कथनी कथ केते गये, कर्म उपासन ज्ञान।
नारायण चारों युगन, करणी है परमान॥
जिनकों मन निजवश भयो, तशकर विषय विलास। नारायण ते घर रहो, करौ भले वनवास॥
नारायण या जगत में, यह दो वस्तु सार।
सबसों मीठी बोलियों, करयो पर उपकार॥
नारायण परलोक में, यह दो आवत काम।
देना मुट्ठी अन्न की, लेना भगवत नाम॥
कियो न मानत और को, परहित करत न आप।
नारायण ता पुरुष को, मुख देखे सों पाप॥