भगवान बुद्ध की वाणी।

February 1948

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जो दूसरे को दुख देखकर अपना सुख चाहता है वह वैर में फंस जाता है और उससे छूट नहीं सकता।

बर्फीले पर्वत के समान सन्त लोग दूर से ही चमकते हैं। असन्त इस प्रकार अदृष्ट रहते हैं जैसे रात में छोड़ा हुआ तीर।

असंयमी और अविवेकी भिक्षु मुफ्त में राष्ट्र का धन खावे इससे तो आग में तपाया हुआ लोहे का लाल गोला खा जाय, वह अच्छा।

अपने को इस प्रकार सुरक्षित रख, जैसे किले को बाहर भीतर से सुरक्षित रखते हैं। एक क्षण भी व्यर्थ न जाने दे। क्योंकि जो समय पर काम नहीं करते वह नरक में जाकर दुख उठाते हैं।

छोड़ने योग्य को छोड़ और न छोड़ने योग्य को न छोड़। जो इस प्रकार रहते हैं वह अवश्य सुगति को प्राप्त होते हैं।

अगर तुमको ऐसा निष्पक्ष साथी मिल जाय जो नेक और बुद्धिमान हो और किसी प्रकार की कठिनाई से न हारे तो तुम दत्त चित्त होकर उसके साथ चल दो।

प्रमाद रहित हो, अपने विचारों को सुरक्षित करो। कीचड़ में फंसे हुए हाथी के समान बुराइयों से ऊपर उठने का प्रयत्न करो।

सब दानों में धर्म का दान बढ़ कर है। सब रसों में धर्म का रस बढ़ कर है। सब सुखों में धर्म का सुख बढ़कर है।

हे भिक्षु! इस नाव को हलकी कर दे तब जल्दी चलेगी। राग और द्वेष को छोड़कर ही तू निर्वाण पावेगा।

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