विद्यावन्त स्वरूप गुण, सुत दारा सुख भोग।
नारायण हरिभक्ति बिन, यह सबही हैं रोग॥
नारायण सतसंग कर सीख भजन की रीत।
काम क्रोध मद लोभ में, गई आरबल बीत॥
नारायण जब अन्त में, यम पकरेंगे बाँहि।
तिनसों भी कहियो हमें, अभी फुरसतों नाँहि॥