चमत्कारों का केन्द्र-ईश्वर।

February 1948

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ईश्वर की सृष्टि में चारों ओर चमत्कार ही चमत्कार हैं। परमात्मा इतना बड़ा बाजीगर है कि उसकी झोली में से हर घड़ी एक से एक अचरज भरे खेल निकलते रहते हैं। प्रकृति का भंडार भानमती का पिटारा है उसमें एक से एक अनोखी और हैरत में डालने वाले चीजें भरी पड़ी हैं। जब तक ध्यान न दिया जाय तब तक संसार की सारी बातें साधारण प्रतीत होती हैं पर जब ध्यान से देखते हैं तो एक से एक बड़े कौतूहल हमें अपने चारों ओर बिखरे हुए दिखाई पड़ते हैं।

जादूगर लोग धूलि हाथ में लेकर उस पर विद्या चलाता है और एक फूल बना कर दिखाता है, दर्शक खुशी से फूले नहीं समाते, पर दूसरी ओर देखिए बरगद का राई से भी छोटा बीज लेकर धरती माता उसे कितना विशाल वट वृक्ष बना देती है। इतने नन्हें बीच से इतना विशालकाय वृक्ष उत्पन्न होना कितने आश्चर्य की बात है। इतनी नगण्य वस्तु के गर्भ में इतना बड़ा वृक्ष छिपा बैठा रहता है यह कितना बड़ा अचंभा है। आकाश में कोई वस्तु ठहरती नहीं, यदि हम आकाश में किसी वस्तु को ठहराना चाहें तो वह न ठहरेगी और हाथ से छोड़ते ही धड़ाम से जमीन पर गिर पड़ेगी, पर दूसरी ओर देखिए लाखों करोड़ों टन पानी लादे हुए आकाश में बिना पंखों के बादल उड़ते फिरते रहते हैं। जादूगर एक गोला आकाश में अधरकर लटका दे तो दर्शकों की तालियाँ गड़गड़ाने लगती हैं पर उस जादूगर का करतब तो देखिए कल्पनातीत वजन के असंख्य ग्रह नक्षत्र आकाश में टंगे हुए हैं, बाँधने रोकने या सहारा देने के लिए न तो कोई तार है न रस्सी। खुले मैदान खेल हो रहा है जिसका जी चाहे बिना टिकट, चाहे जब तक, देखता रहे।

अतीत काल से सूरज की अग्नि जल रही है, इसमें न तो कोई ईंधन डालता है न लकड़ी न कोयला। बिना किसी आधार के अग्नि अपने आप सुदीर्घकाल जलती रहे क्या यह कुछ कम अचंभे की बात है। बिना तेल बत्ती के चन्द्रमा का दीपक ठीक समय पर जलता और ठीक समय पर बुझता है। बिना किसी मशीन, मोटर, फिनर या चाबी के आकाश मंडल के ग्रह नक्षत्र ठीक गति से घूमते रहते हैं। घड़ी में गलती हो सकती है पर इन ग्रह नक्षत्रों की चाल में राई रत्ती भर फर्क नहीं पड़ने पाता। वर्षा आरंभ होते ही पृथ्वी पर असंख्य धारों के फव्वारे छूटने लगते हैं। हरी हरी कोमल घास की पत्तियाँ सारी भूमि पर शीतल सजीव मखमली फर्श बिछा देती हैं। नन्हें नन्हें फूल खिलकर उनमें बेल बूटे से जड़ जाते हैं। चन्दन, देवदारु, अगर, कदम्ब आदि के वृक्ष नाना प्रकार के पुष्प मानो इत्रों में डूबे खड़े हैं, अपनी भीनी सुगन्ध से वे संसार को हर घड़ी मनमोहक गंध हर घड़ी प्रदान करते रहते हैं। बिना पंखे के कोई अदृश्य शक्ति हमारे ऊपर हर घड़ी पंखा झलती रहती है। वायु का चलना सचमुच एक चमत्कार है।

परमात्मा की विलक्षण जादूगरी के करतब कहाँ तक गिनायें। उसकी कारीगरियाँ एक से एक विलक्षण हैं। नाना आकृतियों के जीव जन्तु पशु-पक्षी, कीड़े, मकोड़े, पेड़, पौधे हमें दिखाई पड़ते हैं। इनमें से हर एक अपने ढंग का अकेला है। एक से दूसरे की शकल नहीं मिलती, हर एक में कुछ न कुछ अलग कारीगरी है। नदी, पर्वत, वन एक से एक सुहावने हैं। भारी खर्च करके लोग बर्फ बनाने का एक छोटा सा कारखाना खड़ा करते हैं पर वह जब बर्फ बनाने खड़ा होता है तो बिना किसी मशीन के पर्वतों और समुद्रों को हिमआच्छादित कर देता है। कमरे को ठंडा या गर्म करने के लिए लोग बड़ा परिश्रम करने पर अनुकूल तापमान करने में कुछ थोड़ी सी सफलता प्राप्त करते हैं पर जब वह जादूगर अपना डंडा उठाता है तो शीत ऋतु को बदल कर गर्मी में और गर्मी को सर्दी में परिणित कर देता है। समुद्र जैसे तालाब खोदना और नदी जैसी नहरें निकालना मर्त्यलोक के इंजीनियरों के बस में नहीं हैं। कठपुतलियों को नचा कर तमाशे वाले कौतूहल पैदा कर देते हैं पर जरा देखिये तो सही, खाक के पुतले, जीवधारी बिना किसी तार या डोर के कैसे चलते फिरते और नाचते कूदते हैं, बिना रिकार्ड चढ़ाये तरह 2 की बोलियाँ बोलते हैं। और तो और वे अपने क्षण भंगुर आस्तित्व पर इतराते भी हैं। रीछ और बन्दरों से मनुष्यों जैसी क्रियाएं कराने वाले कलन्दर शाबाशी पाते हैं। पर उस कलन्दर को तो देखिए जिसकी कठपुतलियाँ अपने कामों पर खुद घमंड करती हैं। काम, क्रोध, मोह, मद, मत्सर से प्रेरित होकर ऐसे ऐसे स्वाँग करती हैं जिन्हें देखकर जागृत आत्माएं हंसते हंसते लोट पोट हुए बिना नहीं रह सकतीं।

उसके छिपाने की बलिहारी है। ऐसी तिजोरी किसी को मुश्किल से ही मिलेगी। जमीन के पेट में उसने सोना, चाँदी, तांबा, लोहा आदि धातुओं, विविध खनिज पदार्थों, हीरा, पन्ना, नीलम, पुखराज आदि रत्नों को छिपा रखा है। समुद्र की तली में मोतियों की राशियों और मूँगों की चट्टानें दबी पड़ी हैं। इस अकूत सम्पत्ति का क्या ठिकाना है न जाने कितने लाख करोड़ का यह वैभव है।

खाक से मनुष्य, मनुष्य से खाक। वृक्ष से बीज, बीज से वृक्ष। बादल से पानी, पानी से बादल। खाद से अन्न, अन्न से खाद। तकदीर से तदवीर, तदवीर से तकदीर, इस प्रकार के जोड़े मिला कर बुद्धि को चकरा देने वाली पहेलियाँ उसने उपस्थित कर दी हैं उसके झोले में न जाने क्या क्या हैरतें भरी पड़ी हैं। जब मनुष्य मचल पड़ता है और उसकी झोली कुरेदने की जिद्द ठान बैठता है तो वह एकाध खिलौना ऐसा निकाल कर देता है, उस खिलौने का पाकर बालक मनुष्य फूला नहीं समाता। पिछली दशाब्दियों और शताब्दियों में उसने ऐसे कई खिलौने पाये हैं। रेडियो, टेलीफोन, रेल, तार, हवाई जहाज, बिजली आदि को लेकर वह हँस कूद रहा है, परमात्मा के झोले में ऐसे अनन्त खिलौने भरे पड़े हैं, एक से एक अद्भुत हैं। उस मदारी की माया अपार है।

जिधर देखिए उधर हैरत ही हैरत बरस रही है, एक से एक अद्भुत वस्तु उसने बना बनाकर रख दी है, वह जादूगरों का जादूगर है, करामातियों का गुरु है, सिद्धों का सिद्ध है, वह चाहे जो दिखा सकता है, चाहे जो बना सकता है। चाहे जो कर सकता है। हर बात उसके लिए संभव है, हर चीज उसकी मुट्ठी में है। उससे बड़ा कोई सिद्ध नहीं, उससे बड़ा कोई चमत्कारी नहीं, उससे अधिक किसी में शक्ति नहीं, वह सर्व शक्तिमान है।

निर्मल सुरसरी जिसके द्वार पर बहती हो उसे ताल तलैयों में पानी ढूँढ़ने जाने की क्या जरूरत? सिद्धों का सिद्ध, महा चमत्कारी परमात्मा अपने हृदय में, अपने से निकटतम स्थानों पर मौजूद है तब अन्य सिद्धों को तलाश कराने जाने से क्या प्रयोजन? छोटे बालक छोटे खिलौने से अपना मन बहलाते हैं पर प्रबुद्ध पुरुष को उन मिट्टी के खेल खिलौनों में कोई रस नहीं, वह बड़ी वस्तुओं पर अपना ध्यान एकत्रित करता है और ऊंचे कामों में रस लेता है। आध्यात्मिक दृष्टि से जो मनुष्य अभी बालक हैं वे तरह तरह के चमत्कारों की तलाश में फिरते हैं और उनके मन बहलाते हैं विस्मय में डाल देने वाले कार्य कर दिखाने वाले व्यक्ति उन्हें सिद्ध जंचते हैं और उन्हें कृपा पात्र बन कर वे अपनी अभीष्ट अभिलाषाओं की पूर्ति चाहते हैं परन्तु विवेक बातों का मार्ग भिन्न है। वे परमसिद्ध परमात्मा की शरण में जाते हैं और इसे प्राप्त कर अनन्त चमत्कारों जैसी सिद्धि के भागी बनते हैं।

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