी को गरम करो। मिट्टी कूटो, पीसो, पानी मिलाकर डिब्बे में रखो और डिब्बे को उबलते पानी में रखो फिर ग्लेसरिन मिला दो। उससे गर्मी देर तक रहती है। वह ‘ऐन्टी फ्लाजस्टीन का असर करेगा। वरन् और ज्यादा ही। यह गरम प्लास्टर आधे-आधे घंटे बाद बदलें। निमोनिया में भी यही प्रयोग करे। पानी का सेक भी करें। प्लूरसी के रोगी पर भी यही गरम मिट्टी का प्रयोग करो। साइटिका तथा नसों में सूजन आ जाने पर भी गरम मिट्टी का प्रयोग होगा पर पट्टी का प्रयोग करो। पेट पर ठंडी पट्टी रखो पर पेचिश में गरम पट्टी प्रयोग करो। विशेष कर पहले पहल ऐंठन कम होने पर धीरे-धीरे फिर ठंडी पट्टी प्रयोग करें। गरम पानी का एनेमा दो। फिर पेट पर पट्टी लगाओ। इससे रोग की हालत संभल जाती है। पेचिश में पेडू पर मिट्टी की पट्टी लगाओ। ऐंठन की हालत में गरम, ऐंठन दूर होने पर धीरे-धीरे ठंडी पट्टी आधा इंच मोटी मिट्टी की सदा रहे। ऊपर से मोटा कपड़ा रखो। पैखाने के बाद तुरंत एनेमा देकर मिट्टी की पट्टी बाँधना अति लाभ करता है।

ठंडी पट्टी को बाद में 7-8 घन्टे तक रखा जा सकता है। बुखार में ठंडी पट्टी का प्रयोग करो। मलेरिया में पहले ठंडक लगती है क्योंकि खून का दौरान लड़ने के लिए भीतर जाता है-बाद में खून का दौरान बाहर की ओर होने पर ज्वर आ जाता है। ऐसी दशा में गरम पानी का एनेमा लें। चाय सा गरम जल लो। 20 बूँद नीबू डालकर खूब पानी पिलाओ कि पेशाबें हों। ज्वर आने के पूर्व आधा घंटा पहले वाष्प-स्नान करावे। फिर स्पंज करके लिटा दो। पसीना आयेगा। ज्वर आने के पहले ही यदि हम पसीना ले आयें तो जूड़ी नहीं आयेगी। जिस दिन जूड़ी-बुखार की बारी हो, उस दिन गरम पानी में नींबू का रस पिलाओ। उपवास कराओ। जब कंपकंपी उतर जाय, बुखार चढ़ा हो तब मिट्टी की पट्टी पेडू पर रखो। नीचे से ऊपर की ओर स्पंज करो और जिस भाग पर हो चुके वह ढकते जाओ। फिर मिट्टी की पट्टी लगाओ।

टाइफ़ाइड में मिट्टी की ठंडी पट्टी पेट पर बाँधो क्योंकि यह रोग पेट की खराबी से होता है। इन्फ़्लुएंज़ा, जुकाम, खराश में पेडू पर मिट्टी की पट्टी की ठंडी पट्टी बाँधे। मोतियाबिन्द, रोहे में तीन हिस्से पानी तथा एक हिस्सा नीबू का रस लो। प्रातः सायं आँखों में डालो और पेट पर मिट्टी की पट्टी रखो क्योंकि पेट की खराबी से ही रोहे आदि होते हैं।

मिट्टी द्वारा इलाज को समझने में नीचे लिखे सिद्धान्त को समझने में आसानी होगी। 3 प्रकार की मिट्टी होती है।

काली मिट्टी-खुले हुए रोगों में यही लाभकारी होती है। चर्म रोग में यह अधिक उपयोगी है। उकौता, खुजली, दाद तथा तेज गरमी या जलन वाले दाने तथा मकड़ी में भी इसका प्रयोग उत्तम है। फोड़े-फुँसी में भी लाभप्रद है। खाल पर सफेद दाने हों तथा नीबू का रस भी काली मिट्टी में मिला लें तो और भी लाभ है। यदि एक सेर मिट्टी में आधा चूना बारीक पीस कर मिला ले तो और भी अच्छा है।

चिकनी या धुली मिट्टी-अंदरूनी सूजन में यही ज्यादा फायदा पहुँचाती है। जिगर या आँतों की सूजन में भी लाभ करती है। बच्चों के यकृत रोगों में गाय के पेशाब में मिट्टी छनवा कर तैयार करे उससे बहुत लाभ होगा। साथ में सेब खिलावें।

बढ़े हुए जिगर तथा टाँसिल में सेब तो इतना अधिक लाभ करता है कि केवल सेब खाकर रोग दूर किया जा सकता है। पर सेब लेट कर खाए और उसमें चाकू न लगे।

पंडोल या मुल्तानी मिट्टी-अंदरूनी माद्दे को खींचकर ऊपर लाने में यह मिट्टी अति लाभप्रद है। यह रक्त की अधिक गरमी को शान्त करती है। ऊपर को माद्दा, यह मिट्टी घसीटती है। रोग को ऊपर लाकर रोग समाप्त कर देगी।

साधारणतया प्रायः ठंडी ही पट्टी लगाना चाहिए। पर यदि आँख में दर्द है पर आँख जलती नहीं है तो तनिक गरम कर पट्टी बाँधे।

मिट्टी का उपयोग तो साँप काटने पर भी होता है। आदमी की लम्बाई चौड़ाई का एक गढ्ढा खोदो आदमी को उसमें खड़ा करो या लिटा दो इस प्रकार कि उसका शरीर मिट्टी छूता रहे। शेष अन्य उपचार चाहें तो कर सकते हैं। मिट्टी में विष खींचने की शक्ति होती है। याद रहे एक बार ही प्रयोग ही हुई मिट्टी विषैली हो जाने के कारण फेंक देनी चाहिए।

प्रकृति की महानता अनन्त है। रेगिस्तान तथा पर्वतों को छोड़ कर सब कहीं मिट्टी ही मिट्टी है। यदि हम उसकी उपयोगिता समझ सकें और फिर उससे इलाज द्वारा लाभ भी उठा सकें तो जहाँ डॉक्टर-वैद्य प्राप्त नहीं है या धनाभाव है, वहाँ बिना खर्च के ही हम अपना इलाज कर सकते हैं।


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